“तंत्र”….. ये “तंत्र” क्या है ?
तंत्र का अर्थ है “आतंरिक शक्तियों को जगाकर ब्रह्माण्ड से जोड़ना”।
वैसे देखा जाए तो
तंत्र कि परिभाषा लोग अलग अलग देते हैं लेकिन उसमे एक बात सामान्य है और वो है
शरीर को साधना।
जब हम योग कहते हैं, तो किसी भी संभावना को
नहीं छोड़ते, इसके अंदर सब कुछ है। अगर आप अपने दिमाग
को इतना धारदार बना लें कि वह हर चीज को आरपार देख-समझ सके, तो यह भी एक प्रकार का
तंत्र है। अगर आप अपनी सारी ऊर्जा को अपने दिल पर केंद्रित कर दें ताकि आपमें इतना
प्यार उमड़ सके कि आप हर किसी को उसमें सराबोर कर दें, तो वह भी तंत्र है। अगर
आप अपने भौतिक शरीर को जबरदस्त रूप से शक्तिशाली बना लें कि उससे आप कमाल के करतब
कर सकें, तो
यह भी तंत्र है। या अगर आप अपनी ऊर्जा को इस काबिल बना लें कि शरीर, मन या भावना का उपयोग किए
बिना ये खुद काम कर सके, तो यह भी तंत्र है।
तो तंत्र कोई अटपटी
या बेवकूफी की बात नहीं है। यह एक खास तरह की काबिलियत है। आप जो “बाजार” में घूमते जिन ढोंगी तांत्रिक बाबाओं को देखते हैं,, जो की आम जनता की आँखों
में धुल झोंक के उन्हें ताबीज,यन्त्र बाँटते चलते हैं,,,,, मैं उनकी बात नहीं कर रहा | वह सच्चा तंत्र नहीं है | वह केवल ढोंग, छलवा है |
तंत्र- शास्त्र से
तात्पर्य उन गूढ़ साधनाओं से है जिनके द्वारा इस संसार को संचालित करने वाली
विभिन्न दैवीय शक्तियों का आव्हान किया जाता है । तंत्र साधना के समय विभिन्न
मुद्रायें एवं क्रियाएं अत्यंत व्यस्थित, नियमित एवं नियंत्रित तरीके से होती हैं । जिससे उसे ईश्वर की
सार्वभौमिकता एवं जीवन की निरर्थकता का आभास होता है। यह एक तरह की ऐसी विद्या है
जो व्यक्ति के शरीर को अनुशासित बनाती है, शरीर पर खुद का नियंत्रण
बढ़ाती है।
एक बार “माता पार्वतीजी” ने “परमपिता
महादेव शिव” से
प्रश्न किया की—— “हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष
प्राप्ति का क्या मार्ग होगा” ?
उनके इस प्रश्न के
उत्तर मे महादेव शिव ने उन्हे समझते हुए जो भी व्यक्त किया तंत्र उसी को कहते हैं।
योगिनी तंत्र मे
वर्णन है की कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम
और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति
वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के समान
होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश
में अपना समय और ऊर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के
बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा
का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा।
महादेव ने बताया की
वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा.
तब माँ पार्वती ने
महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा
अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा?
इस पर “शिव जी” ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा।
तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त
करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा। परन्तु ऐसा करने के लिए साधक
के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्छा
होनी चाहिए।
तंत्र के प्रायोगिक
क्रियाओं को करने के लिए एक साधक को सही ज्ञान जरुरी है। तंत्र एक सिद्धांत को
कहते हैं। किसी भी आविष्कार को सफल बनाने के लिए एक सही मार्ग और सही नियमों की
आवश्यकता होती है। तंत्र वही सिद्धांत है जो एक प्रयोग को सफल बनाने में साधक की
मदद करता है। तंत्र द्वारा ही यह पता चलता है की कौन सी क्रिया को समिलित कर के
लक्ष्य तक पंहुचा जा सकता है । तंत्र के सिद्ध होने पर ही पूरा प्रयोग सफल होता है।
ऐसी कोई बीमारी या
परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो।
तंत्र ब्रह्मांड में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला
को कहते हैं। तंत्र को
यदि सही से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है।
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