Monday, 2 May 2016

संभोग से आनंद की ओर 6-जीवन अनमोल हैं।


संभोग से आनंद की ओर 6-जीवन अनमोल हैं।


प्रत्येक मनुष्य का जीवन अनमोल हैं। परन्तु वह इस सत्य को जान ही नही पाता हैं। ज्ञान का सूर्य उदय नही होता है । जीवन के रहस्य, आनन्द व मुक्ति को जान ही नही पाते है। जीवन के दूसरे सत्य मृत्यु में विलिन हो जाते हैं। विरले ही होते हे जो जीवन की खुशियों को, वास्तविकता को जान पाते हैं। वरना हर कार्य जल्दी-जल्दी, न भोजन का आनन्द, न काम का न प्रेम का, शरीर कही तो मन कही, हमारें अन्दर तो यह मान्यताये समा चुकी है। कि जीवन कष्टो, चिन्ताओं तथा भय से भरा हुआ है। सभी धर्मो ने भी यही सिखाया है। कि जीवन नस्वर है। यहाँ कष्ट ही कष्ट है। यह सब माया है। काम क्रोध मोह लोभ अंहकार हमे नरक मे भेज देगे। मृत्यु के बाद ही ब्रंह सत्य है। संसार मित्था है। यह शरीर धर्मशाला है। क्षणभंगूर है। अपनी इच्छाओ को खत्म कर दो तभी ईश्वर (आनन्द) की प्राप्ति होंगी। अनेक इच्छाओ के वंशीभूत मनुष्य भटक रहा है। ऐसी मान्ताऐं हमारे अवचेतन में कूट-कूट कर भर दी गयी है। जिससे जीवन रूपी आनन्द से हम भटक गये है। सत्य को भूल गये है।

           परन्तु जीवन सत्य है। इसे स्वीकार करना ही होगा, अगर इसकी सत्यता को मान लिया तो आन्नद का रास्ता खुल जायेंगा। अपने विचारो मे यदि जीवन को दुख रूप मान लिया तो यह दुख रूप बन जायेंगा। वही अगर इसे आनन्द रूप मान लिया तो आनन्द दायक बन जायेगा। जीवन के बिना आनन्द की कल्पना नही की जा सकती तो परमात्मा की कैसे ? जीवन की सत्यता को स्वीकार कर हर क्षण का आनन्द लेते हुऐ साक्षी बन जीना ही मुक्ति हे, हर क्रिया कलाप मे खुशी खोजेंगें, हर पल आन्नद को खोजेंगें तो मुक्ति आनन्द परमात्मा व प्रेम के द्वार खुल जायेंगे। परमात्मा हमसे दूर नही रहेगा, बल्कि पास खड़ा होगा।

           परन्तु मनुष्य भय के कारण मन्दिर जाता है। गुरू बनाता है। संसार के आगे झुकता हैं। ओर संसार के आगे झुकता ही चला जाता है। परमात्मा ने अनमोल जीवन दिया जहाँ हमे आनन्द लेना था परन्तु हमने अपनी बुधि से उसे विकृत कर तहस नहस कर दिया। वातावरण प्रदूषित हो गया है। जीवन की दिन चर्या छिन्न-भिन्न हो गयी है। इसीलिऐ मनुष्य इतने घृणित, अपराध, अत्याचार, बलात्कार, विनास, युद्र दगें प्रसाद आदि कर गुजरता है , सुख पाने के लिऐ। परन्तु उस ऊर्जा को विनाश पथ पर प्रयोग करने से वह और दुखी होता जाता है। यातनाऐं झेलता है। कष्ट पाता है। क्योकि वह कष्ट ही बो रहा हैं।

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