Wednesday 11 April 2018

संभोग से आनंद की ओर 22—साधनाऐं


संभोग से आनंद की ओर 22—साधनाऐं




जीवन के कुछ पहलुओं को हमने जाना, ओर भी बहुत से ऐसे पहलू है जो हमारे सुखमय जीवन को बरबाद कर देते है। इसलिये हमे कैसे इस ऊर्जा को बढ़ाना है, कैसे आनंद की पराकाष्ठा तक पहुँचना है, इसे जानना है। इसी को लेकर अग्रलिखित साधनाओ को लिखा गया है। पहली साधना उनके लिये है जो शादीशुदा नही है ओर फिर भी सैक्स की भावना रखते है, उनकी तृप्ति कैसे हो, कैसे आनंद मिले। ओर दूसरी शादीशुदा लोगों के लिये है जिन्होंने जीवन मे पहला कदम रखा है। ओर तीसरी उन लोगों के लिये है जो शादी के बाद कुंठाओ से भर गये है। स्त्री को कहते है कि तू प्यार नही करती ठंडी हो गयीं है ओर पुरूष शीघ्रपतन व नपुंसकता के शिकार हो गये है। स्त्री को तृप्त नही कर पाते हैं। तब वह खुद तो शर्मिंदगी महसूस करते है परन्तु एक दूसरे से कुछ कह नही पाते, ओर मजबूरी मे आनंद से वंचित होकर बार बार कोशिश कर ऊर्जा का ह्मस कर निस्तेज हो जाते है। अतः ये तीनों साधनाऐं सम्पूर्ण जीवन मे आपके काम आयेगी, आप उम्र के किसी भी पड़ाव पर क्यों न हो। ओर आप आज जहाँ भी जीवन की राह पर खड़े हो वही से एक नयी शुरुआत कर पायेंगे। जितनी उपयोगी यह नवयुवक व युवतियों के लिए हे उतनी ही यह नवविवाहित व पुराने दंपति जो जीवन के पड़ाव के अधर मे है उनके लिए है। तो आईये आज आभी जाने इस रहस्यमय साधनाओ को ओर शुरू करें जीवन मे आनंद की एक नई शुरुआत।

संभोग से आनंद की ओर 21 – संभावनाऐं


संभोग से आनंद की ओर 21 – संभावनाऐं




सेक्स में जन्म लेना स्वाभाविक है, इसके लिये कोशिश नही करनी। लेकिन सेक्स में ही मृत्यु होना अस्वाभिक है। अपने बस मे है कि हम सैक्स मे मरे या नही। सेक्स से एक एक कर उच्चतम की ओर कदम उठना ही चाहिए। बीज से प्रारम्भ कर वक्ष तक की यात्रा ही विकास है। लेकिन अधिकतर मनुष्य सेक्स के दोरान दोहराने वाले चक्र में ही जीते हैं। वे एक ही दिनचर्या के साथ परिभ्रमण करते रहते हैं। बिना सजग हुए वही चीजें, जिनके बारे में उन्हें स्वयं यह होश नहीं कि वे एक ही चीज को नजाने कितनी अधिक बार कर चुके हैं, ओर उनसे कुछ भी नहीं मिला, वे उन्हें किए चले जा रहे हैं। वो यह नही जानते कि उन्हें क्या करना चाहिए बस उन्हीं चीजों को दोहराते चले जा रहे हैं। एक ही चक्राकार मार्ग पर घूमते हुए व्यस्त बने रहते हैं।
       वासना अपने आप में एक बीज की भांति है। उसमें पूरी सम्भावना है, वक्ष बनने की, वह ठीक मिट्टी, उचित मौसम और योग्य माली की प्रतीक्षा कर रही है, उसे उस कुशल मनुष्य की प्रतीक्षा है जो अंकुरित होने में उसकी सहायता करे। यह केवल एक सम्भावना है। उसके लिए वृक्ष बनने की कोई अनिवार्यता नहीं है। हो सकता है कि वह कभी कुछ बन ही न सके और पूरी तरह नष्ट ही हो जाए। सदियां गुजर सकती हैं और बीज अंकुरित नहीं होगा। जब बीज ठीक भूमि तक पहुंच जाता है और उसमें विलुप्त हो जाता है। तब बीज मिटता है, ओर तभी वृक्ष का जन्म होता है। जब ' तुम ' विसर्जित हो जाते हो, तभी आत्मा का जन्म होता है। जब आत्मा विलुप्त होती है तो परमात्मा का जन्म होता है ओर अन्नत आनंद का जन्म
         परमात्मा एक स्वप्न की भाँति मनुष्य की आत्मा में छिपा हुआ है। अगर मनुष्य की आत्मा को हम कली समझें, तो परमात्मा पुष्प है। लेकिन यह आदमी की अपनी जीवनरसधार पर ही निर्भर करेगा। वह कितने बलपूर्वक, कितने आग्रहपूर्वक, कितनी शक्ति से, कितनी तीव्रता से भीतर से प्यासा है, कितने जोर से पुकारा है उसने जीवन को, कितने जोर से उसने जीवन की प्राणसत्ता को अपनी तरफ खेचा है। कितने जोर से हम सलंग्न हुए हैं, कितने जोर से हम समर्पित हुए हैं। कितने एकाग्र भाव से हमने चेष्टा की है। इस सब पर निर्भर करेगा कि कली फूल बने कि नही बने। कली से फूल कैसे हो जाऊं, रास्ता तो बताया जा सकता है, लेकिन सब व्यर्थ होगा। क्योंकि रास्ते का सवाल उतना नहीं है, जितना चलने वाले की आंतरिक शक्ति का है। फिर भय कि मेरी जिदगी भी नष्ट न हो जाए, आदमी को धार्मिक नहीं होने देता। डर लगा ही रहता है कि जो है, कहीं वह न छूट जाएं। और जो नहीं है, वह मिलेगा या  नही क्या पता। इस अज्ञात में छलांग लगाने की हिम्मत जो करता है वही कुछ पा पाता है। मिटना तो पड़ेगा ओर  मिटने के बाद  ही आनंद है।

संभोग से आनंद की ओर 20-- आईये जाने सम्भोग को


संभोग से आनंद की ओर 20-- आईये जाने सम्भोग को





संभोग दो विपरीत लिंग के आर्कषण से शुरू होता हैं।  जब वो एक दूसरे को देखते है। तभी से संभोग की शुरूआत हो जाती है। फिर अन्दर से प्रेम, स्पर्श के भाव उठने लगते है। ओर फिर धीरे धीरे दौर शुरू होता हे अन्दर से उठते भावो का, एक दूसरे का स्पर्श, अलिंगन, चुम्बन, मर्दन आदि का, धीरे धीरे वह प्राकृतिक अवस्था मे पहुँचना शुरू करते है, नग्न होते जाते है। ओर एक एक वस्त्र हटाकर दोनों पूर्ण नग्नता को प्राकृतिक अवस्था को प्राप्त कर लेते है। एक दूसरे के शरीर के सौन्दर्य को निहारते है। ओर मन सभी ओर से विचार भावो आदि से हटकर एक्राग होने लगता है। दोनों एक दूसरे मे समा जाने को तत्पर हो जाते है। उस समय दोनों एक दूसरे को पूर्ण सुख देना चहाते हैं।
     यहां अहं नही होता, स्वयं सुख पाने की इच्छा नही होती, एक दूसरे मे सर्मपण की इच्छा होती है। स्पर्श सुख, कर्ण सुख, स्वासों की लहरों का आनंद, शरीर मे बढ़ती हुई तरंगों का आनंद, स्पर्श की एक एक उठने बाली लहरों का आनंद ओर बढ़ते हुए उस अवस्था की ओर जहाँ परम आनंद मिलने वाला होता है। स्त्री पुरूष, प्राकृति परमात्मा, शिव शक्ति का मिलन होना होता हैं।
        ओर फिर ससर्ग का सुख, यौनि मे लिंग के घर्षण के द्वारा ऊर्जा का इतना अधिक बढ़ना कि फिर रूकना कठिन हो रहा होता है। स्खलित होने से पहले के क्षण पर रूको, आनंद की इसी चरम सीमा पर रूको, भोगो इन क्षणों को जहाँ काम नही राम है। आत्मा परमात्मा का मिलन है। स्वंय की विस्मृति ओर परमानंद का आभास, जितना रूकोगे उतना भोगोगे, इस क्षण के लिए कितने कष्ट भोगे, पीड़ाऐ झेली, ओर वह पल आया तो स्खलित हो गये तो सब व्यर्थ हो जायेगा। उस पल मे पहले स्वयं को जान लो आपनी चेतना मे उसका एहसास कर लो फिर चाहे स्खलित होकर समां जाओ एक दुसरे मे, बंधन ढीला नही करना, मजबूती से पकड़ना, एहसास करना इस क्षण का, आनंद का, परमानंद का, अगर एहसास कर लिया तो परमात्मा को पा लोगे। ओर दोनों को जीवन की सृष्टि करने के लिए प्रसाद स्वरूप परमानंद का अनुभव होगा।
        इसी आनंद को मनुष्य भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, राज योग, हट योग, तप योग आदि अनेक रास्तों से पाना चहाते है। ओर सारी सृष्टि के नर नारी इसी आनंद को पाने के लिए प्रयत्न कर रहे है। सभी के रास्ते तरीकें अलग अलग हो सकते है पर मंजिल एक ही है परमानंद की प्राप्ति, ओर जब वह इसे पा लेता है तो साधक ओर साध्य एकाकार हो जाते है, ब्रह्मं की प्राप्ति हो जाती है आत्मसाक्षात्कार हो जाता है। ओर अहं ब्रह्ममस्यामि का उदघोष होता है। उस समय प्रेम, मस्ती, आनंद का अनंत सागर लहरा रहा होता हैं। यहाँ प्रेम, शारिरीक आर्कषण, ऊर्जा का संचरण, एकाग्रता, सुख की तृप्ति, संतान की प्राप्ति, शारिरीक व मानसिक सौन्दर्य के दर्शन का सुख, परमात्मा तत्व से एकाकार होने का सुख, स्पर्श सुख, आत्मविस्मृति, समय विस्मृति, अहं विस्मृति, व समाधि का अनुभव होता है। इस क्षण मे इस क्रिया के द्वारा वह आनंद कुछ पलो मे प्राप्त कर लेते है जिसे पाने के लिए सारा संसार उम्र भर भटकता रहता है। योगी जन घर छोड़ जंगलो मे धक्के खाते है ओर घंटों पूजा पाठ कर्म काण्डो मे लगे रहते है।
       प्राचीन काल मे स्त्रियाँ आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक पुरूषों से संबंध बनाती थी। उन्हें इसका अधिकार होता था। स्त्रियों की इच्छा सर्वपरि होती थी। मातृसत्ता का बाहुलय था। सन्तान की पहचान माँ के नाम से होती थी। परन्तु धीरे धीरे पुरूष प्रधान समाज की रचना हुई ओर सभी अधिकार पुरूषों के हाथ मे आ गये। अंबिका ने ब्यास जी के द्वारा धृतराष्ट को जन्म दिया। अंबालिका ने पाडु को जन्म दिया। इसी प्रकार पाडु की दुसरी पत्नी माद्वी ने पाँच देवताओं से पाँच पुत्र प्राप्त किये। अनेक प्राचीन स्त्रियों ने परपुरूषो से संबंध बनाए है। कुन्ती ने सूर्य से कर्ण को जन्म दिया। अहिल्या ने इन्द्र के साथ, द्रोपदी ने पाँच पाँडवो के साथ, सत्यवती ने ब्यास जी के साथ संभोग से आनंद की तृप्ति प्राप्त की। इस प्रकार यह आनंद व ऊर्जा से सन्तान प्राप्ति का प्राकृतिक नियम सृष्टि के आरंभ से ही चला आ रहा है। परन्तु धीरे धीरे यह सब पाप व निन्दक माना जाने लगा। धर्म के ठेकेदारो ने लाख कोशिश क्यों न की हो, परन्तु क्या वह आज भी सफल हो पाये है नहीं, आज भी स्त्री पुरूष मिलन, प्रेमी प्रेमिका मिलन होता ही रहता है। पर भय के कारण डरा डरा क्षणिक, जो आनंद की सीमा तक नही पहुँच पाता है
     आनंद तक पहुँचने व संभोग को सफल बनाने के लिये स्वभाविक उत्तेजना की जरूरत होती है। इसके लिए एक प्रयोग करके देखिए, पति पत्नी दोनों कमरे मे पूरी रात नग्न अवस्था मे कुछ दिन रहना शुरू कर दे पूर्णतया नग्न दोनों एक पलंग पर रहे, देखो क्या घटित होता है। धीरे धीरे कामवासना खत्म होती जायेगी ओर प्रेम का सही स्वरूप आपके सामने आ जायेगा। अगर आप आत्मा से प्रेम करते हे तो आनंद की सीमा पा लोगे ओर तुम्हारे जीवन का स्वरूप बदल जायेगा, जो डर बचपन से समाया था खत्म हो जायेगा।

संभोग से आनंद की ओर 19 – नग्नता प्राकृतिक व्यवस्था


संभोग से आनंद की ओर 19 – नग्नता प्राकृतिक व्यवस्था




      जब भी कोई जीव पैदा होता हैं। तो पूर्णता नग्न होता है। वहाँ लिंगो का भेदभाव नही होता। संसार के सभी जीव उम्र भर (मनुष्य को छोडकर) नग्न रहते हैं। ओर उनमे पूरी उम्र कामवासना का सन्तुलन बना रहता है। नग्न रहने से शरीर को वाहय वातावरण के अनुरूप रहने की शक्ति मिलती है। सूरज की रोशनी से अनेक कीटाणुओ का नास हो जाता है व विटामिन डी प्राप्त होता हैं। जिससे ऊर्जा मिलती हैं। मनुष्य ने संसार की प्रत्येक व्यवस्था के स्वरूप को बदला है। जिससे लाभ के साथ साथ हानि भी उठा रहा है।
      शक्ति का सही प्रयोग चमत्कार करता है। काम ऊर्जा मे इतनी शक्ति होती है कि एक शुक्राणू नारी के डिम्ब से मिलकर पूरे मनुष्य का निर्माण करता है ओर वह कृष्ण, राम, बुद्ध, ईसा, सचिन, वैज्ञानिक, व दार्शनिक का निर्माण कर सकती है। ओर यदि विकृत हो जाये तो रावण, कंस, आतंकवादी आदि व्यक्ति भी इसी ऊर्जा से पैदा होते है। इसलिए काम को जाने बिना राम को जानना असंभव है।
     बचपन से हम धर्म, समाज, परिवार, गुरु, संत महात्माओ आदि के द्वारा काम कृत्य की निन्दा व पाप कर्म समझते आये है। बचपन से ही सैक्स के बारे मे इतनी निन्दा व घृणा भर दी जाती हे कि शादी के बाद हम संभोग की क्रियाओं मे अपराध भाव से भाग लेते है। ओर जल्द बाजी, भय, अपराध युक्त सैक्स करते हैं। इसलिए शरीर क्षीण हो जाता है। कामनाऐ व वासनाऐ, आनंद प्राप्ति की इच्छाऐं बुढ़ापे मे योवन सै भी अधिक प्रबल होती जाती है ओर उस अतृप्त अवस्था मे ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। धर्मो मे नारी को नरक का द्वार कहा गया है परन्तु यह ही आनंद का द्वार हैं। परमात्मा प्राप्ति का द्वार हैं। यह बहुत कम लोगों ने जाना व माना हैं।
           पहली रात सुहागरात वाले दिन जब मौका मिलता है नग्न स्त्री को देखने का तो कामोतेजना बढ़ जाती हैं। ओर अस्वाभिक स्थिति पैदा हो जाती हैं। ओर उस समय पहली बार हम क्षणिक आनंद को महसूस करते है। जिसे समाज ने पूरी तरह नकारा, फिर उसे बार बार दोहराते है परन्तु भय व जल्दबाजी के साथ, बुरा कृत्य मानकर, इसलिए पूर्ण ऊर्जा के आनंद से हम वंचित रह जाते है।
       इस प्रकार मनुष्य जब नंगा पैदा होता है जाता भी नंगा है तो बीच मे वस्त्रों से क्यों लदा रहता है। इसलिये शादी के बाद स्त्री पुरूष को अपने कमरे मे पूर्ण नग्न अवस्था मे रहना चाहिए। कुछ दिनों मे मन की उत्तेजनाऐ समाप्त हो जायेगी। अपराध बोध खत्म हो जायेंगे ओर जीवन के सच्चे आनंद को समझ पायेंगे।
           आज भी जहाँ लोग नंगे रहते हे जिन कबीलो मे नग्नता है वहाँ बलात्कार, अपहरण व सैक्स के लिए अपराध नही किए जाते। उनका जीवन अधिक स्वस्थ्य, सुखी व संपन्न है। नार्वे स्वीडन देशों मे अनेक जनजातीय है जो नग्न रहती है ओर वहाँ अपराध नही होते हैं।
         आज मिडिया, फिल्मों, गीतों, नत्यो, विज्ञापनो, नाटकों, धारावाहिको को देखें तो सभी नग्न होना चाह रहे होते हैं। परन्तु सभ्यता व आदर्श बाद के भय से पूर्ण नग्न नही हो पाते ओर पूर्ण ढक भी नही पाते क्योंकि सत्यता को ढक नही सकते। जब भी कोई सैक्सी फिल्म आती है तो भीड़ टूट पड़ती है, नग्नता को देखने के लिए, क्योंकि उसे छुपाया गया है। परन्तु बहार आकर वही व्यक्ति समाज के भय से ऊपरी मन से कहता है कि बड़ी गंदी फिल्म बनाई हैं। जबकि वह खुद उस नग्नता को देखने को बेचैन था ओर उसे पहले से पता था कि अन्दर फिल्म मे क्या हैं।
       इसी प्रकार हमारे अन्दर तो सैक्स की नग्नता भरी पड़ी है ओर बहार बात करते हे कपड़े से ढकने की। धर्म के ठेकेदार ही बलात्कार के केसो मे फँस रहे है, बड़े बड़े योगी सन्त स्त्रियों से घिरे रहते है। क्योंकि बहार से कुछ भी कहे अन्दर तो सैक्स दबा पढ़ा है। इसी कारण आज जीवन का आनंद समाप्त हो गया है। प्रत्येक स्त्री पर पुरूषगामी व पुरूष परस्त्री गामी होते जा रहे है। प्रत्येक दूसरे मे उस आनंद को ढूंढने की कोशिश करता है। प्रत्येक स्त्री पुरूष के अन्दर सैक्स की अतृप्त भूख भरी पड़ी हैं। परन्तु बहार से तृप्त दिखाने की कोशिश करता रहता है। बहुत से लोग तो जीवन भर उस चरम आनंद तक नही पहुँच पाते। ओर जब भी कभी उसे मौका मिलता है इच्छा पूर्ति का तो वह टूट पड़ता हैं। सही गलत वह उस समय नही देखता। इस प्रकार बहुत लोगों का जीवन युंही अतृप्ति मे तड़पते हुये बीतता हैं।

संभोग से आनंद की ओर 18--ऊर्जा के ह्रास के कारण


संभोग से आनंद की ओर 18--ऊर्जा के ह्रास के कारण


जब भी स्त्री व पुरूष के बीच आर्कषण होता है तो समय मिलते ही वह सैक्स का आनंद लैना चहाते है। 30-40 साल पहले तक तो शायद, शादी तक भी लडके व लड़की को सैक्स का पता ही नही होता था। जब संयम हमारे जीवन में था सालो शादी को हो जाते थे तब जाकर कहीं सैक्स का मौका मिलता था ओर एकबार के बाद दोबारा भी शायद महीनों व बर्षो मे मौका आता था। परन्तु आज समय बदल गया है ऐसे साधन (ईन्टरनेट, मल्टीमीडिया मोबाइल, सिनेमा हाल, टीवी आदि) हो गये हे, जहाँ सैक्स को किसी न किसी रूप मे परोसा जा रहा हैं। हम जहाँ 11-12 साल को पार करते है, अधिकतर सैक्स को समझने लगते है। ब्लू फिल्में नेट पर या मोबाइल मे डालकर देखना शुरू कर देते है। ओर वही से फिर ऊर्जा का ह्रास शुरू होता है। जो क्रियाएँ हमारे शरीर मे परिपक्व होने पर (18-20 वर्ष) होनी चाहिए थी वह 12 या कभी कभी तो 10 वर्ष मे ही शुरू हो जाती हैं। वह लडका हो या लड़की सैक्स के बारे मे जान चुका होता है। ओर जब वह दृश्य देखता है तो विपरीत लिंगी के प्रति अकृषित होता जाता है ओर जब विपरीत लिंगी साथी नही मिलता तो समलैंगिक या अन्य अप्राकृतिक तरीके अपनाना शुरू कर देते हैं। जिससे  ऊर्जा का ह्रास प्रारम्भ होता है। अभी ऊर्जा अपनी परिपक्वता पर भी नही पहुँची थी  ओर उसका बिखराव शुरू हो जाता हैं। लड़कें नपुंसक व लडकियां ठंडी हो जाती है ओर जब शादी होती है तो दोनों आनंद की पराकाष्ठा की भावना से अतृप्त रह जाते हैं।
          पहले शादियाँ इसलिए लम्बी चलती थी क्योंकि उस समय ऊर्जा का संचय किया जाता था चाहे वह  अनजाने मे ही क्यों न किया जाता रहा हो। काफी हद तक सही कहा जाये तो 50-75% लड़के लडकिया शादी से पहले ही इस ऊर्जा का ह्रास कर चुके होते है। ओर यदि कुछ बचता भी है तो वह शादी के कुछ दिनों मे रोजाना स्खलन करके खत्म कर दी जाती है, ओर शादी के साल दो साल बाद ही स्त्री पुरूष से व पुरूष स्त्री से दूरियां बनाने लगता है। पति पत्नी जिनको लम्बी पारी खेलनी थी वह कभी एक ओर कभी कभी दोनों के आउट होने से बिखर जाती है। अगर दोनों की समान स्थिति हे तो कोई बात नही परन्तु सम्सया वहाँ ज्यादा होती हे जहाँ किसी एक के अन्दर सैक्स करने की क्षमता कम या खत्म हो जाती है ओर दुसरे मे पूर्ण ऊर्जा होती हैं। वहाँ ही सबसे ज्यादा बिखराव व तनाव होता है। जीवन नरक बन जाता है। फिर या तो दोनों घुट घुट कर समझौता कर लेते है या तलाक ले लेते है या फिर आत्महत्या या पर स्त्री व पर पुरूष गामी बन जाते है । इस प्रकार जो शादी जीवन भर एक साथी के साथ स्वर्ग भोगने के लिए थी नरक मे बदल जाती हैं।

संभोग से आनंद की ओर 17- पहला अहसास


संभोग से आनंद की ओर 17-पहला अहसास

       ऊर्जा का संचय कैसे होगा ओर इसका आभास कैसा होता हैं। अपने कभी भी जब पहली बार किसी साथी को छुआ होगा या स्पर्श किया था, तब क्या घटित हुआ था, उस समय कैसी तरंग शरीर मे पैदा हुई थी, क्या लहर मनमे उठी थी, कैसा अनुभव था, आपका जब केवल उस स्पर्श से आपके साथ इतना कुछ हुआ था तो उसके बाद आपके अन्दर क्या ऊर्जा नही बढी, क्या आप उस साथी की ओर आकृषित नही हुए थे, क्या आपके अन्दर अनेक भावनाऐ विचार आनंद खुशी पैदा नही हुई थी यदि इनके जबाब हाँ हे तो समझे कि जब स्पर्श से इतनी ऊर्जा पैदा हो सकती हैं। तो संभोग के समय कितनी ऊर्जा पैदा होगी ओर उससे कितना आनंद व खुशी आप प्राप्त कर सकते हैं।
        स्पर्श के बाद जब पहली बार किसी साथी ने आपको चुंबन किया होगा तब क्या घटित हुआ था। स्पर्श की उत्पन्न ऊर्जा से चुंबन की ऊर्जा ज्यादा तंरगे पैदा कर गयीं होगी ओर आपने ज्यादा खुशी महसूस की होगी ओर इसी प्रकार केवल साथी के साथ बात करने, मिलने, हाथ पकड़ने, बालों मे उगली फिराने, साथ घूमने खाने आदि से आपको कैसे कैसे अनुभव होते है। याद करिये उस प्रत्येक पल को जो आपने साथी के साथ बिताया है, ओर उस पल आप आनंद से भर गये होगें। यहाँ संभोग नही है फिर भी तृप्ति हे, आनंद है। ओर जब आप साथी के साथ होते है तो दुनिया के विचार लुप्त हो जाते है, न जाने आप कहाँ खो जाते है, एक अजीब सी दुनिया का एहसास होता हैं। तो जब पास होने से इतना कुछ घटित हो सकता है तो संभोग तो इसकी पराकाष्ठा हे अनन्त आनंद व प्रेम की, तो हम उससे नीरसता कैसे प्राप्त करते है, कैसे कुंठाओ से भर जाते है, ओर जो संबंध शादी से पहले मधुर थे वही शादी के बाद क्यों बिखरने लगते है, क्यों दूरियां बनती जाती हैं। क्या हम गलत कर रहे हे जो सपने टूटने लगते हैं। इसी को जानना है। समझना है।