Thursday, 11 August 2016

रसधारएक कली

रसधारएक कली
रसधारएक कली है।कली अभी फूल नहीं है,लेकिन फूल हो सकती है।लेकिन जरूरी नहीं कि फूल हो ही।कली भी रह सकती है।यह भी हो सकता है कि फूल हो जाए,यह भी हो सकता है कली रहकर ही गिर जाए।किस बात पर निर्भर करेगा कली का फूल होना ?

कली का फूल होना उस कली के नीचे अंतर में बहती हुई रसधारा पर निर्भर करेगा।कितने बलपूर्वक उस पौधे में रस की धार बह रही है,इस पर निर्भर करेगा।वह रसधारा अगर बल में बह रही है,तो कली खिल जाएगीऔर फूल बन जाएगी।और अगर वह रसधार क्षीण है,मुर्दा है, गतिमान नहीं है तो कली कली रह जाएगीऔर फूल नहीं बन पाएगी।
कली के भीतर फूल छिपा है,संभावना की तरह।
वास्तविकता की तरह नहीं,संभावना की तरह।
एक स्वप्न है अभी तो,लेकिन साकार हो सकता है।
लेकिन कली की अपनी रसधार पर निर्भर करेगा।
परमात्मा एक स्वप्न है मनुष्य की आत्मा में छिपा।
अगर मनुष्य की आत्मा को हम कली समझें,तो परमात्मा फूल है।
लेकिन आदमी की अपनी जीवन—रसधार पर ही निर्भर करेगा। उसी रसधार का नाम श्रद्धा है।कितने बलपूर्वक,कितने आग्रहपूर्वक,कितनी शक्ति से,कितनी त्वरा से अभीप्सा है भीतर ? कितने जोर से पुकारा हैहमने जीवन को ? कितने जोर से हमने खीची है ,जीवन की प्राणवत्ता अपनी तरफ ? कितने जोर से हम सलगन हुए हैं, कितने जोर से हम समर्पित हुए हैं ? कितना एकाग्र भाव सेहमने चेष्टा की है ?
इस सब पर निर्भर करेगा कि कली फूल बने कि न बने।तो जो आदमी कहता है श्रद्धा तो नहीं है, रास्ता बता दें,वह ऐसी कली है जो कह रही है, रसधार तो नहीं है।लेकिन रास्ता बताएं कि फूल कैसे हो जाऊं?रास्ता बताया जा सकता है,लेकिन व्यर्थ होगा।
क्योंकि रास्ते का सवाल उतना नहीं है,जितना चलने वाले की आंतरिक शक्ति का है।श्रद्धा का अर्थ इतना ही हैकि मैंने इकट्ठी कीअपने प्राणो की सारी शक्ति,दाव पर लगा दी।दाव कठिन है,क्योंकि कली को फूल काकुछ भी पता नहीं है।
कली यह भी सोच सकती है कि यह दाव कहीं चूक न जाए।कहीं ऐसा न हो किफूल भी न बन पाऊं और पास की  संपदा थी,जो रसधार थी,वह भी चूक जाए।यह डर है, यह भय है।कली को सोचना पड़ेगा कि मैं दांव लगाऊं,कहीं ऐसा न होकि जिस रसधार से मैं महीनो तक कली रह सकती थीवह रसधार भी चूक जाए दांव में,फूल भी न बन पाए औेर मेरी जिदगी भी नष्ट हो जाए।यही भय आदमी को धार्मिक नहीं होने देता।डर लगा ही रहता है कि जो है,कहीं वह न छूट जाएं।और जो नहीं है,वह मिले न मिले, क्या पता इस अज्ञात में छलांग लगाने कीहिम्मत ही श्रद्धा है, कली छलांग लगा लेती है।फूल बन जाती हैऔर फूल बन कर मिटने का मजा ही और है।
और कली रह कर गिर जाना बड़ा दुःख दायी है।फूल बनकर मिटने का मजा और है।क्योंकि पूरा फूल अगर खिल गया हो,तो मिटना एक सुख है।मिटना एक आनंद है।
क्योंकि पूरा फूल बन जाने के बादविश्राम है।



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