संभोग से आनंद की ओर 5- मनोविज्ञान और सैक्स
आज विज्ञानिको ने भी सिद् कर दिया है कि मानव की अधिकांश
क्रियाऐं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम से जुड़ी हुई हैं। परन्तु हमारी
सामाजिक व नैतिक ब्यवस्था ने इस पर पाबंदियां लगा दी है। हम बच्चे की बाल्यअवस्था
से ही सैक्स संबंधी क्रियाओ पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर देते हैं। इस प्रकार ये
इच्छायें दमित होकर अवचेतन मन मे छिप जाती हैं। और बह धीरे-धीरे कुंठाओं से भर जाते
हैं। अनेक स्नायुविक रोग हो जाते हैं। हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेसन, तनाव, अनिंद्रा, चिन्ता आदि रोग इस दबी हुई कुंठा से
ही पैदा होते हैं। यदि हम साधना के द्वारा दमित विचारो को निकालने का प्रयत्न
करेंगे तो देखेगे कि बचपन से हमने अपने 90 प्रतिशत विचार सैक्स को लेकर ही दबाये थे, जिसका नतीजा आज यह हुआ है कि मानव पशु तुल्य हो गया है। बह छोटी-छोटी बच्चियों
को हवस का शिकार बना रहा हैं। दिन प्रतिदिन बलात्कार बढ़ते जा रहे है। यह सब काम
के दमन का ही नतीजा हैं।
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