कावड़ का रहस्य
आज करोड़ों लोग आस्था के नाम पर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। शायद प्रत्येक के मन में यह अंधविश्वास है कि शिव मंदिर में जल चढ़ाने से मन की इच्छाएं पूरी हो जाएंगी, हमारे पाप कम हो जाएंगे या कुछ पुण्य कमा लेंगे, आज के विज्ञानिक व आध्यात्मिक युग की गहराइयों को जानने वाले भारत में इतना बड़ा अंधविश्वास केवल यह दर्शाता है कि लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कितने पागल हैं, या उनके मन की चंचलता का इससे पता चलता है कि वो संन्तुष्ट नहीं हैं।
आज अगर सभी कावड़ लाने वाले वालों से एक सवाल पूछा जाए कि आपको कावड़ लाने के बाद क्या ऐसा मिल जाएगा जो न लाने वाले को नहीं मिलेगा, शायद किसी के पास भी इसका कोई सटीक जवाब नहीं होगा। वह एक अंधविश्वास जो सदियों से चला रहा है, हम उसी के पीछे दौड़ रहे हैं, और उसके पीछे छुपे रहस्य को भूल जाते हैं, जो सच था वह कहीं खो जाता है।
सत्य की बात बाद में करेंगे आईये पहले देखते हैं की कावड़ लाने वालों को क्या-क्या मिल रहा है। करोड़ो लोग पैदल यात्रा कर रहे हैं, उनके पैरों की हालत इतनी खराब हो गई है कि छाले पड़ गए हैं, सूजन आ गई है, घाव हो रहे हैं, चलना बस की नहीं है, फिर भी मजबूरी है चलना क्योंकि हमने आस्था के नाम पर यही सुना है, कि अब पैदल यात्रा ही करनी है। कई सौ किलोमीटर की यात्रा में बरसात व गर्मी को झेलने से वायरल का फैलना, बुखार सर्दी जुखाम की परेशानिया होना आम बात है। हर साल सावन में कांवड़ यात्रा में हादसे होते हैं, और बहुत से लोगो के जीवन का अंत हो जाता है, और फिर उनके परिवार वाले जीवन भर इसका दुखः झेलते हैं। हरिद्वार में जाकर 5 रू के काम के मजबूरी में 100 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जहाँ 50रू में पेट भर अच्छा खाना मिल जाता है वहां 200रू में भी पेट नहीं भरता। किसी को समान चोरी का दुख, तो किसी को शारीरिक व मानसिक कष्ट। चलो जो कावंड ला रहे हैं, वो तो परेशान हो ही रहे हैं अंधविश्वास के लिए, परंतु उनके इस कृत्य से पूरा प्रशासन परेशान हो रहा है। उनकी सुरक्षा को लेकर, उनके उपद्वव को लेकर, पूरी व्यवस्था में हजारों लोग तैनात हैं कि कहीं कोई अप्रिय घटना ना घट जाए। और हजारों ऐसे लोग जो रोजाना कमाते है तब खाते हैं उनके काम 8 दिन तक बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से वह भी शायद अपने मन से कहीं ना कहीं इन को बुरा ही कहते होंगे। सभी स्कूल बंद करने पड़ते हैं आठ दिन तक जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पढ़ता है। हजारों लोग नौकरी पर नहीं जा पाते, फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ती हैं, करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है इस अंधविश्वास से। इस प्रकार हमारे भारत में बहुत से अंधविश्वास है जिनको हम आस्था के नाम पर निभा रहे हैं, परन्तु इनको करने से मिलता तो कुछ नहीं, पर खोते बहुत कुछ है।
अब देखते हैं, कावंड का अध्यात्मिक रहस्य क्या है। हम सभी इच्छाओं को पूरी करने के लिए अंधविश्वास में दौड़ लगाते हैं। और लाखों लोगों में कुछ की इच्छाएं पूरी होती हैं कैसे। हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र होते हैं और जिनमें स्वाधिष्ठान चक्र हमारी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य इस चक्र को जब जागृत करता है, तो उसकी जो भी इच्छाएं होती हैं, वो घटित हो जाती हैं। परंतु यह उसकी श्रद्वा और विश्वास के साथ कार्य करता है। इस को जागृत करने का मूल मंत्र बं (बम) हैं। और जब हम कावड़ लाते हैं तो लगाता बम बम का उच्चारण करते रहते हैं, और उस बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र में जागृति पैदा होती है, और उस समय आस्था की वजह से हमारे मन में शंका व अविश्वास भी नहीं होता है, तो हम जो इच्छा लेकर कावड़ ला रहे हैं वह घटित हो जाती है। पर कितने लोग इस श्रद्धा व विश्वास के साथ कावंड ला रहे हैं शायद बहुत कम। इसलिए लाखों में कुछ लोगों की इच्छा ही पूरी हो पाती हैं, बाकी सब व्यक्ति व्यर्थ ही परेशान होते हैं।
अब जब हमें पता होता है, कि हम केवल बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करके अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं तो इतना कर्मकांड क्यों, यही अंधविश्वास है। हमारे संतो ने स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने के लिए इसके रहस्य को आस्था से जोड़ दिया और लोग इस आस्था के नाम पर अंधविश्वास में दौड़ लगाने लगे। आध्यात्मिकता के साथ कुछ शारीरिक लाभ भी मिलते हैं जैसे कष्टों को झेलने से आपकी प्रतिरोधक क्षमता व सहनशक्ति बढ़ती है। आपके अंदर संकल्प को पूरा करने की इच्छा शक्ति मजबूत होती है और श्रद्धा व विश्वास बढ़ता है पर क्या इसको पाने के लिए इतना सब कुछ करना उचित है सोचे?
स्वामी जगतेश्वर आनंद जी (स्वंतत्र लेखक व समाजिक कार्यकर्ता) म.नं. 9958502499
आज करोड़ों लोग आस्था के नाम पर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। शायद प्रत्येक के मन में यह अंधविश्वास है कि शिव मंदिर में जल चढ़ाने से मन की इच्छाएं पूरी हो जाएंगी, हमारे पाप कम हो जाएंगे या कुछ पुण्य कमा लेंगे, आज के विज्ञानिक व आध्यात्मिक युग की गहराइयों को जानने वाले भारत में इतना बड़ा अंधविश्वास केवल यह दर्शाता है कि लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कितने पागल हैं, या उनके मन की चंचलता का इससे पता चलता है कि वो संन्तुष्ट नहीं हैं।
आज अगर सभी कावड़ लाने वाले वालों से एक सवाल पूछा जाए कि आपको कावड़ लाने के बाद क्या ऐसा मिल जाएगा जो न लाने वाले को नहीं मिलेगा, शायद किसी के पास भी इसका कोई सटीक जवाब नहीं होगा। वह एक अंधविश्वास जो सदियों से चला रहा है, हम उसी के पीछे दौड़ रहे हैं, और उसके पीछे छुपे रहस्य को भूल जाते हैं, जो सच था वह कहीं खो जाता है।
सत्य की बात बाद में करेंगे आईये पहले देखते हैं की कावड़ लाने वालों को क्या-क्या मिल रहा है। करोड़ो लोग पैदल यात्रा कर रहे हैं, उनके पैरों की हालत इतनी खराब हो गई है कि छाले पड़ गए हैं, सूजन आ गई है, घाव हो रहे हैं, चलना बस की नहीं है, फिर भी मजबूरी है चलना क्योंकि हमने आस्था के नाम पर यही सुना है, कि अब पैदल यात्रा ही करनी है। कई सौ किलोमीटर की यात्रा में बरसात व गर्मी को झेलने से वायरल का फैलना, बुखार सर्दी जुखाम की परेशानिया होना आम बात है। हर साल सावन में कांवड़ यात्रा में हादसे होते हैं, और बहुत से लोगो के जीवन का अंत हो जाता है, और फिर उनके परिवार वाले जीवन भर इसका दुखः झेलते हैं। हरिद्वार में जाकर 5 रू के काम के मजबूरी में 100 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जहाँ 50रू में पेट भर अच्छा खाना मिल जाता है वहां 200रू में भी पेट नहीं भरता। किसी को समान चोरी का दुख, तो किसी को शारीरिक व मानसिक कष्ट। चलो जो कावंड ला रहे हैं, वो तो परेशान हो ही रहे हैं अंधविश्वास के लिए, परंतु उनके इस कृत्य से पूरा प्रशासन परेशान हो रहा है। उनकी सुरक्षा को लेकर, उनके उपद्वव को लेकर, पूरी व्यवस्था में हजारों लोग तैनात हैं कि कहीं कोई अप्रिय घटना ना घट जाए। और हजारों ऐसे लोग जो रोजाना कमाते है तब खाते हैं उनके काम 8 दिन तक बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से वह भी शायद अपने मन से कहीं ना कहीं इन को बुरा ही कहते होंगे। सभी स्कूल बंद करने पड़ते हैं आठ दिन तक जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पढ़ता है। हजारों लोग नौकरी पर नहीं जा पाते, फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ती हैं, करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है इस अंधविश्वास से। इस प्रकार हमारे भारत में बहुत से अंधविश्वास है जिनको हम आस्था के नाम पर निभा रहे हैं, परन्तु इनको करने से मिलता तो कुछ नहीं, पर खोते बहुत कुछ है।
अब देखते हैं, कावंड का अध्यात्मिक रहस्य क्या है। हम सभी इच्छाओं को पूरी करने के लिए अंधविश्वास में दौड़ लगाते हैं। और लाखों लोगों में कुछ की इच्छाएं पूरी होती हैं कैसे। हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र होते हैं और जिनमें स्वाधिष्ठान चक्र हमारी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य इस चक्र को जब जागृत करता है, तो उसकी जो भी इच्छाएं होती हैं, वो घटित हो जाती हैं। परंतु यह उसकी श्रद्वा और विश्वास के साथ कार्य करता है। इस को जागृत करने का मूल मंत्र बं (बम) हैं। और जब हम कावड़ लाते हैं तो लगाता बम बम का उच्चारण करते रहते हैं, और उस बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र में जागृति पैदा होती है, और उस समय आस्था की वजह से हमारे मन में शंका व अविश्वास भी नहीं होता है, तो हम जो इच्छा लेकर कावड़ ला रहे हैं वह घटित हो जाती है। पर कितने लोग इस श्रद्धा व विश्वास के साथ कावंड ला रहे हैं शायद बहुत कम। इसलिए लाखों में कुछ लोगों की इच्छा ही पूरी हो पाती हैं, बाकी सब व्यक्ति व्यर्थ ही परेशान होते हैं।
अब जब हमें पता होता है, कि हम केवल बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करके अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं तो इतना कर्मकांड क्यों, यही अंधविश्वास है। हमारे संतो ने स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने के लिए इसके रहस्य को आस्था से जोड़ दिया और लोग इस आस्था के नाम पर अंधविश्वास में दौड़ लगाने लगे। आध्यात्मिकता के साथ कुछ शारीरिक लाभ भी मिलते हैं जैसे कष्टों को झेलने से आपकी प्रतिरोधक क्षमता व सहनशक्ति बढ़ती है। आपके अंदर संकल्प को पूरा करने की इच्छा शक्ति मजबूत होती है और श्रद्धा व विश्वास बढ़ता है पर क्या इसको पाने के लिए इतना सब कुछ करना उचित है सोचे?
स्वामी जगतेश्वर आनंद जी (स्वंतत्र लेखक व समाजिक कार्यकर्ता) मो.नं. 9958502499
आज करोड़ों लोग आस्था के नाम पर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। शायद प्रत्येक के मन में यह अंधविश्वास है कि शिव मंदिर में जल चढ़ाने से मन की इच्छाएं पूरी हो जाएंगी, हमारे पाप कम हो जाएंगे या कुछ पुण्य कमा लेंगे, आज के विज्ञानिक व आध्यात्मिक युग की गहराइयों को जानने वाले भारत में इतना बड़ा अंधविश्वास केवल यह दर्शाता है कि लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कितने पागल हैं, या उनके मन की चंचलता का इससे पता चलता है कि वो संन्तुष्ट नहीं हैं।
आज अगर सभी कावड़ लाने वाले वालों से एक सवाल पूछा जाए कि आपको कावड़ लाने के बाद क्या ऐसा मिल जाएगा जो न लाने वाले को नहीं मिलेगा, शायद किसी के पास भी इसका कोई सटीक जवाब नहीं होगा। वह एक अंधविश्वास जो सदियों से चला रहा है, हम उसी के पीछे दौड़ रहे हैं, और उसके पीछे छुपे रहस्य को भूल जाते हैं, जो सच था वह कहीं खो जाता है।
सत्य की बात बाद में करेंगे आईये पहले देखते हैं की कावड़ लाने वालों को क्या-क्या मिल रहा है। करोड़ो लोग पैदल यात्रा कर रहे हैं, उनके पैरों की हालत इतनी खराब हो गई है कि छाले पड़ गए हैं, सूजन आ गई है, घाव हो रहे हैं, चलना बस की नहीं है, फिर भी मजबूरी है चलना क्योंकि हमने आस्था के नाम पर यही सुना है, कि अब पैदल यात्रा ही करनी है। कई सौ किलोमीटर की यात्रा में बरसात व गर्मी को झेलने से वायरल का फैलना, बुखार सर्दी जुखाम की परेशानिया होना आम बात है। हर साल सावन में कांवड़ यात्रा में हादसे होते हैं, और बहुत से लोगो के जीवन का अंत हो जाता है, और फिर उनके परिवार वाले जीवन भर इसका दुखः झेलते हैं। हरिद्वार में जाकर 5 रू के काम के मजबूरी में 100 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जहाँ 50रू में पेट भर अच्छा खाना मिल जाता है वहां 200रू में भी पेट नहीं भरता। किसी को समान चोरी का दुख, तो किसी को शारीरिक व मानसिक कष्ट। चलो जो कावंड ला रहे हैं, वो तो परेशान हो ही रहे हैं अंधविश्वास के लिए, परंतु उनके इस कृत्य से पूरा प्रशासन परेशान हो रहा है। उनकी सुरक्षा को लेकर, उनके उपद्वव को लेकर, पूरी व्यवस्था में हजारों लोग तैनात हैं कि कहीं कोई अप्रिय घटना ना घट जाए। और हजारों ऐसे लोग जो रोजाना कमाते है तब खाते हैं उनके काम 8 दिन तक बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से वह भी शायद अपने मन से कहीं ना कहीं इन को बुरा ही कहते होंगे। सभी स्कूल बंद करने पड़ते हैं आठ दिन तक जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पढ़ता है। हजारों लोग नौकरी पर नहीं जा पाते, फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ती हैं, करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है इस अंधविश्वास से। इस प्रकार हमारे भारत में बहुत से अंधविश्वास है जिनको हम आस्था के नाम पर निभा रहे हैं, परन्तु इनको करने से मिलता तो कुछ नहीं, पर खोते बहुत कुछ है।
अब देखते हैं, कावंड का अध्यात्मिक रहस्य क्या है। हम सभी इच्छाओं को पूरी करने के लिए अंधविश्वास में दौड़ लगाते हैं। और लाखों लोगों में कुछ की इच्छाएं पूरी होती हैं कैसे। हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र होते हैं और जिनमें स्वाधिष्ठान चक्र हमारी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य इस चक्र को जब जागृत करता है, तो उसकी जो भी इच्छाएं होती हैं, वो घटित हो जाती हैं। परंतु यह उसकी श्रद्वा और विश्वास के साथ कार्य करता है। इस को जागृत करने का मूल मंत्र बं (बम) हैं। और जब हम कावड़ लाते हैं तो लगाता बम बम का उच्चारण करते रहते हैं, और उस बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र में जागृति पैदा होती है, और उस समय आस्था की वजह से हमारे मन में शंका व अविश्वास भी नहीं होता है, तो हम जो इच्छा लेकर कावड़ ला रहे हैं वह घटित हो जाती है। पर कितने लोग इस श्रद्धा व विश्वास के साथ कावंड ला रहे हैं शायद बहुत कम। इसलिए लाखों में कुछ लोगों की इच्छा ही पूरी हो पाती हैं, बाकी सब व्यक्ति व्यर्थ ही परेशान होते हैं।
अब जब हमें पता होता है, कि हम केवल बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करके अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं तो इतना कर्मकांड क्यों, यही अंधविश्वास है। हमारे संतो ने स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने के लिए इसके रहस्य को आस्था से जोड़ दिया और लोग इस आस्था के नाम पर अंधविश्वास में दौड़ लगाने लगे। आध्यात्मिकता के साथ कुछ शारीरिक लाभ भी मिलते हैं जैसे कष्टों को झेलने से आपकी प्रतिरोधक क्षमता व सहनशक्ति बढ़ती है। आपके अंदर संकल्प को पूरा करने की इच्छा शक्ति मजबूत होती है और श्रद्धा व विश्वास बढ़ता है पर क्या इसको पाने के लिए इतना सब कुछ करना उचित है सोचे?
स्वामी जगतेश्वर आनंद जी (स्वंतत्र लेखक व समाजिक कार्यकर्ता) म.नं. 9958502499
आज करोड़ों लोग आस्था के नाम पर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। शायद प्रत्येक के मन में यह अंधविश्वास है कि शिव मंदिर में जल चढ़ाने से मन की इच्छाएं पूरी हो जाएंगी, हमारे पाप कम हो जाएंगे या कुछ पुण्य कमा लेंगे, आज के विज्ञानिक व आध्यात्मिक युग की गहराइयों को जानने वाले भारत में इतना बड़ा अंधविश्वास केवल यह दर्शाता है कि लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कितने पागल हैं, या उनके मन की चंचलता का इससे पता चलता है कि वो संन्तुष्ट नहीं हैं।
आज अगर सभी कावड़ लाने वाले वालों से एक सवाल पूछा जाए कि आपको कावड़ लाने के बाद क्या ऐसा मिल जाएगा जो न लाने वाले को नहीं मिलेगा, शायद किसी के पास भी इसका कोई सटीक जवाब नहीं होगा। वह एक अंधविश्वास जो सदियों से चला रहा है, हम उसी के पीछे दौड़ रहे हैं, और उसके पीछे छुपे रहस्य को भूल जाते हैं, जो सच था वह कहीं खो जाता है।
सत्य की बात बाद में करेंगे आईये पहले देखते हैं की कावड़ लाने वालों को क्या-क्या मिल रहा है। करोड़ो लोग पैदल यात्रा कर रहे हैं, उनके पैरों की हालत इतनी खराब हो गई है कि छाले पड़ गए हैं, सूजन आ गई है, घाव हो रहे हैं, चलना बस की नहीं है, फिर भी मजबूरी है चलना क्योंकि हमने आस्था के नाम पर यही सुना है, कि अब पैदल यात्रा ही करनी है। कई सौ किलोमीटर की यात्रा में बरसात व गर्मी को झेलने से वायरल का फैलना, बुखार सर्दी जुखाम की परेशानिया होना आम बात है। हर साल सावन में कांवड़ यात्रा में हादसे होते हैं, और बहुत से लोगो के जीवन का अंत हो जाता है, और फिर उनके परिवार वाले जीवन भर इसका दुखः झेलते हैं। हरिद्वार में जाकर 5 रू के काम के मजबूरी में 100 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जहाँ 50रू में पेट भर अच्छा खाना मिल जाता है वहां 200रू में भी पेट नहीं भरता। किसी को समान चोरी का दुख, तो किसी को शारीरिक व मानसिक कष्ट। चलो जो कावंड ला रहे हैं, वो तो परेशान हो ही रहे हैं अंधविश्वास के लिए, परंतु उनके इस कृत्य से पूरा प्रशासन परेशान हो रहा है। उनकी सुरक्षा को लेकर, उनके उपद्वव को लेकर, पूरी व्यवस्था में हजारों लोग तैनात हैं कि कहीं कोई अप्रिय घटना ना घट जाए। और हजारों ऐसे लोग जो रोजाना कमाते है तब खाते हैं उनके काम 8 दिन तक बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से वह भी शायद अपने मन से कहीं ना कहीं इन को बुरा ही कहते होंगे। सभी स्कूल बंद करने पड़ते हैं आठ दिन तक जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पढ़ता है। हजारों लोग नौकरी पर नहीं जा पाते, फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ती हैं, करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है इस अंधविश्वास से। इस प्रकार हमारे भारत में बहुत से अंधविश्वास है जिनको हम आस्था के नाम पर निभा रहे हैं, परन्तु इनको करने से मिलता तो कुछ नहीं, पर खोते बहुत कुछ है।
अब देखते हैं, कावंड का अध्यात्मिक रहस्य क्या है। हम सभी इच्छाओं को पूरी करने के लिए अंधविश्वास में दौड़ लगाते हैं। और लाखों लोगों में कुछ की इच्छाएं पूरी होती हैं कैसे। हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र होते हैं और जिनमें स्वाधिष्ठान चक्र हमारी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य इस चक्र को जब जागृत करता है, तो उसकी जो भी इच्छाएं होती हैं, वो घटित हो जाती हैं। परंतु यह उसकी श्रद्वा और विश्वास के साथ कार्य करता है। इस को जागृत करने का मूल मंत्र बं (बम) हैं। और जब हम कावड़ लाते हैं तो लगाता बम बम का उच्चारण करते रहते हैं, और उस बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र में जागृति पैदा होती है, और उस समय आस्था की वजह से हमारे मन में शंका व अविश्वास भी नहीं होता है, तो हम जो इच्छा लेकर कावड़ ला रहे हैं वह घटित हो जाती है। पर कितने लोग इस श्रद्धा व विश्वास के साथ कावंड ला रहे हैं शायद बहुत कम। इसलिए लाखों में कुछ लोगों की इच्छा ही पूरी हो पाती हैं, बाकी सब व्यक्ति व्यर्थ ही परेशान होते हैं।
अब जब हमें पता होता है, कि हम केवल बम बम के उच्चारण से स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करके अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं तो इतना कर्मकांड क्यों, यही अंधविश्वास है। हमारे संतो ने स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने के लिए इसके रहस्य को आस्था से जोड़ दिया और लोग इस आस्था के नाम पर अंधविश्वास में दौड़ लगाने लगे। आध्यात्मिकता के साथ कुछ शारीरिक लाभ भी मिलते हैं जैसे कष्टों को झेलने से आपकी प्रतिरोधक क्षमता व सहनशक्ति बढ़ती है। आपके अंदर संकल्प को पूरा करने की इच्छा शक्ति मजबूत होती है और श्रद्धा व विश्वास बढ़ता है पर क्या इसको पाने के लिए इतना सब कुछ करना उचित है सोचे?
स्वामी जगतेश्वर आनंद जी (स्वंतत्र लेखक व समाजिक कार्यकर्ता) मो.नं. 9958502499
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