Wednesday, 4 May 2016

संभोग से आनंद की ओर 8- प्राचिन काल मे नारी व संम्भोग




संभोग से आनंद की ओर 8- प्राचिन काल मे नारी व संम्भोग


सभ्यता के उदय काल में नारी को सम्मान जनक शब्दो से पुकारा जाता था। उसे देवी, कल्याणी, नारायणी, आदि नामो से सम्बोधित किया गया। वहाँ नारी व पुरूष को पूर्णतया समान आधिकार थें। नारी पूर्णतया स्वतंत्र जीवन यापन करती थी वह स्वेच्छा से पुरूष का चयन कर जीवन व्यतीत करती थी तथा चयन के बाद भी उसके शासन मे रहने को बाध्य नही थी। उसे पुरूष का परित्याग करने का भी अधिकार था। व्यक्तिगत संबंध केवल प्रेम पूर्ण व्यवहार पर ही आधारित थे अन्यथा नही।

              देव किरात तथा असुर युग तक आते-आते वैवाहिक संस्था का विकास हुआ, परन्तु उस समय भी नारी अबला नही थी। वह युद् किया करती थी। समान शिक्षा मिला करती थी और वह पुरूष के बराबर अधिकारो से सुज्जित थी। वहाँ भी कोई जाति बंधन नही था व नारी अपनी इच्छा अनुरूप पुरूष के साथ संभोग करती थी और अनेक पुरूषो से भी संबध बनाने की आजादी थी। उस समय की नारी पति द्वारा पूजनीय हुआ करती थी वह अराधित थी पति के द्वारा, एवं देवता तुल्य मानी जाती थी उस समय स्त्रीयो का सम्मान सबसे अधिक था।

           सत्युग तक परिस्थियाँ बदलने लगी चन्द्रमा नें बृहस्पति की पत्नी का हरण किया और भोगा। फिर बृहस्पति को वापस कर दिया परन्तु उस समय नारी को उसके बाद भी पूर्ण सम्मान मिलता था। अर्थात् पर पुरूष गामनि के बाद भी वह पूर्ण समान्नित होती थी।

        मनु के समय से नारी के अधिकारो मे बदलाव आना शुरू हुआ। वहाँ भी सैक्स को बुरा नही माना जाता था। अप्सरा व गणिकाऐ हुआ करती थी जो पूर्ण संभोग का आनन्द दिया करती थी। वह क्रीड़ा स्त्रीयाँ कहलायी जाती थी। स्त्रीयाँ उस समय बाजार में भी बिकती थी, तारामति का बिकना उसी काल का है। सत्युग मे स्त्रियाँ स्वेच्छा से संभोग की याचना कर सकती थी। अर्थववेद यम यमी संबाद में यमी अपने भाई यम से सन्तान उत्पति को कहती है। इस प्रकार सतयुग मे भी स्त्रीयाँ संभोग व सन्तान उत्पति के लिये स्वतन्त्र थी। तथा वह पुरूष का चयन करने मे भी स्वतन्त्र थी उस समय नारी कई बार विवाह करती थी

      वैदिक युग के बाद धीरे - धीरे ये स्वतन्त्रता खोने लगी पुराण युग मे स्त्रीयो की स्वतन्त्रता खोने लगी। बाल विवाह शुरू हो गये। विधवाओ का विवाह निषेद कर दिया गया और स्त्री को भोग विलास की वस्तु समझा जाने लगा। वहाँ से समाज मे सैक्स के प्रति कुविचार व भ्रम फैलना शुरू हुआ। और सैक्स व स्त्री धार्मिक संर्कीण विचारधारा की शिकार होकर रह गई। धर्म शास्त्र युग संहिताओ का युग माना गया। यहाँ नारी को अबला का दर्जा दिया गया। वह पराधीन परतंत्र व निसहाय और निर्बल बनती चली गयी। वह केवल पति के अनुसार ही चलती थी यहाँ से संभोग की दिशा व दृष्टि बदल गयी। जिसे खुलापन व स्वतन्त्रता थी वह पाप और निन्दक बन गया। मनु स्मृति ने साफ लिखा कि स्त्री कभी भी स्वतन्त्र रहने योग्य नही है। साथ ही उसे पति की सेविका बना दिया गया, उसकी शिक्षा भी बन्द कर दी गयी, स्त्री को मनु ने दोगला रिस्ता दिया, जहाँ वह माता गुरू के रूप मे पूजनीय मानी वही पत्नी के रूप मे उसे अपमानित किया गया।

         फिर बहुपत्नी प्रथा आयी। मुस्लिम शासन ने आकर नारी को और अधिक प्रतिबंधित कर दिया। सतयुग व रामायण युग मे नारी को दासी बना दिया वही द्वापरयुग मे कृष्ण ने एक बार फिर बराबरी का दर्जा देने की कोशिश की फिर वही प्रेम धारा को बहाँ दिया। राधा व गोपियो के साथ रास रचाया, मित्रवत संबंध बनायें, यहाँ नारी को नर के बराबर का दर्जा दिया गया और एक बार फिर वही आनन्द का खुलापन समाज मे आया। किन्तु फिर जल्द ही आगे बोद्धकाल मे नारी को उपभोग की वस्तु बना दिया गया। सम्राट अशोक के काल मे भी नारी पर अत्याचार हुऐं और मुगल काल मे नारियाँ पर्दे के पीछे चली गयी परन्तु फिर पच्छिमीकरण का आगमन हुआ ब्रिटिशकाल आया और नारियो के लिऐ आन्दोलन शुरू हो गयें। बाल विवाह, सती प्रथा, कन्या वध, भूण हत्या, के खिलाफ आन्दोलन तो हुऐ पर सफल नही हुये ।

         फिर भारत आजाद हुआ परन्तु नारी को स्वतन्त्रता आज भी नही मिली। आज भी वो मानसिकता पैदा नही हुई है। जहाँ नारी स्वयं अपना वर चुन सके या वह अपनी मर्जी से पुरूष से संबंध बना सके। धर्म के ठेकेदार व सामाजिक व्यवस्था ऐसी बिगड़ी कि वह सुधारने की नाम ही नही ले रही है। जिस समय सैक्स को पाप व निन्दक न समझा जाता था उस समय नारी यह बलात्तकार व अत्याचार की शिकार नही होती थी। परन्तु आज के युग मे फिर क्रान्ति आ रही है नारी व पुरूष समझ रहें है स्वन्तत्रता को, वह आजाद होना चाहते है। सैक्स के भय से अजाद होकर खुलकर बात करना चाहते है। इसलिये जब भी मौका मिलता है वह खुलकर वार्तालाप करते है। और आज प्रत्येक लडका प्रेमिका व लडकी प्रेमी की चाह रखते हैं। एक बार फिर वह समाज को बदल रहे है। अपनी मर्जी से शादी कर रहे है, स्ंवय नारी पुरूष का चयन कर रही है, चाहे लाख बंदिशे क्यो न हो फिर भी सब कुछ घटित हो रहा है जो प्रेम की फिर वही परिभाषा लिखेगा जिसमे सिर्फ आनन्द होगा और आनन्द होगा।

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