Saturday 29 August 2020

Learn Online Naturopathy Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन प्राकर्तिक चिकित्सा सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर

Learn Online Naturopathy Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन प्राकर्तिक चिकित्सा सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर




अगर आप बिना दवाईयों के स्वास्थ्य रहना चहाते है, प्राकृतिक चिकित्सा में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज की रचना मे सहयोग करना चाहते है लेकिन आपके नजदीक कोई सेण्टर नहीं है ? व्यस्त जीवन शैली के कारण सीखने के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाते है?, कही जाकर सीख पाना संभव नहीं है। तो कृपया इस पोस्ट को ध्यान से एकबार जरूर पढ़े

भारत मे पहली प्राकृतिक चिकित्सा के प्रसार व प्रचार हेतु (11 दिवसीय प्राकर्तिक चिकित्सा का ऑनलाइन Zoom App पर सर्टिफिकेट कोर्स) कल्पांत हिलिंग सेंटर एवं जगतेश्वर आनंद धाम मुरादनगर के द्वारा शीघ्र शुरू होने जा रहा है। पुराने मित्र जिन्होंने यह कोर्स किया है वो अपने मित्रो को व प्रेमीजनों को इसबार कोर्स में जोईन करायें जिससे अधिक से अधिक प्रेमीजन इसका लाभ उठा सके।

प्राकर्तिक चिकित्सा क्या है-: प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी चिकित्सा है, जिसमें जहरीले रसायनों का व औषधियों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह चिकित्सा छः तत्वों पर आधारित है। महतत्व, आकाशतत्व, वायुतत्व, अग्नितत्व, जलतत्व, पृथ्वीतत्व, यह छः तत्व ही सृष्टि के मुख्य तत्व है। इन तत्वों के द्वारा हम साध्य, असाध्य सभी रोगों (आधिदैविक, आधिभौतिक, तथा आध्यात्मिक) का उपचार करते हैं। इस षट् तत्व की चिकित्सा को प्राकृतिक चिकित्सा कहा जाता है। इसे प्रकृति चिकित्सा, नैसर्गिक चिकित्सा, प्राकृतिक उपचार, जल चिकित्सा, स्वाभाविक चिकित्सा, कुदरती उपचार, नेचर क्योर, नेचुरोपैथी, नेचर थेरेपी, हर्बल थेरेपी, हिलिंग थैरेपी आदि नामो से भी जाना जाता है।

कोर्स के मुख्य लाभों में आप स्वयं को, परिवार को व किसी भी मित्र को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है व किसी को भी स्वस्थ केसे रहा जाये सीखा सकते है, किसी भी तरह की नयी व पुरानी बिमारी, रोग, दर्द आदि को दूर कर संपूर्ण स्वास्थ्य पा सकते है।

रेफ्रेशर कोर्सेस – एक बार कोर्स जोईन करने के बाद अगर आप दूसरी बार कोर्स करने के लिये नये बैच में जोईन करना चाहे तो सेवाशुल्क कम से कम 251/ रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देकर जितनी बार चाहे जोईनिग कर सकते हैं।

हम आपको 11 दिन का प्राकर्तिक चिकित्सा का कोर्स करा रहे हैं। आपको  मात्र एक घंटा 11 दिन तक देना है। यह पूरा कोर्स Online Zoom App पर Live होगा, सेशन के बाद उसके ऑडियो वीडियो आपको वाट्सएप ग्रुप में  भेजे जायेंगे  ताकि आप उसे सुन के आसानी से घर में भी प्राकर्तिक चिकित्सा की प्रैक्टिस कर सके. कोर्स के अंत में पीडीऍफ़ बुक भी वाट्स ग्रुप में दी जाएगी।

जो आत्मानुभव कोर्स करना चहाते है। उनको इसका सेवाशुल्क कम से कम 1100/रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देना है। जो प्रेमीजन रेकी में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज व देश की रचना मे सहयोग करना चाहते है, वो सेवा शुल्क Paytm या Google pay या phone pe "9899410128" पर या "9958502499" नंबर पर कर सकते है।

या
kalpant sewashram trust के खाते में Bank= oriental bank of commerce Account number = 05262011015007 Ifs code= ORBC0100526, पर भी जमा कर सकते है।


सेवा शुल्क जमा कर व्हाट्सएप नंबर 9958502499 पर स्क्रीन शोर्ट या उसकी फोटो दे, उसके बाद आपको प्राकर्तिक चिकित्सा कोर्स Whatsapp ग्रुप में कोर्स मे जोड़ दिया जायेगा जहाँ सभी जानकारी मिलती रहेगी


और अगर कुछ जानकारी चहिये तो मेरे व्हाटसप नंबर 9958502499 पर संपर्क करें। या कॉल करे।

जगतेश्वर आनंद धाम एवं कल्पांत हिलिंग सेंटर फिजियोथैरेपी, नेचुरोपैथी, एक्युप्रेशर, योग, प्राणायाम, ध्यान साधनाए, रेंकी, स्प्रीचुअल हीलिंग, अहार एवं नेचुरल व हर्बल थैरेपी (ट्रीटमेंन्ट एवं ट्रेनिंग सेंन्टर)
म.नं. 35, यूनाइटेड पैराडाइज,कृष्णा सागर होटल के पीछे, संत निरंकारी आश्रम के पास, मुरादनगर गंगनहर, एन एच 58, मेरठ रोड, गाजियाबाद पिन नं 201206

Contact Dr JP Verma (Swami Jagteswer Anand Ji) { BPT, Md-Acu, C.Y.Ed, G.M Reiki, NDDY & G.M Spiritual Healing} Mob-:9899410128, 9958502499

http://www.youtube.com/c/KalpantHealingCenterJagteswerAnandDham

https://www.youtube.com/c/JagteswerAnandDhamCenterofDivineMysteries




Online Kalpant Mansopchar chikitsa (A Spiritual Healing) Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार, सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर

Online Kalpant Mansopchar chikitsa (A Spiritual Healing) Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार,  सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर 




(कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार, मन के सभी रोगों का उपचार साधनाओं व विचारों के द्वारा, 21 दिवसीय ऑनलाइन Zoom App पर  सर्टिफिकेट कोर्स) का नया Batch, शीघ्र  शुरू हो रहा है। "लिमिटेड रजिस्ट्रेशन" इसलिये शीघ्र रजिस्ट्रेशन करें।

1. क्या आपका (Depression) तनाव बढ़ता जा रहा हैं।
2. क्या आपको छोटी सी बात पर भंयकर क्रोध आता है।
3. क्या आपका घर मेडिकल स्टोर बनता जा रहा है। और रोग लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
4. क्या आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता व जीवनी शक्ति (Immunity Power and Vital Energy) कमजोर होती जा रही है।
5. क्या कम उम्र ही शरीर में बुढ़ापे के लक्षण प्रगट हो रहे हैं।
6. क्या आपको पूरे दिन घबराहट, बेचैनी, खिन्नता, निराशा, उदासी, शक्तिहीनता, आलस्य बना रहता है।
7. क्या आपको रात को सही से नींद नहीं आती है।
8. क्या आपके मन में लगातार नकारात्मक विचार आते रहते हैं।
9. क्या आप हर वक्त चिंतित रहते हैं ओर आपका मन हर पल विचलित रहता है।
10. क्या आपके रोग आसाध्य होते जा रहे है, दवाईयाँ लेकर भी ठीक नही हो रहे है।

यदि इन सवालों का जवाब हाँ मे हैं ओर आप ऐसे अनेक मानसिक रोगों से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो शीघ्रता से ज्वाइन करें, हमारा मानसिक चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार कोर्स, और पायें अपनें मानसिक, शरीरिक, आत्मिक, रोगों को दूर करने का रास्ता व जीवन को आनंदित व शान्तिमय बनायें

मानसोपचार अर्थार्त मानस या मनुष्य का मन से उपचार या मन के विचारो से उपचार की विधि का नाम है, जिसका उदेश्य मन के भाव चिंता-परेशानी, क्रोध, नकारात्मकता, द्वंद, घ्रणा, इर्ष्या, श्रोभ, दुःख, या कुंठा आदि को अपने विचारो के द्वारा सकारात्मकता में बदल कर जीवन को सोम्य व शांत बनाना है। जिससे हम शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, रूप से पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर लें। और साथ ही शरीर के सभी तंत्रों पर ध्यान अर्थात साधना के द्वारा कैसे रोग ठीक हो, यह जानेंगे, क्योंकि हमारे शरीर में रोग किसी तंत्र के ठीक से कार्य न करने से या वहां ऊर्जा की कमी के कारण आता है, तो हम जानेंगे कि कैसे हम हड्डियों के रोग अर्थात कंकाल तंत्र, पाचन संबंधी रोग अर्थात पाचन तंत्र, श्वास संबंधी रोग अर्थात श्वसन तन्त्र, हृदय संबंधी रोग अर्थात रक्त परिसंचरण तन्त्र, व हार्मोनल तन्त्र अर्थात हार्मोनल रोग, उत्सर्जन तन्त्र, को ध्यान के द्वारा साधना के द्वारा कैसे ठीक करें, इस क्रिया को हम सीख पाएंगे।

आज मनुष्य का जीवन भागदौड़ भरा जीवन है, इस दौड़ में सब कुछ पाने की महत्वकांक्षा के कारण हम लगातार तनावग्रस्त होते रहते हैं, ओर मानसिक रोग पैदा होने शुरु हो जाते हैं, मानसिक रोग शारीरिक रोगों से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं, आज विज्ञान भी यह मानता है कि 90% रोग मानसिकता के बिगड़ने के कारण होते है, साथ ही आज के समय में 99% व्यक्ति मानसिक रोग के शिकार हैं, सभी प्रकार के हृदय रोग, मधुमेह रोग, तंत्रिका तंत्र के रोग मानसिक रोगों का ही परिणाम है, साधना के द्वारा व विचारों के द्वारा इन्हें कैसे ठीक करें, इस कोर्स में हम सीख पाएंगे,

कोर्स के मुख्य लाभों में आप स्वयं को, परिवार को व किसी भी मित्र को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है, एवं साधनाओं के द्वारा परम आनंद की अनुभूतियां कर शांति के अनुभव के साथ अपने मानसिक तनाव, अनिंद्रा, चिन्ता, दुख, मानसिक, अवरोध, बैचेनी, घबराहट, घृणा, कंठा, द्वेष, भय, काम, क्रोध, मोह, लोभ,अहंकार जेसे रोगों से भी मुक्ति पा सकते है। किसी भी तरह की मानसिक व शरीरिक बिमारी, रोग, दर्द को दूर कर संपूर्ण स्वास्थ्य पा सकते है।

हम आपको 21 घंटे का कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार, मन के सभी रोगों का उपचार साधनाओं व विचारों के द्वारा कोर्स करा रहे हैं। आपको  रोजाना  मात्र एक घंटा 21 दिन तक देना है। यह पूरा कोर्स Online Zoom App पर Live होगा, साथ ही आप 21 दिन तक रोजाना मेरे साथ 21 साधनाओं का एहसास करेंगे ओर अपना उपचार भी करेंगे। Live सेशन के बाद उसके ऑडियो वीडियो आपको वाट्स ग्रुप में  भेजे जाते है ताकि आप उसे सुन के आसानी से घर में उसकी प्रैक्टिस कर सके, कोर्स के अंत में पीडीऍफ़ बुक भी वाट्स ग्रुप में दी जाएगी।

रेफ्रेशर कोर्सेस – एक बार कोर्स जोईन करने के बाद अगर आप दूसरी बार कोर्स करने के लिये नये बैच में जोईन करना चाहे तो सेवाशुल्क कम से कम 251/ रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देकर जितनी बार चाहे जोईनिग कर सकते हैं।

जो आत्मानुभव कोर्स करना चहाते है। उनको इसका सेवाशुल्क कम से कम 2101/रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देना है। जो प्रेमीजन रेकी में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज व देश की रचना मे सहयोग करना चाहते है, वो सेवा शुल्क Paytm या Google pay या phone pe "9899410128" पर या "9958502499" नंबर पर कर सकते है।

या
kalpant sewashram trust के खाते में Bank= oriental bank of commerce Account number = 05262011015007 Ifs code= ORBC0100526, पर भी जमा कर सकते है।

सेवा शुल्क जमा कर व्हाट्सएप नंबर 9958502499 पर स्क्रीन शोर्ट या उसकी फोटो दे, उनको Whatsapp कोर्स के ग्रुप मे जोड़ दिया जायेगा।

और अगर कुछ जानकारी चहिये तो मेरे व्हाटसप नंबर 9958502499 पर संपर्क करें। या कॉल करे।

जगतेश्वर आनंद धाम एवं कल्पांत हिलिंग सेंटर फिजियोथैरेपी, नेचुरोपैथी, एक्युप्रेशर, योग, प्राणायाम, ध्यान साधनाए, रेंकी, स्प्रीचुअल हीलिंग, अहार एवं नेचुरल व हर्बल थैरेपी (ट्रीटमेंन्ट एवं ट्रेनिंग सेंन्टर)
म.नं. 35, यूनाइटेड पैराडाइज,कृष्णा सागर होटल के पीछे, संत निरंकारी आश्रम के पास, मुरादनगर गंगनहर, एन एच 58, मेरठ रोड, गाजियाबाद पिन नं 201206

Contact Dr JP Verma (Swami Jagteswer Anand Ji) { BPT, Md-Acu, C.Y.Ed, G.M Reiki, NDDY & G.M Spiritual Healing} Mob-:9899410128, 9958502499

https://www.youtube.com/c/JagteswerAnandDhamCenterofDivineMysteries

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Friday 28 August 2020

Online Reiki Level I, II and Master/ Teacher Program Learn Reiki Levels 1, 2 and Master Level to become a Certified Traditional Indian Reiki Practitioner/Instructor | कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स, Online Zoom App


Youtube Vedio Link-:  ऑनलाइन रेकी केसे सीखे |

भारत में पहली बार घर बैठे 7000रु वाला कोर्स मात्र 1100  रु में केवल 11 घंटे मे करके रेकी हीलर बने। समय का सदउपयोग करें, आध्यात्मिक चिकित्सा सीखकर स्वयं व औरों को स्वास्थ्य प्राप्ति में सहयोगी बनें


कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स का नया Batch, Online Zoom App पर शीघ्र  शुरू होने जा  रहा है। कोर्स समाप्त होने पर सर्टिफिकेट भी दिया जायेगा। "लिमिटेड रजिस्ट्रेशन" इसलिये शीघ्र रजिस्ट्रेशन करें।*


क्या आप रेकी सीखना चाहते है लेकिन आपके नजदीक कोई सेण्टर नहीं है ?, व्यस्त जीवन शैली के कारण सीखने के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाते है ?, कही जाकर सीख पाना संभव नहीं है। तो कृपया इस पोस्ट को पूरा ध्यान से पढ़े क्योंकि हम यहाँ बात करेंगे ' कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स Online Zoom App पर' के बारे जिसकी मदद से आप अपने घर बैठे बड़ी आसानी से रेकी की सभी साधनायें सीख कर रेकी के सभी लाभ अपने जीवन में उठा सकते है। कल्पांत रेकी साधना केवल हमारे द्वारा ही भारत में कराई जा रही है, जो जापानीज रेकी से ज्यादा पावरफुल साधना है।  


रेकी परिचय... रेकी एक जापानीज शब्द है जो दो अक्षरों से बना है। रे - का मतलब होता है वैश्विक प्राण ऊर्जा, और की - का मतलब होता है हमरे शरीर की प्राण ऊर्जा. अर्थार्त - स्वयं की प्राण ऊर्जा को इस ब्रह्माण्ड की प्राण ऊर्जा के साथ जोड़ना. रेकी की सभी साधनायें इसी एक सिद्धांत पर आधारित है।

प्रत्येक मनुष्य इस शक्ति के साथ उत्पन्न होता हैं। और पूरे जीवन इसका जाने अनजाने प्रयोग करता रहता हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने, संत महात्माओं ने जीवन के आरंभ में ही इस विधि को जान लिया था। और वह इसका प्रयोग करते थें। आज भी बहुत से संत महात्मा, साधु, भक्त व तांत्रिक बाबा लोग इसी शक्ति से बढ़े बढ़े चमत्कार करते है। इसको जानना व सीखना बहुत आसान है ओर कोई भी साधक इसको सहज में सीखकर स्वयं व दुसरो का जीवन बदल सकता हैं।


कोर्स के मुख्य लाभों में आप स्वयं को, परिवार को व किसी भी मित्र को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है, एवं रेकी के द्वारा परम आनंद की अनुभूतियां कर शांति के अनुभव के साथ अपने मानसिक तनाव, अनिंद्रा, चिन्ता, दुख, मानसिक, अवरोध, बैचेनी, घबराहट, घृणा, कंठा, द्वेष, भय, काम, क्रोध, मोह, लोभ,अहंकार जेसे रोगों से भी मुक्ति पा सकते है। किसी भी तरह की बिमारी, रोग, दर्द को दूर कर संपूर्ण स्वास्थ्य पा सकते है।


इस रेकी कोर्स से चक्र जाग्रत होते है ओर मन और आत्मा के उत्थान के लिए कुंडलिनी जाग्रति की ओर व चक्रों को जाग्रति की ओर साधक अग्रसर होता है। व आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन होने लगते है। 

इस कोर्स से आप जीवन में जो चाहे पा सकते हैं। जो चाहे बन सकते हैं। अपने सपने पूरे कर सकते है। सुख व समृद्धि पा सकते है। अपने लक्ष्य को पूरा कर सकते है। आपसी संबंधों को सुधार सकते है। किसी भी समस्या का समाधान पा सकते है। भूतादिक नकारात्मक आटैको व नकारात्मक विचारों से बच सकते है। अपने वयक्तित्व में निखार ला सकते हैं। इससे अपने ऊपर विश्वास को व अपनी मानसिक पावर को बढ़ा पायेंगे। कुण्डली में कोई ग्रहदोष हो जैसे मंगल दोष बाधा, साढ़ेसाती दोष बाधा, पितृ दोष बाधा, कालसर्प दोष बाधा, राहु दशा बाधा, शनि दशा बाधा, आदि के प्रभाव से मुक्त हो सकते है। 

 

हम आपको 11 घंटे का कल्पांत रेकी साधना का कोर्स करा रहे हैं। आपको  रोजाना  मात्र एक घंटा 11 दिन तक देना है। यह पूरा कोर्स Online Zoom App पर Live होगा, और Zoom App के माध्यम सें ही रेकी शक्तिपात करके चक्रों को जाग्रत किया जायेगा। ओर Zoom App पर ही आपको मंत्र दिक्षा व शक्तिपात किया जायेगा। जिसमे आपके सातों चक्रों एवं नाड़ियों को जाग्रत किया जाता है, और रेकी ऊर्जा को डिस्टेंस हीलिंग द्वारा आपके शरीर में प्रवाहित किया जाता है। साथ ही आप 11 दिन तक रोजाना मेरे साथ ऊर्जा का एहसास करेंगे ओर अपना उपचार भी करेंगे। Live सेशन के बाद उसके ऑडियो वीडियो आपको वाट्स ग्रुप में  भेजे जाते है ताकि आप उसे सुन के आसानी से घर में रेकी की प्रैक्टिस कर सके. कोर्स के अंत में पीडीऍफ़ बुक भी वाट्स ग्रुप में दी जाएगी।


रेकी में कोई गुरु नहीं है, रेकी एक अनादि अनंत ऊर्जा है जो हम सब के भीतर है। और गुरु कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक अनंत ऊर्जा का रूप है जो हम सब के भीतर है, रेकी के द्वारा हम उस परम तत्त्व अनंत ऊर्जा के रूप को जागृत करने की विधियाँ बताते है जिनका अभ्यास करके आप परम अनंत ऊर्जा (परमात्मा) से जुड़ जायेगे।


रेफ्रेशर कोर्सेस – एक बार कोर्स जोईन करने के बाद अगर आप दूसरी बार कोर्स करने के लिये नये बैच में जोईन करना चाहे तो सेवाशुल्क कम से कम 251/ रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देकर जितनी बार चाहे जोईनिग कर सकते हैं।


कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स में आपको सिखाया जायेगा


कल्पांत रेकी हीलिंग साधना क्या है, हमारा उद्देश्य क्या है, हमारी स्वास्थ्य क्रांति क्या है, रेकी का परिचय, रेकी क्या है, रेकी हीलिंग की आवश्यकता क्या है, सब कुछ ऊर्जा है, रेकी का इतिहास,  रेंकी जागरण का एहसास, मनुष्य की आवश्यकताऐ, रेंकी के 15 सिद्धांत,  रेंकी कौन सीख सकता हैं।,  रेंकी के चरण,  रेंकी की विशेषताएं,  रेंकी ऊर्जा उपचार में रोगी की भूमिका क्या है?,  रेंकी ऊर्जा कैसे कार्य करती है?, ओरा (आभामंडल), ओरा व रोग, औरा को महसूस करना देखना नापना,  ओरा के ग्यारह रंगो की व्याख्या,  ओरा की सफाई,  ओरा कवच,  पंचकोश,  शरीर से ऊर्जा का निकलना,  क्या हमारी ऊर्जा को कोई चुरा सकता है ?,  दुरस्त हीलिंग क्या है,  दुरस्त हीलिंग कैसे काम करती है,  सुदर्शन चक्र की निर्माण विधि,  भारतीय रेकी सिम्बल व सिंबलो का प्रयोग,  नकारात्मक ऊर्जाओ की पहचान, रेकी द्वारा स्पर्श चिकित्सा,  रेकी द्वारा दूसरों को स्पर्श चिकित्सा देने की विधि,  नकारत्मक विचार, व्यसन, क्रोध, चिंता अदि को को दूर करने की रेकी विधि, ओर भी बहुत कुछ 

  

जो आत्मानुभव कोर्स करना चहाते है। उनको इसका सेवाशुल्क कम से कम 1100/रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देना है। जो प्रेमीजन रेकी में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज व देश की रचना मे सहयोग करना चाहते है, वो सेवा शुल्क Paytm या Google pay या phone pe "9899410128" पर या "9958502499" नंबर पर कर सकते है।


या

kalpant sewashram trust के खाते में Bank= oriental bank of commerce Account number = 05262011015007 Ifs code= ORBC0100526, पर भी जमा कर सकते है।


सेवा शुल्क जमा कर व्हाट्सएप नंबर 9958502499 पर स्क्रीन शोर्ट या उसकी फोटो दे, उनको Whatsapp ग्रुप रेकी कोर्स मे जोड़ दिया जायेगा।


और अगर कुछ जानकारी चहिये तो मेरे व्हाटसप नंबर 9958502499 पर संपर्क करें। या कॉल करे।


जगतेश्वर आनंद धाम एवं कल्पांत हिलिंग सेंटर फिजियोथैरेपी, नेचुरोपैथी, एक्युप्रेशर, योग, प्राणायाम, ध्यान साधनाए, रेंकी, स्प्रीचुअल हीलिंग, अहार एवं नेचुरल व हर्बल थैरेपी (ट्रीटमेंन्ट एवं ट्रेनिंग सेंन्टर)

म.नं. 35, यूनाइटेड पैराडाइज,कृष्णा सागर होटल के पीछे, संत निरंकारी आश्रम के पास, मुरादनगर गंगनहर, एन एच 58, मेरठ रोड, गाजियाबाद पिन नं 201206


Contact Dr JP Verma (Swami Jagteswer Anand Ji) { BPT, Md-Acu, C.Y.Ed, G.M Reiki, NDDY & G.M Spiritual Healing} Mob-:9899410128, 9958502499

Monday 29 April 2019

योग के प्रकार

योग के प्रकार

  1. कर्म योग
  2. राज योग
  3. हठयोग
  4. भक्ति योग
  5. कुण्डिलिनी योग
  6. मंत्र योग
  7. ज्ञान योग
          मनुष्य अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी योग क्रिया को कर सकता है। इनमें किसी योग क्रिया को नियमानुसार करना ही योग है। योग का कोई भी रास्ता सरल नहीं है तथा योग के अभ्यास में धैर्य व आत्मविश्वास ही इसकी सबसे बड़ी सफलता है। इन सभी मार्गो पर कठिन अभ्यास को निरंतर करते रहना जरूरी है।
भक्ति योग-
          जिस मनुष्य का स्वभाव भावना या भक्ति में लीन होना हो उसे भक्ति योग कहते हैं। भक्ति चाहे भगवान के प्रति हो, देश के प्रति हो या किसी महान व्यक्ति या गुरू के प्रति हो। 
कर्म योग-
          जो मनुष्य निरंतर अपने काम में लगे रहते हैं, उन्हें कर्मयोगी कहते हैं। योग वशिष्ट में लिखा है- ´´जब कोई मनुष्य अपने अन्दर किसी प्रकार की इच्छा या फल की आशा किये बिना ही निरंतर अपने कार्य को करता रहता है, तो उसके द्वारा किया जाने वाला कर्म ही योग होता है। इस कर्म योग के रास्ते पर चलना अधिक कठिन है। आज लोग किसी काम से पहले उसके फल की इच्छा रखते हैं अत: आज के समय में अपने में ऐसी भावना का त्याग करना ही सबसे बड़ा योग है।
ज्ञान योग-
          ज्ञान योग में ऐसे व्यक्ति आते हैं, जो शास्त्र-पुराणों का अध्ययन करते हैं और अपने ज्ञान के अनुसार ही बातों का अर्थ लगाते हैं। वे अपने ज्ञान व अनुभव के बल पर ही संसार में कुछ अलग कर दिखाते हैं, ऐसे लोग ही ज्ञान योगी कहलाते हैं। इस योग में लीन रहने वाले व्यक्ति अपने बल पर कुछ विशेष भावनाएं मन में लेकर जीते हैं। ऐसे व्यक्ति के मन में ´मैं कौन हूं? मेरा अस्तित्व क्या है ? सांसारिक क्रिया अपने आप क्यों बदलती रहती है? कौन है जो इस संसार को चला रहा है? ऐसे विचार उत्पन्न होने पर वे उस वास्तविता की खोज में निकल जाते हैं। इसे ही आत्मज्ञान कहते हैं। इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जो एकाग्रता व शांति भाव बनाता है और चिंतन करते हुए सत्य की खोज करता है, वही ज्ञान योगी कहलाता है।
राज योग-
          अधिक चिंतन करने वाले तथा अपनी मानसिक क्रिया-प्रतिक्रिया से किसी क्रिया को गहराई से अध्ययन करने वाले लोग ही राजयोगी होते हैं। राज योगी मानव चेतना (सूक्ष्म शक्ति) को जानने की कोशिश करते हैं। इस योग में आत्मदर्शन की गहराईयों में उतरना होता है। योगदर्शन में योग के 8 अंग बतलाए गए है। योग के सभी अंगों को करने से व्यक्तियों को आत्मज्ञान होता है तथा वे उस सूक्ष्म शक्ति का दर्शन कर पाते हैं जिससे यह संसार क्रियाशील है और जिससे मानव का अस्तित्व मौजूद है।
हठयोग-
          हठयोग क्रिया अर्थात किसी क्रिया को ´जबर्दस्ती करना´ है। जब कोई व्यक्ति अपनी चेतना व इच्छा शक्ति को बढ़ाने के लिए या बुद्धि का उच्च विकास के लिए ऐसे रास्ते अपनाते हैं जो अत्यंत कठिन है, तो उसे हठयोग कहते हैं। ऋषि पंतजलि ने अपने ´योग दर्शन´ में कहा है कि अभ्यास के द्वारा चित्तवृति (मन के विचार) को रोकना ही योग है। मन के भटकने या चंचलता को स्थिर कर किसी एक दिशा में केन्द्रित करना ही योग है। फिर मन को किसी आसन में बैठकर रोका जाए या हठयोग क्रिया (जबर्दस्ती) के द्वारा ही रोका जाएं। हठयोग में प्रयोग होने वाले ´ह´ का अर्थ चन्द्र और ´ठ´ का अर्थ सूर्य होता है। योग में नाक के बाएं छिद्र को चन्द्र व दाएं छिद्र को सूर्य कहा गया है। दाएं छिद्र से बहने वाली वायु ´पिंगला´ नाड़ी में बहती है और बाएं छिद्र से बहने वाली वायु ´इड़ा´ नाड़ी में बहती है। शरीर में वायु का संचार होने से ही प्राणी जीवित रहता है। मानव जीवन में शारीरिक क्रिया सूर्य नाड़ी से बहने वाली वायु के कारण होती है और मस्तिष्क की क्रिया चन्द्र नाड़ी से बहने वाली वायु के कारण होती है। सूर्य नाड़ी की अधिक क्रियाशीलता के कारण शारीरिक क्रिया अधिक क्रियाशील रहती है। शारीरिक व मानसिक क्रिया में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों नासिकाओं (नाक के दोनो छिद्र) का समान होना आवश्यक है। हठयोग क्रिया का मुख्य आधार वायु प्रवाह को नाक के दोनों छिद्रों से समान रूप में प्रवाहित करना है। हठयोग के शारीरिक क्रिया को आसन कहते हैं। प्राणायाम व मुद्रा भी हठयोग के अंग हैं। ऐसी क्रिया जिसको करते हुए व्यक्ति को अधिक कष्ट होता है, उसे हठयोग कहते हैं और इससे शारीरिक व मानसिक स्वच्छता प्राप्त होती है।
कुण्डलिनी योग-
          कुण्डलिनी योग ऐसी योग क्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने अन्दर मौजूद कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर दिव्यशक्ति व ज्ञान को प्राप्त करता है। कुण्डलिनी शक्ति को अंग्रेजी भाषा में ´प्लक्सस´ कहते हैं। कुण्डलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में नाभि के निचले हिस्से में सोई हुई अवस्था में रहती है। यही प्राण शक्ति का केन्द्र होता है, जिससे सभी नाड़ियों का संचालन होता है। योगशास्त्रों में मानव शरीर के अन्दर 6 चक्रों का वर्णन किया गया है। कुण्डलिनी शक्ति को जब ध्यान के द्वारा जागृत किया जाता है, तब यही शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर बढ़ते हुए शरीर के सभी चक्रों को क्रियाशील करती है। कुण्डलिनी के साथ 6 चक्रों का जागरण होने से मनुष्य को दिव्यशक्ति व ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस ध्यान के द्वारा अपने शक्ति को जागरण करना ही कुण्डलिनी योग कहलाता है।
मंत्र योग-
          भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्म के अनेक ग्रंथ व वेद, पुराणों में विभिन्न प्रकार के मंत्रों का प्रयोग किया गया है। इनमें प्रयोग किये जाने वाले मंत्रों में अत्यंत शक्ति होती है, क्योंकि इन मंत्रों को पढ़ने से जो ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है, उससे शरीर के स्थूल व सूक्ष्म अंग तक कंपित होते हैं। वैज्ञानिक परीक्षणों से यह साबित हो गया है कि मंत्रों में प्रयोग होने वाले शब्दों में भी शक्ति होती है। मंत्रों में प्रयोग होने वाले कुछ ऐसे शब्द हैं, जिन्हे ´अल्फ वेव्स´ कहते हैं। मंत्र का यह शब्द 8 से 13 साइकल प्रति सैंकेंड में होता है और यह ध्वनि तरंग व्यक्ति की एकाग्रता में भी उत्पन्न होता है। इन शब्दों से जो बनता है, उसे मंत्र कहते हें। मंत्रों का जप करने से व्यक्ति के अन्दर जो ध्वनि तरंग वाली शक्ति उत्पन्न होती है, उसे मंत्र योग कहते हैं।
         कुछ अन्य योग भी हैं जैसे- प्रेमयोग, लययोग, नादयोग, शिवयोग, ध्यानयोग आदि। ये सभी योग के छोटे रूप हैं। इन योग के किसी कार्य को पूर्ण लगन से करना भी योग ही है। भगवान का प्रतिदिन श्रद्धा व भक्ति से ध्यान करना भी योग ही है। 
लययोग-
          भगवान को प्राप्त करने का सबसे आसान व सरल योग है लययोग। प्राण और मन का लय हो जाना ही आत्मा का परमात्मा से मिलना है। आत्मा में ही सब कुछ लय कर देना या लीन हो जाना ही लययोग है। अपने चित्त को बाहरी वस्तुओं से हटाकर अंतर आत्मा में लीन कर लेना ही लय योग है।
नाद योग-
          जिस तरह योग में आसन के लिए सिद्धासन और शक्तियों में कुम्भक प्राणायाम है, उसी तरह लय और नाद भी है। परमात्मा तत्व को जानने के लिए नादयोग को ही महान बताया गया है। जब किसी व्यक्ति को इसमें सफलता मिलने लगती है, तब उसे नाद सुनाई देता है। नाद का सुनाई देना सिद्धि प्राप्ति का संकेत है। नाद समाधि खेचरी मुद्रा से सिद्ध होती है।
प्रेमयोग-

          व्यक्ति के मन में जब किसी कार्य के प्रति सच्ची लगन होती है, तभी प्रेम का उदय होता है। जब व्यक्ति के अन्दर प्रेम या निष्ठा अधिक दृढ़ हो जाती है, तब प्रेमयोग कहलाने लगता है। व्यक्ति के मन में ईश्वर के प्रति प्रगढ़ एवं अगाध श्रद्धा होती है। यह श्रद्धा जब अंतिम अवस्था में पहुंच जाती है, तब भगवान की प्राप्ति होती है।  



Jagteswer Anand Dham Avm Kalpant Healing Center
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Wednesday 11 April 2018

संभोग से आनंद की ओर 22—साधनाऐं


संभोग से आनंद की ओर 22—साधनाऐं




जीवन के कुछ पहलुओं को हमने जाना, ओर भी बहुत से ऐसे पहलू है जो हमारे सुखमय जीवन को बरबाद कर देते है। इसलिये हमे कैसे इस ऊर्जा को बढ़ाना है, कैसे आनंद की पराकाष्ठा तक पहुँचना है, इसे जानना है। इसी को लेकर अग्रलिखित साधनाओ को लिखा गया है। पहली साधना उनके लिये है जो शादीशुदा नही है ओर फिर भी सैक्स की भावना रखते है, उनकी तृप्ति कैसे हो, कैसे आनंद मिले। ओर दूसरी शादीशुदा लोगों के लिये है जिन्होंने जीवन मे पहला कदम रखा है। ओर तीसरी उन लोगों के लिये है जो शादी के बाद कुंठाओ से भर गये है। स्त्री को कहते है कि तू प्यार नही करती ठंडी हो गयीं है ओर पुरूष शीघ्रपतन व नपुंसकता के शिकार हो गये है। स्त्री को तृप्त नही कर पाते हैं। तब वह खुद तो शर्मिंदगी महसूस करते है परन्तु एक दूसरे से कुछ कह नही पाते, ओर मजबूरी मे आनंद से वंचित होकर बार बार कोशिश कर ऊर्जा का ह्मस कर निस्तेज हो जाते है। अतः ये तीनों साधनाऐं सम्पूर्ण जीवन मे आपके काम आयेगी, आप उम्र के किसी भी पड़ाव पर क्यों न हो। ओर आप आज जहाँ भी जीवन की राह पर खड़े हो वही से एक नयी शुरुआत कर पायेंगे। जितनी उपयोगी यह नवयुवक व युवतियों के लिए हे उतनी ही यह नवविवाहित व पुराने दंपति जो जीवन के पड़ाव के अधर मे है उनके लिए है। तो आईये आज आभी जाने इस रहस्यमय साधनाओ को ओर शुरू करें जीवन मे आनंद की एक नई शुरुआत।

संभोग से आनंद की ओर 21 – संभावनाऐं


संभोग से आनंद की ओर 21 – संभावनाऐं




सेक्स में जन्म लेना स्वाभाविक है, इसके लिये कोशिश नही करनी। लेकिन सेक्स में ही मृत्यु होना अस्वाभिक है। अपने बस मे है कि हम सैक्स मे मरे या नही। सेक्स से एक एक कर उच्चतम की ओर कदम उठना ही चाहिए। बीज से प्रारम्भ कर वक्ष तक की यात्रा ही विकास है। लेकिन अधिकतर मनुष्य सेक्स के दोरान दोहराने वाले चक्र में ही जीते हैं। वे एक ही दिनचर्या के साथ परिभ्रमण करते रहते हैं। बिना सजग हुए वही चीजें, जिनके बारे में उन्हें स्वयं यह होश नहीं कि वे एक ही चीज को नजाने कितनी अधिक बार कर चुके हैं, ओर उनसे कुछ भी नहीं मिला, वे उन्हें किए चले जा रहे हैं। वो यह नही जानते कि उन्हें क्या करना चाहिए बस उन्हीं चीजों को दोहराते चले जा रहे हैं। एक ही चक्राकार मार्ग पर घूमते हुए व्यस्त बने रहते हैं।
       वासना अपने आप में एक बीज की भांति है। उसमें पूरी सम्भावना है, वक्ष बनने की, वह ठीक मिट्टी, उचित मौसम और योग्य माली की प्रतीक्षा कर रही है, उसे उस कुशल मनुष्य की प्रतीक्षा है जो अंकुरित होने में उसकी सहायता करे। यह केवल एक सम्भावना है। उसके लिए वृक्ष बनने की कोई अनिवार्यता नहीं है। हो सकता है कि वह कभी कुछ बन ही न सके और पूरी तरह नष्ट ही हो जाए। सदियां गुजर सकती हैं और बीज अंकुरित नहीं होगा। जब बीज ठीक भूमि तक पहुंच जाता है और उसमें विलुप्त हो जाता है। तब बीज मिटता है, ओर तभी वृक्ष का जन्म होता है। जब ' तुम ' विसर्जित हो जाते हो, तभी आत्मा का जन्म होता है। जब आत्मा विलुप्त होती है तो परमात्मा का जन्म होता है ओर अन्नत आनंद का जन्म
         परमात्मा एक स्वप्न की भाँति मनुष्य की आत्मा में छिपा हुआ है। अगर मनुष्य की आत्मा को हम कली समझें, तो परमात्मा पुष्प है। लेकिन यह आदमी की अपनी जीवनरसधार पर ही निर्भर करेगा। वह कितने बलपूर्वक, कितने आग्रहपूर्वक, कितनी शक्ति से, कितनी तीव्रता से भीतर से प्यासा है, कितने जोर से पुकारा है उसने जीवन को, कितने जोर से उसने जीवन की प्राणसत्ता को अपनी तरफ खेचा है। कितने जोर से हम सलंग्न हुए हैं, कितने जोर से हम समर्पित हुए हैं। कितने एकाग्र भाव से हमने चेष्टा की है। इस सब पर निर्भर करेगा कि कली फूल बने कि नही बने। कली से फूल कैसे हो जाऊं, रास्ता तो बताया जा सकता है, लेकिन सब व्यर्थ होगा। क्योंकि रास्ते का सवाल उतना नहीं है, जितना चलने वाले की आंतरिक शक्ति का है। फिर भय कि मेरी जिदगी भी नष्ट न हो जाए, आदमी को धार्मिक नहीं होने देता। डर लगा ही रहता है कि जो है, कहीं वह न छूट जाएं। और जो नहीं है, वह मिलेगा या  नही क्या पता। इस अज्ञात में छलांग लगाने की हिम्मत जो करता है वही कुछ पा पाता है। मिटना तो पड़ेगा ओर  मिटने के बाद  ही आनंद है।

संभोग से आनंद की ओर 20-- आईये जाने सम्भोग को


संभोग से आनंद की ओर 20-- आईये जाने सम्भोग को





संभोग दो विपरीत लिंग के आर्कषण से शुरू होता हैं।  जब वो एक दूसरे को देखते है। तभी से संभोग की शुरूआत हो जाती है। फिर अन्दर से प्रेम, स्पर्श के भाव उठने लगते है। ओर फिर धीरे धीरे दौर शुरू होता हे अन्दर से उठते भावो का, एक दूसरे का स्पर्श, अलिंगन, चुम्बन, मर्दन आदि का, धीरे धीरे वह प्राकृतिक अवस्था मे पहुँचना शुरू करते है, नग्न होते जाते है। ओर एक एक वस्त्र हटाकर दोनों पूर्ण नग्नता को प्राकृतिक अवस्था को प्राप्त कर लेते है। एक दूसरे के शरीर के सौन्दर्य को निहारते है। ओर मन सभी ओर से विचार भावो आदि से हटकर एक्राग होने लगता है। दोनों एक दूसरे मे समा जाने को तत्पर हो जाते है। उस समय दोनों एक दूसरे को पूर्ण सुख देना चहाते हैं।
     यहां अहं नही होता, स्वयं सुख पाने की इच्छा नही होती, एक दूसरे मे सर्मपण की इच्छा होती है। स्पर्श सुख, कर्ण सुख, स्वासों की लहरों का आनंद, शरीर मे बढ़ती हुई तरंगों का आनंद, स्पर्श की एक एक उठने बाली लहरों का आनंद ओर बढ़ते हुए उस अवस्था की ओर जहाँ परम आनंद मिलने वाला होता है। स्त्री पुरूष, प्राकृति परमात्मा, शिव शक्ति का मिलन होना होता हैं।
        ओर फिर ससर्ग का सुख, यौनि मे लिंग के घर्षण के द्वारा ऊर्जा का इतना अधिक बढ़ना कि फिर रूकना कठिन हो रहा होता है। स्खलित होने से पहले के क्षण पर रूको, आनंद की इसी चरम सीमा पर रूको, भोगो इन क्षणों को जहाँ काम नही राम है। आत्मा परमात्मा का मिलन है। स्वंय की विस्मृति ओर परमानंद का आभास, जितना रूकोगे उतना भोगोगे, इस क्षण के लिए कितने कष्ट भोगे, पीड़ाऐ झेली, ओर वह पल आया तो स्खलित हो गये तो सब व्यर्थ हो जायेगा। उस पल मे पहले स्वयं को जान लो आपनी चेतना मे उसका एहसास कर लो फिर चाहे स्खलित होकर समां जाओ एक दुसरे मे, बंधन ढीला नही करना, मजबूती से पकड़ना, एहसास करना इस क्षण का, आनंद का, परमानंद का, अगर एहसास कर लिया तो परमात्मा को पा लोगे। ओर दोनों को जीवन की सृष्टि करने के लिए प्रसाद स्वरूप परमानंद का अनुभव होगा।
        इसी आनंद को मनुष्य भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, राज योग, हट योग, तप योग आदि अनेक रास्तों से पाना चहाते है। ओर सारी सृष्टि के नर नारी इसी आनंद को पाने के लिए प्रयत्न कर रहे है। सभी के रास्ते तरीकें अलग अलग हो सकते है पर मंजिल एक ही है परमानंद की प्राप्ति, ओर जब वह इसे पा लेता है तो साधक ओर साध्य एकाकार हो जाते है, ब्रह्मं की प्राप्ति हो जाती है आत्मसाक्षात्कार हो जाता है। ओर अहं ब्रह्ममस्यामि का उदघोष होता है। उस समय प्रेम, मस्ती, आनंद का अनंत सागर लहरा रहा होता हैं। यहाँ प्रेम, शारिरीक आर्कषण, ऊर्जा का संचरण, एकाग्रता, सुख की तृप्ति, संतान की प्राप्ति, शारिरीक व मानसिक सौन्दर्य के दर्शन का सुख, परमात्मा तत्व से एकाकार होने का सुख, स्पर्श सुख, आत्मविस्मृति, समय विस्मृति, अहं विस्मृति, व समाधि का अनुभव होता है। इस क्षण मे इस क्रिया के द्वारा वह आनंद कुछ पलो मे प्राप्त कर लेते है जिसे पाने के लिए सारा संसार उम्र भर भटकता रहता है। योगी जन घर छोड़ जंगलो मे धक्के खाते है ओर घंटों पूजा पाठ कर्म काण्डो मे लगे रहते है।
       प्राचीन काल मे स्त्रियाँ आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक पुरूषों से संबंध बनाती थी। उन्हें इसका अधिकार होता था। स्त्रियों की इच्छा सर्वपरि होती थी। मातृसत्ता का बाहुलय था। सन्तान की पहचान माँ के नाम से होती थी। परन्तु धीरे धीरे पुरूष प्रधान समाज की रचना हुई ओर सभी अधिकार पुरूषों के हाथ मे आ गये। अंबिका ने ब्यास जी के द्वारा धृतराष्ट को जन्म दिया। अंबालिका ने पाडु को जन्म दिया। इसी प्रकार पाडु की दुसरी पत्नी माद्वी ने पाँच देवताओं से पाँच पुत्र प्राप्त किये। अनेक प्राचीन स्त्रियों ने परपुरूषो से संबंध बनाए है। कुन्ती ने सूर्य से कर्ण को जन्म दिया। अहिल्या ने इन्द्र के साथ, द्रोपदी ने पाँच पाँडवो के साथ, सत्यवती ने ब्यास जी के साथ संभोग से आनंद की तृप्ति प्राप्त की। इस प्रकार यह आनंद व ऊर्जा से सन्तान प्राप्ति का प्राकृतिक नियम सृष्टि के आरंभ से ही चला आ रहा है। परन्तु धीरे धीरे यह सब पाप व निन्दक माना जाने लगा। धर्म के ठेकेदारो ने लाख कोशिश क्यों न की हो, परन्तु क्या वह आज भी सफल हो पाये है नहीं, आज भी स्त्री पुरूष मिलन, प्रेमी प्रेमिका मिलन होता ही रहता है। पर भय के कारण डरा डरा क्षणिक, जो आनंद की सीमा तक नही पहुँच पाता है
     आनंद तक पहुँचने व संभोग को सफल बनाने के लिये स्वभाविक उत्तेजना की जरूरत होती है। इसके लिए एक प्रयोग करके देखिए, पति पत्नी दोनों कमरे मे पूरी रात नग्न अवस्था मे कुछ दिन रहना शुरू कर दे पूर्णतया नग्न दोनों एक पलंग पर रहे, देखो क्या घटित होता है। धीरे धीरे कामवासना खत्म होती जायेगी ओर प्रेम का सही स्वरूप आपके सामने आ जायेगा। अगर आप आत्मा से प्रेम करते हे तो आनंद की सीमा पा लोगे ओर तुम्हारे जीवन का स्वरूप बदल जायेगा, जो डर बचपन से समाया था खत्म हो जायेगा।

संभोग से आनंद की ओर 19 – नग्नता प्राकृतिक व्यवस्था


संभोग से आनंद की ओर 19 – नग्नता प्राकृतिक व्यवस्था




      जब भी कोई जीव पैदा होता हैं। तो पूर्णता नग्न होता है। वहाँ लिंगो का भेदभाव नही होता। संसार के सभी जीव उम्र भर (मनुष्य को छोडकर) नग्न रहते हैं। ओर उनमे पूरी उम्र कामवासना का सन्तुलन बना रहता है। नग्न रहने से शरीर को वाहय वातावरण के अनुरूप रहने की शक्ति मिलती है। सूरज की रोशनी से अनेक कीटाणुओ का नास हो जाता है व विटामिन डी प्राप्त होता हैं। जिससे ऊर्जा मिलती हैं। मनुष्य ने संसार की प्रत्येक व्यवस्था के स्वरूप को बदला है। जिससे लाभ के साथ साथ हानि भी उठा रहा है।
      शक्ति का सही प्रयोग चमत्कार करता है। काम ऊर्जा मे इतनी शक्ति होती है कि एक शुक्राणू नारी के डिम्ब से मिलकर पूरे मनुष्य का निर्माण करता है ओर वह कृष्ण, राम, बुद्ध, ईसा, सचिन, वैज्ञानिक, व दार्शनिक का निर्माण कर सकती है। ओर यदि विकृत हो जाये तो रावण, कंस, आतंकवादी आदि व्यक्ति भी इसी ऊर्जा से पैदा होते है। इसलिए काम को जाने बिना राम को जानना असंभव है।
     बचपन से हम धर्म, समाज, परिवार, गुरु, संत महात्माओ आदि के द्वारा काम कृत्य की निन्दा व पाप कर्म समझते आये है। बचपन से ही सैक्स के बारे मे इतनी निन्दा व घृणा भर दी जाती हे कि शादी के बाद हम संभोग की क्रियाओं मे अपराध भाव से भाग लेते है। ओर जल्द बाजी, भय, अपराध युक्त सैक्स करते हैं। इसलिए शरीर क्षीण हो जाता है। कामनाऐ व वासनाऐ, आनंद प्राप्ति की इच्छाऐं बुढ़ापे मे योवन सै भी अधिक प्रबल होती जाती है ओर उस अतृप्त अवस्था मे ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। धर्मो मे नारी को नरक का द्वार कहा गया है परन्तु यह ही आनंद का द्वार हैं। परमात्मा प्राप्ति का द्वार हैं। यह बहुत कम लोगों ने जाना व माना हैं।
           पहली रात सुहागरात वाले दिन जब मौका मिलता है नग्न स्त्री को देखने का तो कामोतेजना बढ़ जाती हैं। ओर अस्वाभिक स्थिति पैदा हो जाती हैं। ओर उस समय पहली बार हम क्षणिक आनंद को महसूस करते है। जिसे समाज ने पूरी तरह नकारा, फिर उसे बार बार दोहराते है परन्तु भय व जल्दबाजी के साथ, बुरा कृत्य मानकर, इसलिए पूर्ण ऊर्जा के आनंद से हम वंचित रह जाते है।
       इस प्रकार मनुष्य जब नंगा पैदा होता है जाता भी नंगा है तो बीच मे वस्त्रों से क्यों लदा रहता है। इसलिये शादी के बाद स्त्री पुरूष को अपने कमरे मे पूर्ण नग्न अवस्था मे रहना चाहिए। कुछ दिनों मे मन की उत्तेजनाऐ समाप्त हो जायेगी। अपराध बोध खत्म हो जायेंगे ओर जीवन के सच्चे आनंद को समझ पायेंगे।
           आज भी जहाँ लोग नंगे रहते हे जिन कबीलो मे नग्नता है वहाँ बलात्कार, अपहरण व सैक्स के लिए अपराध नही किए जाते। उनका जीवन अधिक स्वस्थ्य, सुखी व संपन्न है। नार्वे स्वीडन देशों मे अनेक जनजातीय है जो नग्न रहती है ओर वहाँ अपराध नही होते हैं।
         आज मिडिया, फिल्मों, गीतों, नत्यो, विज्ञापनो, नाटकों, धारावाहिको को देखें तो सभी नग्न होना चाह रहे होते हैं। परन्तु सभ्यता व आदर्श बाद के भय से पूर्ण नग्न नही हो पाते ओर पूर्ण ढक भी नही पाते क्योंकि सत्यता को ढक नही सकते। जब भी कोई सैक्सी फिल्म आती है तो भीड़ टूट पड़ती है, नग्नता को देखने के लिए, क्योंकि उसे छुपाया गया है। परन्तु बहार आकर वही व्यक्ति समाज के भय से ऊपरी मन से कहता है कि बड़ी गंदी फिल्म बनाई हैं। जबकि वह खुद उस नग्नता को देखने को बेचैन था ओर उसे पहले से पता था कि अन्दर फिल्म मे क्या हैं।
       इसी प्रकार हमारे अन्दर तो सैक्स की नग्नता भरी पड़ी है ओर बहार बात करते हे कपड़े से ढकने की। धर्म के ठेकेदार ही बलात्कार के केसो मे फँस रहे है, बड़े बड़े योगी सन्त स्त्रियों से घिरे रहते है। क्योंकि बहार से कुछ भी कहे अन्दर तो सैक्स दबा पढ़ा है। इसी कारण आज जीवन का आनंद समाप्त हो गया है। प्रत्येक स्त्री पर पुरूषगामी व पुरूष परस्त्री गामी होते जा रहे है। प्रत्येक दूसरे मे उस आनंद को ढूंढने की कोशिश करता है। प्रत्येक स्त्री पुरूष के अन्दर सैक्स की अतृप्त भूख भरी पड़ी हैं। परन्तु बहार से तृप्त दिखाने की कोशिश करता रहता है। बहुत से लोग तो जीवन भर उस चरम आनंद तक नही पहुँच पाते। ओर जब भी कभी उसे मौका मिलता है इच्छा पूर्ति का तो वह टूट पड़ता हैं। सही गलत वह उस समय नही देखता। इस प्रकार बहुत लोगों का जीवन युंही अतृप्ति मे तड़पते हुये बीतता हैं।