संभोग से आनंद की ओर
12- मोह ममता व सैक्स
सभी मोह ममता का तार सैक्स से जुड़ा है। हमे आपने चारों ओर
जो कुछ भी दिखाई देता हे वह किसी न किसी रुप मे सैक्स से ही जुडा हैं। सारा चराचर
जगत इसी धुरी पर चल रहा हैं। इस मायाजाल को प्रकृति ने काम की संज्ञा दी हे जो
सम्पूर्ण जीवन के अस्तित्व का आधार हैं। काम की साधना से ही हम सबकुछ पा लेते हैं।
यौनि का संबंध संभोग से ही नहीं, सम्पूर्ण विराट
विस्व से हे जो इसमे समाहित हैं। यौनि अर्थात स्त्री की पूजा कामाख्या व देवी रूप
मे इसलिए की जाती हे कि वह केवल उदगम स्थल ही नही, निर्माण प्रक्रिया भी करती हे इसीलिये स्त्री को पुरूषों
से बड़ा माना गया है। अतः स्त्री ही मौक्ष का दरवाजा हे, इसके बिना शरीर का पैदा होना संभव नही हैं
इसीलिए इसे महामाया भी कहा गया हैं।
मनुष्य
की आत्मा कभी नहीं मरती, यह सत्य हे कोई भी
वस्तु नष्ट नही होती हैं। उसके मूल तत्व हमेशा बने रहते हैं। केवल रुप बदलता हैं ।
सूक्ष्म से स्थूल व स्थूल से सूक्ष्म मे परिवर्तन होता है। शरीर पंचतत्व से बना है
वह बिखर जाते हैं, परन्तु आत्मा का
अस्तित्व बना रहता हैं, ओर फिर वह एक नये
रूप मैं जन्म लेती हैं। इसका माध्यम भी कामभावना हैं। स्त्री पुरूष के मिलन के
द्वारा ही यह परिवर्तन संभव हैं। अतः काम के समय उत्पन्न ऊर्जा मे इतनी शक्ति होती
है कि वह अपने अनुरूप एक जीव की सूक्ष्म रचना कर देती हैं जो धीरे धीरे पूरे शरीर
का रूप ले लेती हैं। ओर फिर इसी शरीर के द्वारा मौक्ष आनंद तृप्ति सब संभव होता
हैं।
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