Sunday, 24 April 2016

संभोग से आनंद की ओर 4- सैक्स के चमत्कार




संभोग से आनंद की ओर 4-  सैक्स के चमत्कार


      
सम्भोग ब्रह्मानंद स्वरूप होता है, जिस प्रकार ब्रह्मानंद के समय सम्पूर्ण सृष्टि का विलय हो जाता है, यहाँ तक कि स्वयं व सामने वाले पार्टनर को भी कुछ क्षण के लिये भूल जाता हैं। सारी सृष्टि विलिन हो जाती हैं। पूरी चेतना एक बिन्दु में केंन्द्रित होकर आनन्द की चरम सीमा पर पहुँचती हैं। इस आनन्द की अनुभुति को प्राप्त होकर मानव के मन में इसे स्थायी रखने का विचार आया और फिर शुरू हुआ एक कल्पना का दौर, ईस्वर की कल्पना, संसार के नस्वरता की कल्पना, परमानन्द के आनन्द की कल्पना, मोक्ष ओर मुक्ति की कल्पना आदि-आदि। ओर फिर इसी को पाने के लिये अनेक तरीके खोजे गयें। और जिससें शुरूआत हुई (सैक्स) उसको दबा दिया गया।

       प्राचिन महर्षियो ने इसे जाना काम की शक्ति को रूपान्तरित कर ही मूर्ख कालीदास विधोत्मा के द्वारा महाकवि कालीदास बन गयें, तुलसीदास, संत तुलसीदास बन गये, सीता के द्वारा राम भगवान राम बन गये, मीराबाई का जहर अमृत बन गया। अनेको उदारण है ऐसे, जहाँ काम की शक्ति को रूपान्तरित कर बड़े-बड़े चमत्कार किये गयें

      कवियो की रचनाओं मे भी श्रंगार रस के रूप में काम को ही परोसा जाता हैं। इसे रसो का राजा कहा गया है। हर कविता में काम के बस ही श्रंगार रस की रचना होती है। भगवत गीता में श्री कृष्ण जी ने स्वयं कहा है कि सन्तान की उत्पत्ति हेतु में कामदेव हूँ। प्राचिन चित्रकार व मूर्तिकारो ने भी प्रेम सोन्दर्य काम मिलन का संजीव चित्रण किया है। खुजराहो, कोणार्क, एलोरा की गुफाओ मे संजीव मूर्तिकला आज भी उस आनन्द को प्रघट कर रही हैं।

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