Tuesday, 18 October 2016

अस्तित्व ही विश्व रूप

ध्यान में आकार मिट गया है, प्रेम में तुम दूसरे में स्वयं उसकी तरह प्रविष्ट होते हो। तुम एक हो जाते हो। और पहली दफा तुम एक अंतस को, निराकार उपस्थिति को जानते हो।
यही कारण है कि सदियों—सदियों तक हमने शिव की कोई प्रतिमा, कोई चित्र नहीं बनाया। हम सिर्फ शिवलिंग बनाते रहे, उनका प्रतीक बनाते रहे। शिवलिंग एक निराकार आकार है। जब तुम किसी को प्रेम करते हो, किसी में प्रवेश करते हो, तब वह मात्र एक ज्योति की उपस्थिति हो जाता है। शिवलिंग वही ज्योतित उपस्थिति है, प्रकाश का प्रभा—मंडल। इसीलिए अब देवी पूछती हैं :
आपका सत्य क्या है? यह विस्मय—भरा विश्व क्या है?
हम विश्व को जानते हैं, लेकिन नहीं जानते हैं कि यह आश्चर्य से भरा है। बच्चे जानते हैं, प्रेमी जानते हैं; कभी—कभी कवि और पागल भी जानते हैं। लेकिन हम नहीं जानते कि ब्रह्मांड आश्चर्य भरा है। हमारे लिए सब कुछ महज पुनरावृत्ति है; उसमें कोई आश्चर्य नहीं, कोई कविता नहीं। वह सपाट गद्य है हमारे लिए। तुम्हारे हृदय में वह कोई गीत नहीं पैदा करता, तुममें वह नृत्य नहीं उपजाता, तुम्हारे भीतर किसी कविता का जन्म नहीं बनता। सारा जगत यंत्रवत मालूम होता है।
बच्चे अवश्य उसे आश्चर्य— भरी आंखों से देखते हैं। और जब आंखें आश्चर्य— भरी होती हैं, तब सारा ब्रह्मांड आश्चर्य से भर जाता है। और जब तुम प्रेम में होते हो, तुम फिर बच्चों की भांति हो जाते हो। जीसस कहते हैं : केवल वे ही हमारे प्रभु के राज्य में प्रवेश करेंगे जो बच्चों की भांति हैं। क्यों? क्योंकि विश्व यदि आश्चर्यपूर्ण नहीं है तो तुम धार्मिक नहीं हो सकते। विश्व की व्याख्या हो सके, यह दृष्टि वैज्ञानिक है। तब जगत ज्ञात है या अज्ञात। लेकिन जो अज्ञात, वह किसी दिन ज्ञात हो सकता है। तब वह अज्ञय नहीं है। और जगत तभी अज्ञेय है, एक रहस्य है, जब आंखें विस्मय— भरी हों।
जब रूप विदा होता है तब प्रेमी विश्व बन जाता है—निराकार, अंतहीन। अचानक देवी को बोध होता है कि मैं शिव के बारे में नहीं पूछ रही हूं पूरे विश्व के बारे में पूछ रही हूं। अब शिव ही समस्त विश्व हो गए हैं। अब सब ग्रह—तारे उनके भीतर ही घूम रहे हैं; सारा आकाश, समस्त महाकाश उनसे घिरा है। अब वे सब से बड़ा घेरने वाला तत्व हैं—महा घेरनहार। जब तुम प्रेम में, प्रेम के घनिष्ठ सस्वर में प्रवेश करते हो, तब व्यक्ति का, रूप का लोप हो जाता है और प्रेमी विश्व का द्वार बनकर रह जाता है।
प्रेम में यदि आकार हो तो उसका अंत है। आकार को मिटा दो। जब चीजें अरूप हो जाती हैं—धुंधलकी, सीमाहीन हो जाती हैं, तब हर चीज दूसरी चीज में प्रवेश करती है, जब समस्त विश्व एकता में सिमट जाता है, तब—और तभी—यह विश्व विस्मय— भरा कलामय विश्व है।

(बहुत सही कहा है जब हम ध्यान के अंदर प्रवेश करते है उस परमात्मा के प्रेम में उतारते है तो सबसे पहले हमारा शरीर ही विदा होता है ओर तब ही हम आंतरिक जगत में प्रवेश करते है, ओर जेसे ही हम आंतरिक जगत में प्रवेश करते है तो सारा विश्व, पूरा ब्रमांड हमारे अन्दर समा जाता है या यु कहे की हमारा अस्तित्व ही विश्व रूप हो जाता है) 

No comments:

Post a Comment