Tuesday, 12 July 2016

संभोग से आनंद की ओर 15 - संभोग से अतृप्ति


संभोग से आनंद की ओर 15 - संभोग से अतृप्ति






       चलिये प्रेम की बात करते हैं। प्रेम प्यार जो हर व्यक्ति को होता हैं। हम विपरीत लिंगी के प्रति आकृषित होते हे ओर वह आकृषण ही प्यार कहलाता हैं। परन्तु जब हम उस साथी के साथ एक बार सैक्स कर लेते हे तो या तो वह प्रेम की भावना बढ़ जाती है या खत्म हो जाती हैं। कभी कभी तो दो चार बार सैक्स करने के बाद वह प्रेमी एक दूसरे से दूर होने लगते है जो एक दूसरे पर जान छिड़कते थे कयो ? क्योंकि उन्होंने उस शक्ति को नही जाना ओर जैसे ही वो उस आनंद के पास पहुंचे स्खलन हो गया ओर निस्तेजता छा गयी, इंद्रिये सुख तो मिला परन्तु आत्मिक तृप्ति नही हुई, ओर अगर आत्मिक तृप्ति मिल जाती तो हमारा आर्कषण बढ़ जाता, ओर संबंधो मे घनिष्ठा आ जाती क्योंकि उस तृप्ति से आनंद की प्राप्ति हुई है, ऊर्जा का सचय हुआ है। परन्तु ऐसा क्यों होता है कि हम केवल इंद्रिये तृप्ति तक ही सीमित रहकर सैक्स करते हैं। इससे अधिक नही, ओर रिश्तों मे दूरियां आती जाती हैं। क्योंकि हमें किसी ने रास्ता नही दिखाया। आज तो आनंद की कल्पना भी करना दुसाध्य होता जा रहा है। क्योंकि जब हम 15-16 वर्ष की अवस्था मे होते है तभी से उस ऊर्जा को ह्रास कर तृप्त होना चहाते है, ओर अप्राकृतिक क्रियाएँ अपनाते है, जिससे कुछ दिनों तक तो तृप्ति मिलती हैं, परन्तु जब संभोग का मौका मिलता है तो वह संयम के लायक नही रहता ओर अपने साथी को अतृप्त ही छोड़ देता हैं। वहीं से दूरियां शुरू हो जाती हैं। कुंठाऐ पैदा होने लगती है ओर फिर जीवन भर वह उन कुंठाऔ के सहारे आत्म द्रंद मे उलझा हुआ तनाव युक्त जीवन व्यतीत करता हैं। ऐसी स्थिति स्त्री पक्ष से भी होती हैं। दोनों की एक सी ही हालत हैं। आज दोनों ही अप्राकृतिक तरीके अपनाते है फिर वह अतृप्त स्त्री पुरुष अपनी तृप्ति का रास्ता ढूंढते हैं। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते है ओर जो प्रेम संबंध मधुर बन जाता वह बिखर कर तलाक नामे मे बदल जाता है या जीवन जीना दुर्लभ हो जाता हैं। आजकल बढती आत्महत्या भी इसी अतृप्ति का कारण हैं।

शादी का पहला दिन सुहागरात बनाने की परम्परा से जीवन की शुरुआत होती हैं। जिसका मुख्य भाग सभोग ही है। यदि पहली रात दोनों एक दुसरे को तृप्त कर पाये ऊर्जा का संचय कर पाये, आनंद की पराकाष्ठा को पार कर सके तो उनके जीवन की शुरुआत अनन्त प्रेम के साथ होगी नहीं तो अतृप्ति मे कुंठाओ के साथ, ओर ये कुंठाऐ ही सभी यौन अपराधों की जननी होती हैं। अतृप्ति से ही अत्याचार बढ़ते हैं।

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