संभोग से आनंद की ओर 14- संभोग ध्यान की अवस्था
सही मे संभोग एक प्रकार के ध्यान की उच्चतम अवस्था ही हैं। मनुष्य जितनी ऊर्जा व शक्ति इस कार्य मे खर्च करता हे उतनी
किसी ओर कार्य मैं नही, वह इतने मनोयोग से
इस कार्य को करता है कि उसकी सम्पूर्ण चितवृतियाँ एकीकरण व केंद्रीयकरण हो जाती है,
ओर संभोग की चरम सीमा पर कुछ पल ध्यान दे तो आनंद की पराकाष्ठा वाली भावना आ जाती
है, ओर शरीर के सभी अंगों को क्रियामय रखकर अलोकिक शक्ति प्राप्त की जा सकती हैं।
माँ काली ओर शिव का संभोग, यौनि के साथ लिंग
की पूजा, राधा कृष्ण का प्रेम, विभिन्न गुफाओ मै संभोगकृत मूर्तियाँ ये सभी इसी
ओर संकेत करती हे, कि संभोग केवल भोग नही साधना है। उस आनंद रूप को जानने का, इस
प्रकार संभोग, परमानंद की वह दशा है
जिसका वर्णन नही किया जा सकता। केवल ओर केवल अनुभव करके ही जाना जा सकता हैं। ओर कोई माध्यम नही हैं।
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