Monday, 2 May 2016

संभोग से आनंद की ओर 7- जीवन की उत्पत्ति


संभोग से आनंद की ओर 7-  जीवन की उत्पत्ति


 वृक्ष पर खिला फूल फल बनने की तैयारी कर रहा है पक्षी, तितली, भौरे, मधुमक्खी फूल के पुकेंशर को उसके गर्भ बनने मे सहायता दे रही है। बदले मे पराग रूपी आन्नद पा रही है। फल बीज की रक्षा कर रहा है और बीज दूसरे पौधे को जन्म दे रहा है। पूरी सृष्टि काम-कृत्य है एक सुंन्दर सृजन है सभी जीव अपनी जाति को बनाये रखने के लिऐ अपने काम कृत्य मे लगे हुऐ है । मनुष्य भी नये जीवन को जन्म देने की क्रिया कर रहा है जिसे सैक्स कहाँ गया है मनुष्य की चेतना के बढते विकास ने जहाँ अनेक सुविधाओ के साधन जुटाये है वही विनास के लिऐ परमाणु बंमो का भी निर्माण कर दिया है। अनेको बार सृष्टि बदली है। डायनासोर जैसी जातियाँ लुप्त हो गयी आज तीसरे विस्व युद के आसार बनते जा रहे है। जिससे एक बार फिर बदलाव होगा क्योकि मनुष्य शक्ति का प्रतिदिन विकास करता जा रहा है। परन्तु धन दौलत ताकत ओर ज्ञान के बाद भी भय, तनाव, घर्णा, तृष्णा, अशान्ति, क्रोध, मोह, लोभ, से भरता जा रहा है। और विनाश की डगर को मजबूत करता जा रहा है। सत्य से दूर होकर जीवन का लम्बे समय तक चल पाना संभव ही नही है।

       सत्य को निन्दा का विषय बना दिया है। चेतना जो काम केन्द्र की चारो और चक्कर लगा रही है उसे गुप्त रखा जाता है। हमारा जंन्म पूरा जीवन और सभी काम कृत्य का ही परिणाम है। हमारे सारे क्रिया कलाप इसी के चारो ओर घूमते है परन्तु फिर भी सत्य को दमन करना चाहाते है क्योकि यही हमारी सभ्यताओ व मान्यताओ ने बताया है। परन्तु सत्य उतनी ही तेजी से बहार आता है। ये काम ऊर्जा या तो कोई अत्याचार करायेगी या किसी रोग का कारण बन जायेगी। कितना हमने इसको दमन किया है इसका पता आप अन्तः मन से पूछे जब भी कभी हमे इस बारे मे बात करने का मौका मिलता है तो हम सब कुछ अपने सामने वाले को बता देते है। अकेले मे अपने मित्रो मे केवल हम सैक्स की ही चर्चा करते है।

   आचार्य रजनीश के शब्दो मे पृथ्वी उसी दिन सैक्स से मुक्त होगी जब हम इसको पूर्ण रूप से समझ लेगे। मनुष्य ब्रहमचर्य का पालन, बिना सेक्स के समझे नही कर सकते है। जब हम इसको जान लेगे समझ लेगे तो सेक्स से ऊपर उठकर आन्नद को पाने लगेगे।          

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