संभोग से आनंद की ओर
डॉ.जे पी वर्मा (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
संभोग से आनंद की ओर
जहाँ शादी के बाद स्त्री पुरूष का मिलन ऊर्जा का संचय व एक
दूसरे को चेतना के उच्च स्तर पर पहुँच कर सुख की अनुभूति कराना होना चाहिये था वही
आज केवल स्त्री पुरूष का मिलन ऊर्जा का हासः व निस्तेजता पैदा करता हैं।
इसी आनंद को मनुष्य भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, राज योग, हट योग, तप योग आदि अनेक रास्तों से पाना चहाते है।ओर सारी सृष्टि के नर नारी इसी आनंद को पाने के लिए प्रयत्न कर रहे हें|
यह पुस्तक इसी जबाब को लेकर तैयार की गयी है। कि स्त्री
पुरूष का मिलन केवल इन्द्रिय सुख तक ही सिमित नही हैं। वह इससे बहुत ज्यादा आगें
आत्मिक सुख आन्नद की पराकाष्ठा तक जाने का रास्ता है।
स्त्रीपुरूष का मिलन एक साधना है न कि भोग। अगर हम उसे केवल
साधना माने और उस ऊर्जा का संचय कर लें तो आपस की दुरियाँ, क्लेस, झगड़ें मिट जायें। जो हम
दूसरे में ढूढ रहें है वो सब अपने में ही मिल जायें।
जीवन सत्य है। इसे स्वीकार करना ही होगा, अगर इसकी सत्यता को मान लिया तो आन्नद का रास्ता खुल जायेंगा।
जीवन सत्य है। इसे स्वीकार करना ही होगा, अगर इसकी सत्यता को मान लिया तो आन्नद का रास्ता खुल जायेंगा।
इसी आनंद को मनुष्य भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, राज योग, हट योग, तप योग आदि अनेक रास्तों से पाना चहाते है।ओर सारी सृष्टि के नर नारी इसी आनंद को पाने के लिए प्रयत्न कर रहे हें|
सभी ओशो प्रेमियों को समर्पित
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