संभोग से आनंद की ओर 11- मनुष्य जीवन की स्त्री से घनिष्ठा
संभोग से आनंद की ओर
11- मनुष्य जीवन की स्त्री से घनिष्ठा
मनुष्य का सारा जीवन स्त्री के निकट ही घूमता रहता है। स्त्री
ही सम्पूर्ण जीवन का केंद्र बिन्दु है, स्त्री से इसका जन्म होता हे, स्त्री इसका पालन करती है ओर बडे होने पर स्त्री का ही भोग
करता है, इसलिये जब सम्पूर्ण जीवन ही स्त्री के साथ चलता
हे तो क्यों न इसका प्रयोग कर हम अपने जीवन को उस सम्पूर्ण आनंद व शान्ति से भर दे
जहाँ कोई तनाव बाकी न रहे स्त्री (पत्नी) हमें वो आनंद का स्रोत हे जो अनेक रुप से
हमें शक्ति देती हैं ओर हमसे शक्ति प्राप्त करती हैं। यदि हम सेक्स के समय अतृप्त
रह जाते है तो स्त्री परपुरुष गामिनी ओर पुरूष परस्त्रीगामी हो जाते हैं। ओर जब
उससे भी तृप्ति नहीं होती तो फिर अगला पुरूष या स्त्री। यह बात दोनों पर ही लागू होती है ओर पुरुषों
द्वारा किए जाने वाले बलात्कार भी इसी कारण होते हैं। वह दूसरी स्त्री मे उस
तृप्ति को पाने की कोशिस करता हे ओर इस कदर यह दबाव मन पर पड़ता हे कि वह अपराध कर
गुजरता हैं।
इस
प्रकार इस तरह के जितने भी यौन अपराध हे उनका संबंध चाहे वह बलात्कार के हो, छेड़छाड़ के हो या अनेक स्त्रियों से संबंध
बनाने से हो वह सब हमारी सेक्स भावना की अतृप्ति से ही जाग्रत होते है ओर हम अपराध
कर जाते हैं। सेक्स से हमे तृप्ति व आनंद नहीं मिला ब्लकि केवल शक्ति का ह्रास हुआ
ओर हम निस्तेज हो गये ।
हमें
इस संभोग को आनंद की उस चरम सीमा (तृप्ति) तक ले जाना हें कि फिर ओर कोई चाह न रहे
तो अनेक अपराध रुक जायेगे, हमारे परिवार
बिखरने से बच जायेगे, तलाक नामे होना
खत्म हो जायेंगे, आपसी झगड़े मिट
जायेंगे। एक दूसरे की कमियां भी जबहि दिखाई देती है जब हम अतृप्त होते हैं। जब हम
तृप्त होते हे तो कमियां भी अच्छी लगती हैं। अतः तृप्ति कैसे हो समझे जाने ओर इसको
अपनाये।
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