Wednesday 11 April 2018

संभोग से आनंद की ओर 19 – नग्नता प्राकृतिक व्यवस्था


संभोग से आनंद की ओर 19 – नग्नता प्राकृतिक व्यवस्था




      जब भी कोई जीव पैदा होता हैं। तो पूर्णता नग्न होता है। वहाँ लिंगो का भेदभाव नही होता। संसार के सभी जीव उम्र भर (मनुष्य को छोडकर) नग्न रहते हैं। ओर उनमे पूरी उम्र कामवासना का सन्तुलन बना रहता है। नग्न रहने से शरीर को वाहय वातावरण के अनुरूप रहने की शक्ति मिलती है। सूरज की रोशनी से अनेक कीटाणुओ का नास हो जाता है व विटामिन डी प्राप्त होता हैं। जिससे ऊर्जा मिलती हैं। मनुष्य ने संसार की प्रत्येक व्यवस्था के स्वरूप को बदला है। जिससे लाभ के साथ साथ हानि भी उठा रहा है।
      शक्ति का सही प्रयोग चमत्कार करता है। काम ऊर्जा मे इतनी शक्ति होती है कि एक शुक्राणू नारी के डिम्ब से मिलकर पूरे मनुष्य का निर्माण करता है ओर वह कृष्ण, राम, बुद्ध, ईसा, सचिन, वैज्ञानिक, व दार्शनिक का निर्माण कर सकती है। ओर यदि विकृत हो जाये तो रावण, कंस, आतंकवादी आदि व्यक्ति भी इसी ऊर्जा से पैदा होते है। इसलिए काम को जाने बिना राम को जानना असंभव है।
     बचपन से हम धर्म, समाज, परिवार, गुरु, संत महात्माओ आदि के द्वारा काम कृत्य की निन्दा व पाप कर्म समझते आये है। बचपन से ही सैक्स के बारे मे इतनी निन्दा व घृणा भर दी जाती हे कि शादी के बाद हम संभोग की क्रियाओं मे अपराध भाव से भाग लेते है। ओर जल्द बाजी, भय, अपराध युक्त सैक्स करते हैं। इसलिए शरीर क्षीण हो जाता है। कामनाऐ व वासनाऐ, आनंद प्राप्ति की इच्छाऐं बुढ़ापे मे योवन सै भी अधिक प्रबल होती जाती है ओर उस अतृप्त अवस्था मे ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। धर्मो मे नारी को नरक का द्वार कहा गया है परन्तु यह ही आनंद का द्वार हैं। परमात्मा प्राप्ति का द्वार हैं। यह बहुत कम लोगों ने जाना व माना हैं।
           पहली रात सुहागरात वाले दिन जब मौका मिलता है नग्न स्त्री को देखने का तो कामोतेजना बढ़ जाती हैं। ओर अस्वाभिक स्थिति पैदा हो जाती हैं। ओर उस समय पहली बार हम क्षणिक आनंद को महसूस करते है। जिसे समाज ने पूरी तरह नकारा, फिर उसे बार बार दोहराते है परन्तु भय व जल्दबाजी के साथ, बुरा कृत्य मानकर, इसलिए पूर्ण ऊर्जा के आनंद से हम वंचित रह जाते है।
       इस प्रकार मनुष्य जब नंगा पैदा होता है जाता भी नंगा है तो बीच मे वस्त्रों से क्यों लदा रहता है। इसलिये शादी के बाद स्त्री पुरूष को अपने कमरे मे पूर्ण नग्न अवस्था मे रहना चाहिए। कुछ दिनों मे मन की उत्तेजनाऐ समाप्त हो जायेगी। अपराध बोध खत्म हो जायेंगे ओर जीवन के सच्चे आनंद को समझ पायेंगे।
           आज भी जहाँ लोग नंगे रहते हे जिन कबीलो मे नग्नता है वहाँ बलात्कार, अपहरण व सैक्स के लिए अपराध नही किए जाते। उनका जीवन अधिक स्वस्थ्य, सुखी व संपन्न है। नार्वे स्वीडन देशों मे अनेक जनजातीय है जो नग्न रहती है ओर वहाँ अपराध नही होते हैं।
         आज मिडिया, फिल्मों, गीतों, नत्यो, विज्ञापनो, नाटकों, धारावाहिको को देखें तो सभी नग्न होना चाह रहे होते हैं। परन्तु सभ्यता व आदर्श बाद के भय से पूर्ण नग्न नही हो पाते ओर पूर्ण ढक भी नही पाते क्योंकि सत्यता को ढक नही सकते। जब भी कोई सैक्सी फिल्म आती है तो भीड़ टूट पड़ती है, नग्नता को देखने के लिए, क्योंकि उसे छुपाया गया है। परन्तु बहार आकर वही व्यक्ति समाज के भय से ऊपरी मन से कहता है कि बड़ी गंदी फिल्म बनाई हैं। जबकि वह खुद उस नग्नता को देखने को बेचैन था ओर उसे पहले से पता था कि अन्दर फिल्म मे क्या हैं।
       इसी प्रकार हमारे अन्दर तो सैक्स की नग्नता भरी पड़ी है ओर बहार बात करते हे कपड़े से ढकने की। धर्म के ठेकेदार ही बलात्कार के केसो मे फँस रहे है, बड़े बड़े योगी सन्त स्त्रियों से घिरे रहते है। क्योंकि बहार से कुछ भी कहे अन्दर तो सैक्स दबा पढ़ा है। इसी कारण आज जीवन का आनंद समाप्त हो गया है। प्रत्येक स्त्री पर पुरूषगामी व पुरूष परस्त्री गामी होते जा रहे है। प्रत्येक दूसरे मे उस आनंद को ढूंढने की कोशिश करता है। प्रत्येक स्त्री पुरूष के अन्दर सैक्स की अतृप्त भूख भरी पड़ी हैं। परन्तु बहार से तृप्त दिखाने की कोशिश करता रहता है। बहुत से लोग तो जीवन भर उस चरम आनंद तक नही पहुँच पाते। ओर जब भी कभी उसे मौका मिलता है इच्छा पूर्ति का तो वह टूट पड़ता हैं। सही गलत वह उस समय नही देखता। इस प्रकार बहुत लोगों का जीवन युंही अतृप्ति मे तड़पते हुये बीतता हैं।

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