Sunday, 8 May 2016

संभोग से आनंद की ओर 10- काम एक शक्ति है




संभोग से आनंद की ओर 10- काम एक शक्ति है


       
     काम एक शक्ति हे जो मेथुन के समय प्रकट होकर दो भागों मै बँट जाती है। इसका एक भाग बर्हिमुखी व दूसरा अंतमुर्खी है। एक भाग प्रकृति की ओर ले जाता हे तो दूसरा निर्वृति की ओर, सेक्स का संयम जीवन को नियमित बनाने व पूर्ण आनंद के लक्ष्य को प्राप्त करने मे सहायक हे इसलिए सेक्स व कामकीड़ा का ज्ञान स्त्री पुरुष दोनों को ही होना जरुरी है तभी वह अंनन्त आनंद को भोग पाते हे, जिस प्रकार विधुत शक्ति मे आर्कषण व विर्कर्षण दो शक्तियाँ विधमान हे परन्तु दोनों के मिलने से ही प्रकाश व गति का संचालन होता है उसी प्रकार स्त्री व पुरुष के मिलने से सृष्टि का सृजन व आनंद की प्राप्ति होती है।

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      जहाँ शिव हे वहाँ शक्ति हैं , शक्ति के बिना शिव शव हैं, इसी प्रकार जहाँ पुरुष हे वहाँ स्त्री भी हे ओर दोनों के होने पर ही वह पूर्ण है, नहीं तो अकेले एक कुछ नहीं कर सकता । इस परासुक्ष्म जगत मे सव कुछ विधमान हे , लेकिन उसको सक्रिय करने व इच्छित रुप देने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है, ओर ऊर्जा ही सारे पदार्थ की जनक है। सूर्य की ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन हैं। ओर ऊर्जा ही सर्व शक्ति मान परम परमेश्वर का रुप है। ओर मैथुन के द्वारा विभिन्न प्रकार से ऊर्जाओ का उत्पादन किया जाता हैं। अनेक विज्ञानिक अब यह मानते हे कि सेक्स पावर एक एनर्जी है तो फिर इसका प्रयोग क्यों नहीं कर सकते हैं।

             एक - 2 रतिक्रिया ऊर्जा के नये नये स्रोतों का सृजन करती है। स्त्री (-) व पुरष (+) शक्तियाँ हे ओर जब यह शक्तियाँ टकराती है, घर्षण होता हे, रगड़ लगती हे तो विधुत उत्पन्न होती हे ओर इसी कारण उस समय शरीर गर्म हो जाते हे, पसीने छूटने लगते हे, श्वास की गति असमान्य रुप से बड़ जाती है परन्तु आनंद प्राप्ति के लिए इसमे स्खलन वर्जित है, क्योंकि इसका प्रयोग केवल सन्तान उत्पन्न करते समय ही करना हे, वाकी तो केवल आनंद ओर ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए करें तो जीवन पूर्ण आनंदमय बन जायेगा।


         संयम को बढ़ाना हे ओर स्खलन पर नियन्त्रण रखते हुऐ ही यह ऊर्जा उत्पन्न करनी हे, संभोग करते रहना, ऊर्जा को बढ़ाते रहना ओर स्खलन न होना एक महान साधना है। उत्तेजना की चरम सीमा पर पहुँचने के बाद भी स्खलन न कर ऊर्जा को बनायें रखना, मन पर नियन्त्रण रखना ओर उस समय घटित होती हुई घटनाओं पर अन्दर की ओर ध्यान लगाते हुए उस पल का अनुभव करना जहाँ सिर्फ आनंद हे ओर कुछ नहीं, न विचार न कार्य न कल की चिंता न तनाव बस इसी पल रुकना है, अनुभव करना हे शरीर मे घटित प्रत्येक पल की घटना को। इस प्रकार भोग से योग की ओर बढ़ेंगे , शरीर के रोग खत्म होगे,  वह ऊर्जा शरीर मे स्थित अनेक दूषित विषाणु कीटाणुओ का नास कर देगी, ओर आनंद की तरंग से रोम रोम को भर देगी। उस समय उच्च स्तर की ऊर्जा, जाग्रत होती हे ओर मन पूर्ण रुप से एकाग्र होता हैं। ओर इस अनन्त ऊर्जा का जैसे ही आप ध्यान लगाते हे तो आप परम आनंद स्वरूप आपने आप को पाते हैं।

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