Sunday 24 April 2016

संभोग से आनंद की ओर 5- मनोविज्ञान और सैक्स





संभोग से आनंद की ओर 5- मनोविज्ञान और सैक्स



आज विज्ञानिको ने भी सिद् कर दिया है कि मानव की अधिकांश क्रियाऐं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम से जुड़ी हुई हैं। परन्तु हमारी सामाजिक व नैतिक ब्यवस्था ने इस पर पाबंदियां लगा दी है। हम बच्चे की बाल्यअवस्था से ही सैक्स संबंधी क्रियाओ पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर देते हैं। इस प्रकार ये इच्छायें दमित होकर अवचेतन मन मे छिप जाती हैं। और बह धीरे-धीरे कुंठाओं से भर जाते हैं। अनेक स्नायुविक रोग हो जाते हैं। हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेसन, तनाव, अनिंद्रा, चिन्ता आदि रोग इस दबी हुई  कुंठा से ही पैदा होते हैं। यदि हम साधना के द्वारा दमित विचारो को निकालने का प्रयत्न करेंगे तो देखेगे कि बचपन से हमने अपने 90 प्रतिशत विचार सैक्स को लेकर ही दबाये थे, जिसका नतीजा आज यह हुआ है कि मानव पशु तुल्य हो गया है। बह छोटी-छोटी बच्चियों को हवस का शिकार बना रहा हैं। दिन प्रतिदिन बलात्कार बढ़ते जा रहे है। यह सब काम के दमन का ही नतीजा हैं।


संभोग से आनंद की ओर 4- सैक्स के चमत्कार




संभोग से आनंद की ओर 4-  सैक्स के चमत्कार


      
सम्भोग ब्रह्मानंद स्वरूप होता है, जिस प्रकार ब्रह्मानंद के समय सम्पूर्ण सृष्टि का विलय हो जाता है, यहाँ तक कि स्वयं व सामने वाले पार्टनर को भी कुछ क्षण के लिये भूल जाता हैं। सारी सृष्टि विलिन हो जाती हैं। पूरी चेतना एक बिन्दु में केंन्द्रित होकर आनन्द की चरम सीमा पर पहुँचती हैं। इस आनन्द की अनुभुति को प्राप्त होकर मानव के मन में इसे स्थायी रखने का विचार आया और फिर शुरू हुआ एक कल्पना का दौर, ईस्वर की कल्पना, संसार के नस्वरता की कल्पना, परमानन्द के आनन्द की कल्पना, मोक्ष ओर मुक्ति की कल्पना आदि-आदि। ओर फिर इसी को पाने के लिये अनेक तरीके खोजे गयें। और जिससें शुरूआत हुई (सैक्स) उसको दबा दिया गया।

       प्राचिन महर्षियो ने इसे जाना काम की शक्ति को रूपान्तरित कर ही मूर्ख कालीदास विधोत्मा के द्वारा महाकवि कालीदास बन गयें, तुलसीदास, संत तुलसीदास बन गये, सीता के द्वारा राम भगवान राम बन गये, मीराबाई का जहर अमृत बन गया। अनेको उदारण है ऐसे, जहाँ काम की शक्ति को रूपान्तरित कर बड़े-बड़े चमत्कार किये गयें

      कवियो की रचनाओं मे भी श्रंगार रस के रूप में काम को ही परोसा जाता हैं। इसे रसो का राजा कहा गया है। हर कविता में काम के बस ही श्रंगार रस की रचना होती है। भगवत गीता में श्री कृष्ण जी ने स्वयं कहा है कि सन्तान की उत्पत्ति हेतु में कामदेव हूँ। प्राचिन चित्रकार व मूर्तिकारो ने भी प्रेम सोन्दर्य काम मिलन का संजीव चित्रण किया है। खुजराहो, कोणार्क, एलोरा की गुफाओ मे संजीव मूर्तिकला आज भी उस आनन्द को प्रघट कर रही हैं।

Saturday 23 April 2016

संभोग से आनंद की ओर 3- सैक्स साधना हैं।

   


संभोग से आनंद की ओर 3- सैक्स साधना हैं।


स्त्रीपुरूष का मिलन एक साधना है न कि भोग। अगर हम उसे
केवल साधना माने और उस ऊर्जा का संचय कर लें तो आपस की दुरियाँ, क्लेस, झगड़ें मिट जायें। जो हम दूसरे में ढूढ रहें है वो सब अपने में ही मिल जायें।

     योग ने इसे अच्छी तरह से जाना समझा और बताया हैं। हमारे शरीर में आनन्द का बिन्दु क्या है। कहाँ से आनन्द हमे प्राप्त होता हैं। योग चूड़ामणि में दो बिन्दु बताये है सफेद और लाल, सफेद शुक्र (वीर्य) लाल महारज (रजोधर्म) कहलाता हैं। सफेद बिन्दु शिव पुरूष चेतना व लाल बिन्दु शक्ति प्राकृति या सभी वस्तुओ की उत्पत्ति की शक्ति महामाया का प्रर्तीक हैं। यह वही च्रक है जिनका उपयोग मैथुन के समय किया जाता हैं। लाल बिन्दु का स्थान मूलाधार में है और सफेद बिन्दु ऊपर सिर के पिछे है। और जब मैथुन के द्वारा इनका मिलन होता है, तो उस समय ऊर्जा सुषुम्ना से होती हुई सहस्रार तक जाती है। सक्रिय प्राण (स्त्री) स्थिर चेतना (पुरूष) से जब मिलन होता है, तो उसका फल आनन्द रूप में प्रघट होता हैं। यह आनन्द दोनो के मिलन से ही संभव हैं। इन दोनो के मिलन से चेतना स्तर पर जो ऊर्जा पैदा होती है, हम चाहे तो उसे निम्न स्तर पर बहा दे या उच्च स्तर पर ले जाकर उस आनन्द को स्थायी बना ले यह पूर्णतया हमारे ऊपर हैं।

     इस ऊर्जा से ब्यक्ति की संवेदनात्मक शक्ति इतनी बड़ जाती हैं। कि उसे सिमित से असिमित, लौकिक से अलौकिक जगत की और ले जाती हैं। और हमारा ब्यवहार प्रेम रूप हो जाता हैं। हम तनाव से मुक्त हो जाते है, और हम वर्तमान का अनुभव कर पाते हैं। तथा हम अनिन्द्र, तनाव, घबराहट, चिन्ता, ब्लड प्रेसर, आदि रोगो से बच जाते हैं। शरीर के 70 प्रतिशत रोग आज अन्दर कें भावो से पैदा होते है, हमारे भाव मे जब डर और तनाव होता है, तो शरीर के हारर्मोन्स का सन्तुलन असन्तुलित हो जाता है, और हमे रोगी बना देता हैं। किन्तु जब हम आनन्द को पाना जान लेते है, तो डर, तनाव, घबराहट से मुक्त हो जाते हैं। और शरीर रोगी होने से भी बच जाता हैं। आज विज्ञानिक भी मानते हे कि यदि हम खुश रहना सीख जायें तो बहुत से रोगो से बच जायेगे, और हम शारिरिक, मानसिक, आत्मिक व सामाजिक सन्तुलन को कायम रख पायेंगें।

Thursday 21 April 2016

संभोग से आनंद की ओर 2- सम्भोग व भोगता






संभोग से आनंद की ओर 2- सम्भोग व भोगता


सम्भोग का अर्थ क्या है। क्या हम कुछ पल के भोगी ही रहै गये है। हम 2 मिनट के इन्द्रिय सुख के लिये ही सम्भोग करते हैं। सम्भोग के समय क्या घटित होता हैं। जो आनन्द प्राप्त होता हैं। आज के जीवन में शायद ही कोई उसकी व्याख्या कर पायें जो उस पल घटित होता हैं। किन्तु प्रत्येक मनुष्य जीव यह चहाता है कि यह आन्नद स्थायी हो और फिर इस आन्नद को बह बहार ढूढता हैं। कभी दूसरी औरत में, कभी दूसरे पुरूष में, कभी मन्दिरो में, कभी नसीले पदार्थो में, किन्तु वह उसे कही नही पाता हैं। जो वह ढूढ रहा होता है, जहाँ उसे मिलना है वहाँ तो उसने उस आन्नद को कमजोरी मे बहा दिया ओर जहाँ नही मिलना वहाँ पूरी ताकत लगा रहा होता है उसे पाने के लिये।                                                 

   अच्छा एक विचार किजिये जब आप सेक्स कर रहे होते है ओर उसकी चरम सीमा पर पहुँच जाते है तो स्खलन से ठीक 5-10 सैकिन्ड पहले का आपको क्या अनुभव है। न इससे पहले न बाद में।

  उस समय आप क्या सोच रहे होते है, क्या कर रहै होते है, क्या आपके आन्दर घटित हो रहा होता है। शायद एक व्यक्ति भी इस बात का जबाब न दे पायें। क्योकि हमने इसे जाना ही नही, अनुभव ही नही किया। अगर किया होता तो हमारी चेतना उच्च स्तर पर पहुँचकर हमें आंनदित कर देती हम वह सब कुछ पा लेते जो पा लेने के लिये दौड़ते रहते हैं।




Wednesday 20 April 2016

संभोग से आनंद की ओर 1- आज का जीवन

 

 


संभोग से आनंद की ओर 1- आज का जीवन


आज परिवारो में कलह, असन्तोष, बिखरापन, अकेलापन, अधूरापन, चिड़चिड़ापन, निस्तेजता क्यो ब्याप्त होती जा रही हैं। शादी का सही अर्थ क्या है, क्या विवाह केवल सम्भोग की अजादी ही देता है या इससे भी कुछ ओर ज्यादा, हमारे परिवार क्यो बिखर रहें हैं। जहाँ शादी के बाद स्त्री पुरूष का मिलन ऊर्जा का संचय व एक दूसरे को चेतना के उच्च स्तर पर पहुँच कर सुख की अनुभूति कराना होना चाहिये था वही आज केवल स्त्री पुरूष का मिलन ऊर्जा का हासः व निस्तेजता पेदा करता हैं। क्यो

क्योकि हम इस ऊर्जा का प्रयोग करना नही जानतें हैं। जिस प्रकार ऊर्जा का प्रयोग कर बड़े-बड़े कार्य किये जाते है, बड़ी-बड़ी मसीने चलाई जाती है,ठीक उसी प्रकार ऊर्जा का संचय कर ग्रहस्थ रूपी मसीन को हम अनन्द रूप सें चलाने मे सक्षम हो सकते हैं। कैसे यह पुस्तक इसी जबाब को लेकर तैयार की गयी है। कि स्त्री पुरूष का मिलन केवल इन्द्रिय सुख तक ही सिमित नही हैं। वह इससे बहुत ज्यादा आगें आत्मिक सुख आन्नद की पराकाष्ठा तक जाने का रास्ता है। जरूरत है इसको जाननें की समझनें की, क्या आप अपने जीवन साथी को पूर्ण सन्तुष्ट कर पाते है, क्या उससे अपको आनन्द रूपी शक्ति मिलती है या क्या आपसे उसको आन्नद रूपी शक्ति मिलती हैं?????

                                                               

संभोग से आनंद की ओर



संभोग से आनंद की ओर

           डॉ.जे पी वर्मा (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)





संभोग से आनंद की ओर



जहाँ शादी के बाद स्त्री पुरूष का मिलन ऊर्जा का संचय व एक दूसरे को चेतना के उच्च स्तर पर पहुँच कर सुख की अनुभूति कराना होना चाहिये था वही आज केवल स्त्री पुरूष का मिलन ऊर्जा का हासः व निस्तेजता पैदा करता हैं।


यह पुस्तक इसी जबाब को लेकर तैयार की गयी है। कि स्त्री पुरूष का मिलन केवल इन्द्रिय सुख तक ही सिमित नही हैं। वह इससे बहुत ज्यादा आगें आत्मिक सुख आन्नद की पराकाष्ठा तक जाने का रास्ता है।


स्त्रीपुरूष का मिलन एक साधना है न कि भोग। अगर हम उसे केवल साधना माने और उस ऊर्जा का संचय कर लें तो आपस की दुरियाँ, क्लेस, झगड़ें मिट जायें। जो हम दूसरे में ढूढ रहें है वो सब अपने में ही मिल जायें।

जीवन सत्य है। इसे स्वीकार करना ही होगा, अगर इसकी सत्यता को मान लिया तो आन्नद का रास्ता खुल जायेंगा।


इसी आनंद को मनुष्य भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, राज योग, हट योग, तप योग आदि अनेक रास्तों से पाना चहाते है।ओर सारी सृष्टि के नर नारी इसी आनंद को पाने के लिए प्रयत्न कर रहे हें|

                   सभी ओशो प्रेमियों को समर्पित


 डॉ.जे पी वर्मा (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)