Sunday 31 July 2016

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Thursday 28 July 2016

कावड़ का रहस्य

कावड़ का रहस्य
 आज करोड़ों लोग आस्था के नाम पर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। शायद प्रत्येक के मन में यह अंधविश्वास है कि शिव मंदिर में जल चढ़ाने से मन की इच्छाएं पूरी हो जाएंगी, हमारे पाप कम हो जाएंगे या कुछ पुण्य कमा लेंगे, आज के विज्ञानिक व आध्यात्मिक युग की गहराइयों को जानने वाले भारत में इतना बड़ा अंधविश्वास केवल यह दर्शाता है कि लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कितने पागल हैं, या उनके मन की चंचलता का इससे पता चलता है कि वो संन्तुष्ट नहीं हैं।
 आज अगर सभी कावड़ लाने वाले वालों से एक सवाल पूछा जाए कि आपको कावड़ लाने के बाद क्या ऐसा मिल जाएगा जो न लाने वाले को नहीं मिलेगा, शायद किसी के पास भी इसका कोई सटीक जवाब नहीं होगा। वह एक अंधविश्वास जो सदियों से चला रहा है, हम उसी के पीछे दौड़ रहे हैं, और उसके पीछे छुपे रहस्य को भूल जाते हैं, जो सच था वह कहीं खो जाता है।
 सत्य की बात बाद में करेंगे आईये पहले देखते हैं की कावड़ लाने वालों को क्या-क्या मिल रहा है। करोड़ो लोग पैदल यात्रा कर रहे हैं, उनके पैरों की हालत इतनी खराब हो गई है कि छाले पड़ गए हैं, सूजन आ गई है, घाव हो रहे हैं, चलना बस की नहीं है, फिर भी मजबूरी है चलना क्योंकि हमने आस्था के नाम पर यही सुना है, कि अब पैदल यात्रा ही करनी है। कई सौ किलोमीटर की यात्रा में बरसात व गर्मी को झेलने से वायरल का फैलना, बुखार सर्दी जुखाम की परेशानिया होना आम बात है। हर साल सावन में कांवड़ यात्रा में हादसे होते हैं, और बहुत से लोगो के जीवन का अंत हो जाता है, और फिर उनके परिवार वाले जीवन भर इसका दुखः झेलते हैं। हरिद्वार में जाकर 5 रू के काम के मजबूरी में 100 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जहाँ 50रू में पेट भर अच्छा खाना मिल जाता है वहां 200रू में भी पेट नहीं भरता। किसी को समान चोरी का दुख, तो किसी को शारीरिक व मानसिक कष्ट। चलो जो कावंड ला रहे हैं, वो तो परेशान हो ही रहे हैं अंधविश्वास के लिए, परंतु उनके इस कृत्य से पूरा प्रशासन परेशान हो रहा है। उनकी सुरक्षा को लेकर, उनके उपद्वव को लेकर, पूरी व्यवस्था में हजारों लोग तैनात हैं कि कहीं कोई अप्रिय घटना ना घट जाए। और हजारों ऐसे लोग जो रोजाना कमाते है तब खाते हैं उनके काम 8 दिन तक बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से वह भी शायद अपने मन से कहीं ना कहीं इन को बुरा ही कहते होंगे। सभी स्कूल बंद करने पड़ते हैं आठ दिन तक जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पढ़ता है। हजारों लोग नौकरी पर नहीं जा पाते, फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ती हैं, करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है इस अंधविश्वास से। इस प्रकार हमारे भारत में बहुत से अंधविश्वास है जिनको हम आस्था के नाम पर निभा रहे हैं, परन्तु इनको करने से मिलता तो कुछ नहीं, पर खोते बहुत कुछ है।
 अब देखते हैं, कावंड का अध्यात्मिक रहस्य क्या है। हम सभी इच्छाओं को पूरी करने के लिए अंधविश्वास में दौड़ लगाते हैं। और लाखों लोगों में कुछ की इच्छाएं पूरी होती हैं कैसे। हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र होते हैं और जिनमें स्वाधिष्ठान चक्र हमारी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य इस चक्र को जब जागृत करता है, तो उसकी जो भी इच्छाएं होती हैं, वो घटित हो जाती हैं। परंतु यह उसकी श्रद्वा और विश्वास के साथ कार्य करता है। इस को जागृत करने का मूल मंत्र बं (बम) हैं। और जब हम कावड़ लाते हैं तो लगाता बम बम का उच्चारण करते रहते हैं, और उस बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र में जागृति पैदा होती है, और उस समय आस्था की वजह से हमारे मन में शंका व अविश्वास भी नहीं होता है, तो हम जो इच्छा लेकर कावड़ ला रहे हैं वह घटित हो जाती है। पर कितने लोग इस श्रद्धा व विश्वास के साथ कावंड ला रहे हैं शायद बहुत कम। इसलिए लाखों में कुछ लोगों की इच्छा ही पूरी हो पाती हैं, बाकी सब व्यक्ति व्यर्थ ही परेशान होते हैं।
अब जब हमें पता होता है, कि हम केवल बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करके अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं तो इतना कर्मकांड क्यों, यही अंधविश्वास है। हमारे संतो ने स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने के लिए इसके रहस्य को आस्था से जोड़ दिया और लोग इस आस्था के नाम पर अंधविश्वास में दौड़ लगाने लगे। आध्यात्मिकता के साथ कुछ शारीरिक लाभ भी मिलते हैं जैसे कष्टों को झेलने से आपकी प्रतिरोधक क्षमता व सहनशक्ति बढ़ती है। आपके अंदर संकल्प को पूरा करने की इच्छा शक्ति मजबूत होती है और श्रद्धा व विश्वास बढ़ता है पर क्या इसको पाने के लिए इतना सब कुछ करना उचित है सोचे?
स्वामी जगतेश्वर आनंद जी (स्वंतत्र लेखक व समाजिक कार्यकर्ता) म.नं. 9958502499
 आज करोड़ों लोग आस्था के नाम पर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। शायद प्रत्येक के मन में यह अंधविश्वास है कि शिव मंदिर में जल चढ़ाने से मन की इच्छाएं पूरी हो जाएंगी, हमारे पाप कम हो जाएंगे या कुछ पुण्य कमा लेंगे, आज के विज्ञानिक व आध्यात्मिक युग की गहराइयों को जानने वाले भारत में इतना बड़ा अंधविश्वास केवल यह दर्शाता है कि लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कितने पागल हैं, या उनके मन की चंचलता का इससे पता चलता है कि वो संन्तुष्ट नहीं हैं।
 आज अगर सभी कावड़ लाने वाले वालों से एक सवाल पूछा जाए कि आपको कावड़ लाने के बाद क्या ऐसा मिल जाएगा जो न लाने वाले को नहीं मिलेगा, शायद किसी के पास भी इसका कोई सटीक जवाब नहीं होगा। वह एक अंधविश्वास जो सदियों से चला रहा है, हम उसी के पीछे दौड़ रहे हैं, और उसके पीछे छुपे रहस्य को भूल जाते हैं, जो सच था वह कहीं खो जाता है।
 सत्य की बात बाद में करेंगे आईये पहले देखते हैं की कावड़ लाने वालों को क्या-क्या मिल रहा है। करोड़ो लोग पैदल यात्रा कर रहे हैं, उनके पैरों की हालत इतनी खराब हो गई है कि छाले पड़ गए हैं, सूजन आ गई है, घाव हो रहे हैं, चलना बस की नहीं है, फिर भी मजबूरी है चलना क्योंकि हमने आस्था के नाम पर यही सुना है, कि अब पैदल यात्रा ही करनी है। कई सौ किलोमीटर की यात्रा में बरसात व गर्मी को झेलने से वायरल का फैलना, बुखार सर्दी जुखाम की परेशानिया होना आम बात है। हर साल सावन में कांवड़ यात्रा में हादसे होते हैं, और बहुत से लोगो के जीवन का अंत हो जाता है, और फिर उनके परिवार वाले जीवन भर इसका दुखः झेलते हैं। हरिद्वार में जाकर 5 रू के काम के मजबूरी में 100 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जहाँ 50रू में पेट भर अच्छा खाना मिल जाता है वहां 200रू में भी पेट नहीं भरता। किसी को समान चोरी का दुख, तो किसी को शारीरिक व मानसिक कष्ट। चलो जो कावंड ला रहे हैं, वो तो परेशान हो ही रहे हैं अंधविश्वास के लिए, परंतु उनके इस कृत्य से पूरा प्रशासन परेशान हो रहा है। उनकी सुरक्षा को लेकर, उनके उपद्वव को लेकर, पूरी व्यवस्था में हजारों लोग तैनात हैं कि कहीं कोई अप्रिय घटना ना घट जाए। और हजारों ऐसे लोग जो रोजाना कमाते है तब खाते हैं उनके काम 8 दिन तक बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से वह भी शायद अपने मन से कहीं ना कहीं इन को बुरा ही कहते होंगे। सभी स्कूल बंद करने पड़ते हैं आठ दिन तक जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पढ़ता है। हजारों लोग नौकरी पर नहीं जा पाते, फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ती हैं, करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है इस अंधविश्वास से। इस प्रकार हमारे भारत में बहुत से अंधविश्वास है जिनको हम आस्था के नाम पर निभा रहे हैं, परन्तु इनको करने से मिलता तो कुछ नहीं, पर खोते बहुत कुछ है।
 अब देखते हैं, कावंड का अध्यात्मिक रहस्य क्या है। हम सभी इच्छाओं को पूरी करने के लिए अंधविश्वास में दौड़ लगाते हैं। और लाखों लोगों में कुछ की इच्छाएं पूरी होती हैं कैसे। हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र होते हैं और जिनमें स्वाधिष्ठान चक्र हमारी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य इस चक्र को जब जागृत करता है, तो उसकी जो भी इच्छाएं होती हैं, वो घटित हो जाती हैं। परंतु यह उसकी श्रद्वा और विश्वास के साथ कार्य करता है। इस को जागृत करने का मूल मंत्र बं (बम) हैं। और जब हम कावड़ लाते हैं तो लगाता बम बम का उच्चारण करते रहते हैं, और उस बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र में जागृति पैदा होती है, और उस समय आस्था की वजह से हमारे मन में शंका व अविश्वास भी नहीं होता है, तो हम जो इच्छा लेकर कावड़ ला रहे हैं वह घटित हो जाती है। पर कितने लोग इस श्रद्धा व विश्वास के साथ कावंड ला रहे हैं शायद बहुत कम। इसलिए लाखों में कुछ लोगों की इच्छा ही पूरी हो पाती हैं, बाकी सब व्यक्ति व्यर्थ ही परेशान होते हैं।
अब जब हमें पता होता है, कि हम केवल बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करके अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं तो इतना कर्मकांड क्यों, यही अंधविश्वास है। हमारे संतो ने स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने के लिए इसके रहस्य को आस्था से जोड़ दिया और लोग इस आस्था के नाम पर अंधविश्वास में दौड़ लगाने लगे। आध्यात्मिकता के साथ कुछ शारीरिक लाभ भी मिलते हैं जैसे कष्टों को झेलने से आपकी प्रतिरोधक क्षमता व सहनशक्ति बढ़ती है। आपके अंदर संकल्प को पूरा करने की इच्छा शक्ति मजबूत होती है और श्रद्धा व विश्वास बढ़ता है पर क्या इसको पाने के लिए इतना सब कुछ करना उचित है सोचे?
स्वामी जगतेश्वर आनंद जी (स्वंतत्र लेखक व समाजिक कार्यकर्ता) मो.नं. 9958502499

Tuesday 12 July 2016

संभोग से आनंद की ओर 16 - अतृप्ति का कारण


संभोग से आनंद की ओर 16 - अतृप्ति का कारण







          अतृप्ति की शुरुआत बहुत पहले हो चुकी होती हे, शायद बचपन से, जहाँ से लिंगो मे भेदभाव किया जाता हे, वहाँ से । लड़कों व लडकियों मे भेदभाव एक हीन भावना पैदा करता है, ओर जीवन भर यह विचार कि मे नारी हूँ, अलग हूँ, केवल इसी बात से जीवन के हर मोड पर समझोता करती जाती है, ओर जब शादी तक बात पहुँचती है, तो उसके बहुत से स्वप्न होते हे, लडके को लेकर, परिवार को लेकर, उसके विचारों को लेकर, ओर जब लडके को देखा जाता हे तो जरूरी नही वह उसकी भावना के अनुरूप मिले, परन्तु वहां भी वह समझोता कर लेती हैं। कभी समाजिक परिस्थितियों के कारण (बिरादरी, दान, दहेज, अदि) तो कभी परिवारिक परिस्थितियों के कारण।

       अब अंतिम इच्छा प्रेम आनंद या संभोग मे तृप्ति की होती है, ओर किसी कारण से अगर वहाँ वह तृप्त नही हुई, तो वही से वह विखर जाती हैं। चाह कर भी समझोता करना कठिन होता है, ओर फिर जहाँ कहीं भी उसकी भावना पूर्ण होती दिखाई देती है, वह वहाँ सर्वस्व निछावर कर देती हैं। काश: शुरू मे ही उसकी भावनाओं का ख्याल किया होता तो यह बिखराव ही पैदा न होता।

         इस प्रकार ऊर्जा का संचय ओर आनंद की पराकाष्ठा हमारे बिखराव भटकाव ओर अत्याचार को रोकता है। परिवार को टूटने से बचाने के लिये इस प्रकार हमें अपने संचय को बढ़ाना है। शादी से पहले अप्राकृतिक संभोगो से बचना है। मन की हीन भावनाओं का त्याग करना हैं। ओर शादी से पहले भी यदि हमें संभोग करना हो तो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप संयम के साथ ऊर्जा का संचय करना  है। जिससे जीवन मे आगे बढ़ने के लिये उत्साह प्राप्त हो न कि हीन भावना ओर नीरसता

संभोग से आनंद की ओर 15 - संभोग से अतृप्ति


संभोग से आनंद की ओर 15 - संभोग से अतृप्ति






       चलिये प्रेम की बात करते हैं। प्रेम प्यार जो हर व्यक्ति को होता हैं। हम विपरीत लिंगी के प्रति आकृषित होते हे ओर वह आकृषण ही प्यार कहलाता हैं। परन्तु जब हम उस साथी के साथ एक बार सैक्स कर लेते हे तो या तो वह प्रेम की भावना बढ़ जाती है या खत्म हो जाती हैं। कभी कभी तो दो चार बार सैक्स करने के बाद वह प्रेमी एक दूसरे से दूर होने लगते है जो एक दूसरे पर जान छिड़कते थे कयो ? क्योंकि उन्होंने उस शक्ति को नही जाना ओर जैसे ही वो उस आनंद के पास पहुंचे स्खलन हो गया ओर निस्तेजता छा गयी, इंद्रिये सुख तो मिला परन्तु आत्मिक तृप्ति नही हुई, ओर अगर आत्मिक तृप्ति मिल जाती तो हमारा आर्कषण बढ़ जाता, ओर संबंधो मे घनिष्ठा आ जाती क्योंकि उस तृप्ति से आनंद की प्राप्ति हुई है, ऊर्जा का सचय हुआ है। परन्तु ऐसा क्यों होता है कि हम केवल इंद्रिये तृप्ति तक ही सीमित रहकर सैक्स करते हैं। इससे अधिक नही, ओर रिश्तों मे दूरियां आती जाती हैं। क्योंकि हमें किसी ने रास्ता नही दिखाया। आज तो आनंद की कल्पना भी करना दुसाध्य होता जा रहा है। क्योंकि जब हम 15-16 वर्ष की अवस्था मे होते है तभी से उस ऊर्जा को ह्रास कर तृप्त होना चहाते है, ओर अप्राकृतिक क्रियाएँ अपनाते है, जिससे कुछ दिनों तक तो तृप्ति मिलती हैं, परन्तु जब संभोग का मौका मिलता है तो वह संयम के लायक नही रहता ओर अपने साथी को अतृप्त ही छोड़ देता हैं। वहीं से दूरियां शुरू हो जाती हैं। कुंठाऐ पैदा होने लगती है ओर फिर जीवन भर वह उन कुंठाऔ के सहारे आत्म द्रंद मे उलझा हुआ तनाव युक्त जीवन व्यतीत करता हैं। ऐसी स्थिति स्त्री पक्ष से भी होती हैं। दोनों की एक सी ही हालत हैं। आज दोनों ही अप्राकृतिक तरीके अपनाते है फिर वह अतृप्त स्त्री पुरुष अपनी तृप्ति का रास्ता ढूंढते हैं। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते है ओर जो प्रेम संबंध मधुर बन जाता वह बिखर कर तलाक नामे मे बदल जाता है या जीवन जीना दुर्लभ हो जाता हैं। आजकल बढती आत्महत्या भी इसी अतृप्ति का कारण हैं।

शादी का पहला दिन सुहागरात बनाने की परम्परा से जीवन की शुरुआत होती हैं। जिसका मुख्य भाग सभोग ही है। यदि पहली रात दोनों एक दुसरे को तृप्त कर पाये ऊर्जा का संचय कर पाये, आनंद की पराकाष्ठा को पार कर सके तो उनके जीवन की शुरुआत अनन्त प्रेम के साथ होगी नहीं तो अतृप्ति मे कुंठाओ के साथ, ओर ये कुंठाऐ ही सभी यौन अपराधों की जननी होती हैं। अतृप्ति से ही अत्याचार बढ़ते हैं।

संभोग से आनंद की ओर 14- संभोग ध्यान की अवस्था


संभोग से आनंद की ओर 14- संभोग ध्यान की अवस्था







           सही मे संभोग एक प्रकार के ध्यान की उच्चतम अवस्था ही हैं। मनुष्य जितनी ऊर्जा व शक्ति इस कार्य मे खर्च करता हे उतनी किसी ओर कार्य मैं नही, वह इतने मनोयोग से इस कार्य को करता है कि उसकी सम्पूर्ण चितवृतियाँ एकीकरण व केंद्रीयकरण हो जाती है, ओर संभोग की चरम सीमा पर कुछ पल ध्यान दे तो आनंद की पराकाष्ठा वाली भावना आ जाती है, ओर शरीर के सभी अंगों को क्रियामय रखकर अलोकिक शक्ति प्राप्त की जा सकती हैं। माँ काली ओर शिव का संभोग, यौनि के साथ लिंग की पूजा, राधा कृष्ण का प्रेम, विभिन्न गुफाओ मै संभोगकृत मूर्तियाँ ये सभी इसी ओर संकेत करती हे, कि संभोग केवल भोग नही साधना है। उस आनंद रूप को जानने का, इस प्रकार संभोग, परमानंद की वह दशा है जिसका वर्णन नही किया जा सकता। केवल ओर केवल अनुभव करके ही जाना जा सकता हैं। ओर कोई माध्यम नही हैं।

संभोग से आनंद की ओर 13- ऊर्जा का चक्र


संभोग से आनंद की ओर 13- ऊर्जा का चक्र








          स्त्री व पुरूष परस्पर विपरीत परन्तु एक दूसरे को आकृषित करनेवाली शक्तियाँ हैं। प्रत्येक मनुष्य के शरीर से हर समय ऊर्जा निकलती रहती हैं। जिसे आभामण्डल कहा जाता हैं। यह सामान्य आँखों से दिखाई नही देता परन्तु अपना अस्तित्व रखता हैं। अपना प्रभाव डालता हैं। यह प्रत्येक शरीर का अलग अलग होता है ओर इसका प्रभाव उन सभी पर पडता हे जो सम्पर्क मे आते है। इस प्रकार यह आर्कषण प्राकृतिक हैं। यह ऊर्जा पैदा करने से बढ़ जाता हैं। आज आभामण्डल से रोगों का एवम् आपकी आदतों का पता चल जाता हैं। पूरे अस्तित्व को यह आभामण्डल दर्शाता हैं। तथा जब हम ऊर्जा का प्रयोग करते हे तो इसमें तीव्र वृद्धि होती हैं। जिससे हमारे चारों तरफ प्रसन्नता, निरोगता, व अर्कषण अर्थात प्रेम की अनुभूतियाँ होती हैं।


                http://naturopathytherapy.blogspot.in/

संभोग के समय शरीर की प्रत्येक ग्रन्थि काम करने लगती हैं। प्रत्येक ग्रन्थि से स्राव होने लगता हैं। सभी अंग तीव्रता से काम करने लगते हैं। साँसो की गति बढ़ जाती हैं। नाड़ी 100 से भी ज्यादा बार धड़कने लगती हैं। तापमान 105°-106°F तक आ जाता हैं। जो सामान्य अवस्था मे मृत्यु का कारण बन सकता हैं। आखिर ये चमत्कार क्या है, क्यों मनुष्य सुधबुध खो देता है, इक अनजानी दुनिया मे चला जाता हैं। विज्ञान के पास इन बातों का कोई जबाब नही है कि उस समय इतनी ऊर्जा कैसे उत्पन्न होती हैं।