संभोग से आनंद की ओर 3- सैक्स साधना हैं।
स्त्रीपुरूष का मिलन एक साधना है न कि भोग। अगर हम उसे
केवल
साधना माने और उस ऊर्जा का संचय कर लें तो आपस की दुरियाँ, क्लेस, झगड़ें मिट जायें। जो हम दूसरे में ढूढ रहें है वो सब अपने में ही मिल जायें।
योग ने इसे
अच्छी तरह से जाना समझा और बताया हैं। हमारे शरीर में आनन्द का बिन्दु क्या है।
कहाँ से आनन्द हमे प्राप्त होता हैं। योग चूड़ामणि में दो बिन्दु बताये है सफेद और
लाल, सफेद शुक्र (वीर्य) लाल महारज (रजोधर्म) कहलाता हैं। सफेद बिन्दु शिव पुरूष
चेतना व लाल बिन्दु शक्ति प्राकृति या सभी वस्तुओ की उत्पत्ति की शक्ति महामाया का
प्रर्तीक हैं। यह वही च्रक है जिनका उपयोग मैथुन के समय किया जाता हैं। लाल बिन्दु
का स्थान मूलाधार में है और सफेद बिन्दु ऊपर सिर के पिछे है। और जब मैथुन के
द्वारा इनका मिलन होता है, तो उस समय ऊर्जा सुषुम्ना से होती हुई सहस्रार तक जाती है। सक्रिय प्राण
(स्त्री) स्थिर चेतना (पुरूष) से जब मिलन होता है, तो उसका फल आनन्द रूप में प्रघट होता हैं। यह आनन्द दोनो के
मिलन से ही संभव हैं। इन दोनो के मिलन से चेतना स्तर पर जो ऊर्जा पैदा होती है, हम चाहे तो उसे निम्न स्तर पर बहा दे या उच्च
स्तर पर ले जाकर उस आनन्द को स्थायी बना ले यह पूर्णतया हमारे ऊपर हैं।
इस ऊर्जा से
ब्यक्ति की संवेदनात्मक शक्ति इतनी बड़ जाती हैं। कि उसे सिमित से असिमित, लौकिक से अलौकिक जगत की और ले जाती हैं। और
हमारा ब्यवहार प्रेम रूप हो जाता हैं। हम तनाव से मुक्त हो जाते है, और हम वर्तमान का अनुभव कर पाते हैं। तथा हम अनिन्द्र, तनाव, घबराहट, चिन्ता, ब्लड प्रेसर, आदि रोगो से बच जाते हैं। शरीर के 70 प्रतिशत रोग आज अन्दर
कें भावो से पैदा होते है, हमारे भाव मे जब डर और तनाव होता है, तो शरीर के
हारर्मोन्स का सन्तुलन असन्तुलित हो जाता है, और हमे रोगी बना देता हैं। किन्तु जब हम आनन्द को पाना जान
लेते है, तो डर, तनाव, घबराहट से मुक्त हो
जाते हैं। और शरीर रोगी होने से भी बच जाता हैं। आज विज्ञानिक भी मानते हे कि यदि
हम खुश रहना सीख जायें तो बहुत से रोगो से बच जायेगे, और हम शारिरिक, मानसिक, आत्मिक व सामाजिक
सन्तुलन को कायम रख पायेंगें।