संभोग से आनंद की ओर
20-- आईये जाने सम्भोग को
संभोग दो विपरीत लिंग के आर्कषण से शुरू होता हैं।
जब वो एक दूसरे को देखते है। तभी से संभोग
की शुरूआत हो जाती है। फिर अन्दर से प्रेम, स्पर्श के भाव उठने लगते है। ओर फिर धीरे धीरे दौर शुरू
होता हे अन्दर से उठते भावो का, एक दूसरे का स्पर्श, अलिंगन, चुम्बन, मर्दन आदि का, धीरे धीरे वह प्राकृतिक अवस्था मे
पहुँचना शुरू करते है, नग्न होते जाते है। ओर एक एक वस्त्र हटाकर दोनों पूर्ण
नग्नता को प्राकृतिक अवस्था को प्राप्त कर लेते है। एक दूसरे के शरीर के सौन्दर्य
को निहारते है। ओर मन सभी ओर से विचार भावो आदि से हटकर एक्राग होने लगता है। दोनों
एक दूसरे मे समा जाने को तत्पर हो जाते है। उस समय दोनों एक दूसरे को पूर्ण सुख
देना चहाते हैं।
यहां अहं नही होता, स्वयं सुख पाने की इच्छा नही होती, एक दूसरे मे सर्मपण की इच्छा होती है। स्पर्श
सुख, कर्ण सुख, स्वासों की लहरों का आनंद, शरीर मे बढ़ती हुई तरंगों का आनंद, स्पर्श की एक एक उठने बाली लहरों का आनंद ओर
बढ़ते हुए उस अवस्था की ओर जहाँ परम आनंद मिलने वाला होता है। स्त्री पुरूष, प्राकृति परमात्मा, शिव शक्ति का मिलन होना होता हैं।
ओर
फिर ससर्ग का सुख, यौनि मे लिंग के
घर्षण के द्वारा ऊर्जा का इतना अधिक बढ़ना कि फिर रूकना कठिन हो रहा होता है। स्खलित
होने से पहले के क्षण पर रूको, आनंद की इसी चरम
सीमा पर रूको, भोगो इन क्षणों को
जहाँ काम नही राम है। आत्मा परमात्मा का मिलन है। स्वंय की विस्मृति ओर परमानंद का
आभास, जितना रूकोगे उतना भोगोगे, इस क्षण के लिए कितने कष्ट भोगे, पीड़ाऐ झेली, ओर वह पल आया तो स्खलित हो गये तो सब व्यर्थ हो जायेगा। उस
पल मे पहले स्वयं को जान लो आपनी चेतना मे उसका एहसास कर लो फिर चाहे स्खलित होकर
समां जाओ एक दुसरे मे, बंधन ढीला नही करना, मजबूती से पकड़ना, एहसास करना इस क्षण का, आनंद का, परमानंद का, अगर एहसास कर लिया तो परमात्मा को पा लोगे। ओर
दोनों को जीवन की सृष्टि करने के लिए प्रसाद स्वरूप परमानंद का अनुभव होगा।
इसी
आनंद को मनुष्य भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, राज योग, हट योग, तप योग आदि अनेक रास्तों से पाना चहाते है। ओर
सारी सृष्टि के नर नारी इसी आनंद को पाने के लिए प्रयत्न कर रहे है। सभी के रास्ते
तरीकें अलग अलग हो सकते है पर मंजिल एक ही है परमानंद की प्राप्ति, ओर जब वह इसे पा लेता है तो साधक ओर साध्य
एकाकार हो जाते है, ब्रह्मं की
प्राप्ति हो जाती है आत्मसाक्षात्कार हो जाता है। ओर अहं ब्रह्ममस्यामि का उदघोष
होता है। उस समय प्रेम, मस्ती, आनंद का अनंत सागर लहरा रहा होता हैं। यहाँ
प्रेम, शारिरीक आर्कषण, ऊर्जा का संचरण, एकाग्रता, सुख की तृप्ति, संतान की प्राप्ति, शारिरीक व मानसिक सौन्दर्य के दर्शन का सुख, परमात्मा तत्व से एकाकार होने का सुख, स्पर्श सुख, आत्मविस्मृति, समय विस्मृति, अहं विस्मृति, व समाधि का अनुभव होता है। इस क्षण मे इस क्रिया के द्वारा
वह आनंद कुछ पलो मे प्राप्त कर लेते है जिसे पाने के लिए सारा संसार उम्र भर भटकता
रहता है। योगी जन घर छोड़ जंगलो मे धक्के खाते है ओर घंटों पूजा पाठ कर्म काण्डो मे
लगे रहते है।
प्राचीन
काल मे स्त्रियाँ आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक पुरूषों से संबंध बनाती थी। उन्हें
इसका अधिकार होता था। स्त्रियों की इच्छा सर्वपरि होती थी। मातृसत्ता का बाहुलय था।
सन्तान की पहचान माँ के नाम से होती थी। परन्तु धीरे धीरे पुरूष प्रधान समाज की
रचना हुई ओर सभी अधिकार पुरूषों के हाथ मे आ गये। अंबिका ने ब्यास जी के द्वारा
धृतराष्ट को जन्म दिया। अंबालिका ने पाडु को जन्म दिया। इसी प्रकार पाडु की दुसरी
पत्नी माद्वी ने पाँच देवताओं से पाँच पुत्र प्राप्त किये। अनेक प्राचीन स्त्रियों
ने परपुरूषो से संबंध बनाए है। कुन्ती ने सूर्य से कर्ण को जन्म दिया। अहिल्या ने इन्द्र
के साथ, द्रोपदी ने पाँच पाँडवो के साथ, सत्यवती ने ब्यास जी के साथ संभोग से आनंद की
तृप्ति प्राप्त की। इस प्रकार यह आनंद व ऊर्जा से सन्तान प्राप्ति का प्राकृतिक
नियम सृष्टि के आरंभ से ही चला आ रहा है। परन्तु धीरे धीरे यह सब पाप व निन्दक
माना जाने लगा। धर्म के ठेकेदारो ने लाख कोशिश क्यों न की हो, परन्तु क्या वह आज भी सफल हो पाये है नहीं, आज भी स्त्री पुरूष मिलन, प्रेमी प्रेमिका मिलन होता ही रहता है। पर भय
के कारण डरा डरा क्षणिक, जो आनंद की सीमा तक
नही पहुँच पाता है
आनंद तक पहुँचने व संभोग को सफल
बनाने के लिये स्वभाविक उत्तेजना की जरूरत होती है। इसके लिए एक प्रयोग करके देखिए, पति पत्नी दोनों कमरे मे पूरी रात नग्न अवस्था
मे कुछ दिन रहना शुरू कर दे पूर्णतया नग्न दोनों एक पलंग पर रहे, देखो क्या घटित होता है। धीरे धीरे कामवासना
खत्म होती जायेगी ओर प्रेम का सही स्वरूप आपके सामने आ जायेगा। अगर आप आत्मा से
प्रेम करते हे तो आनंद की सीमा पा लोगे ओर तुम्हारे जीवन का स्वरूप बदल जायेगा, जो डर बचपन से समाया था खत्म हो जायेगा।
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