Saturday, 7 May 2016

संभोग से आनंद की ओर 9-प्रेम व सेक्स



संभोग से आनंद की ओर 9-प्रेम व सेक्स


       इसके लिए हमें इसके पहलुओ को समझना होगा।सेक्स मनुष्य की मूल भावना हैं। जिसे प्रेम कहा जाता हैं । इसका जीवन मैं इतना महत्व हे कि इसके बिना सृष्टि की रचना संभव नहीं है। हमारे चारों तरफ जितने भी क्रियाकलाप है वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम के साथ जुड़े हुए हैं। हमारे ग्रन्थो मे भी जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए धर्म , अर्थ, काम, ओर मोक्ष का वर्णन किया हैं। अर्थात सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। धर्म के साथ अर्थ ,अर्थ के साथ काम, ओर काम के साथ मोक्ष जुड़ा हुआ है। ओर इसी काम को दर्शाने के लिए कामदेव (पुरुष) व रति (स्त्री) देवता के प्रतीक भी बनाये गये हैं। काम व रति के अभाव मैं मनुष्य का हदृय कुंठाओ से भर जाता हैं ओर मति भष्ट हो जाती हैं। काम के बिना जन्म संभव नहीं है ओर शरीर के बिना मौक्ष संभव नहीं हैं। इसलिए आनंद को लक्ष्य बनाकर काम साधना का उपयोग करना चाहिए । काम की उत्पत्ति सृष्टि के आरंभ के साथ ही हुई हैं ओर जीवन के हर पल मे इसका पूरा पूरा महत्व हैं।

           मनुष्य आनंद चहाता हैं ओर वह उसे पाने के लिये लालायित होता है। जीवन मे संभोग आनंद की पराकाष्ठा है क्योंकि उस समय उसके अन्दर कोई भी विचार नही होता है वह निर्विचार सिर्फ वर्तमान मे क्रियाशील हो रहा होता है ओर बिन्दु का आनंद रूपी अमृत नीचे की ओर आकर आनंद की तृप्ति देता है। इस प्रकार काम का उपयोग सीमा मे कर उसे आनंद का साधन बनाना केवल संयम के अधीन ही संभव हैं।

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