संभोग से आनंद की ओर 16 - अतृप्ति का कारण
अतृप्ति की शुरुआत बहुत पहले हो चुकी होती हे, शायद बचपन से, जहाँ से लिंगो मे भेदभाव किया जाता हे, वहाँ से
। लड़कों व लडकियों मे भेदभाव एक हीन भावना पैदा करता है, ओर जीवन भर यह विचार कि मे नारी हूँ, अलग हूँ, केवल इसी बात से जीवन के हर मोड पर समझोता करती जाती है, ओर
जब शादी तक बात पहुँचती है, तो उसके बहुत से स्वप्न होते हे, लडके को लेकर, परिवार को लेकर, उसके विचारों को लेकर, ओर जब लडके को देखा जाता हे तो जरूरी नही वह उसकी भावना के
अनुरूप मिले, परन्तु वहां भी वह
समझोता कर लेती हैं। कभी समाजिक परिस्थितियों के कारण (बिरादरी, दान, दहेज, अदि) तो कभी
परिवारिक परिस्थितियों के कारण।
अब
अंतिम इच्छा प्रेम आनंद या संभोग मे तृप्ति की होती है, ओर किसी कारण से अगर वहाँ
वह तृप्त नही हुई, तो वही से वह विखर जाती हैं। चाह कर भी समझोता करना कठिन होता
है, ओर फिर जहाँ कहीं भी उसकी भावना पूर्ण होती दिखाई देती है, वह वहाँ सर्वस्व
निछावर कर देती हैं। काश: शुरू मे ही उसकी भावनाओं का ख्याल किया होता तो यह
बिखराव ही पैदा न होता।
इस प्रकार ऊर्जा का संचय ओर आनंद की पराकाष्ठा हमारे बिखराव भटकाव ओर
अत्याचार को रोकता है। परिवार को टूटने से बचाने के लिये इस प्रकार हमें अपने संचय
को बढ़ाना है। शादी से पहले अप्राकृतिक संभोगो से बचना है। मन की हीन भावनाओं का
त्याग करना हैं। ओर शादी से पहले भी यदि हमें संभोग करना हो तो प्राकृतिक व्यवस्था
के अनुरूप संयम के साथ ऊर्जा का संचय करना
है। जिससे जीवन मे आगे बढ़ने के लिये उत्साह प्राप्त हो न कि हीन भावना ओर
नीरसता
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