अपनी जिंदगी में "कर्मों का तूफ़ान" पैदा करो,
भाग्य के रास्ते अपने आप खुल जायेंगे
1. "कर्म करो, फल की इच्छा मत करो."
2. "हमारी सफलता हमारे द्वारा किये गए "कार्य के पीछे की नियत" पर निर्भर करती है....."
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1. "कर्म करो, फल की इच्छा मत करो" :-
धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य. हमारे ग्रंथों ने कर्त्तव्य को ही धर्म कहा है. हमें भी जीवन में अपने कर्त्तव्य को पूरा करने में कभी भी ये नहीं सोचना है कि ये कर्त्तव्य करने से हमारा नाम होगा या बेइजत्ती, हमारा फायदा होगा या नुकसान. अपने मन को सिर्फ और सिर्फ अपने कर्तव्य पर टिकाकर काम करना है. इससे हमें अपनी "जिंदगी के सबसे बढ़िया परिणाम" मिलेंगे और सबसे बड़ी बात हम काफी बिमारियों से मुक्त रहेंगे. हमारे बीमार पड़ने के सबसे बड़े कारणों में से एक है, हमारा अपने "कर्तव्यों को करने से पहले उसके फायदे या नुकसान के बारे में सोचकर कार्य करना".
चलिए जरा कुछ उदाहरण लेते हैं :-
1. स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई पर कम और कितने नंबर आएंगे, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
2. अपने ऑफिस में काम में पूरा ध्यान न लगा कर, हमारी सैलरी कितनी और कब बढ़ेगी, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
3. बिज़नेस में पूरा ध्यान ग्राहक की सेवा में न लगा कर, साल के आखिर में कितना मुनाफा होगा, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
4. राजनीति में एक बार जीतने के बाद, काम करने की जगह, पहले दिन से ही अगली बार का टिकट मिलेगा की नहीं, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
मित्रों शुरू से ही "अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा" हमारे अंदर नकारात्मक भाव पैदा करती है और फिर हम हर वक़्त अपने कर्त्तव्य यानि कार्य को न कर अपनी "पसंद के परिणाम" पर ही "ध्यान केंद्रित" कर देते हैं और अपने को "धीरे धीरे कमजोर" करते हैं.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यही कहा है - "कर्म करो, फल की इच्छा मत करो" और "कर्म ही पूजा है."
2. मित्रों हमें इससे भी महत्वपूर्ण बात, "किसी भी कार्य को करने के पीछे की नियत" को भी समझना होगा, जी हाँ किसी भी कार्य (चाहे छोटा हो या बड़ा).
अगर पहले से ही हमारी नियत गलत है और हमने वो कार्य शुरू कर दिया तो पहले से ही समझ लीजिएगा कि वो कार्य शुरू होकर चलने तो लग जायेगा पर बहुत आगे तक नहीं जा सकता. जैसे :-
(a) अगर हम "स्कूल/ कॉलेज" में पढ़ाई "अपना भविष्य बनाने की नियत से नहीं" अपितु "अपने दोस्तों को दिखाने की नियत" से कर रहें हैं तो हम बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाएंगे.
(b) अगर हम "ऑफिस" में काम "खुद को सीखने की नियत से नहीं" अपितु "अपने बॉस को खुश करने की नियत" से कर रहे हैं तो भी हम अपनी जिंदगी में बहुत ज्यादा सफल नहीं होंगे.
(c) अगर हम "बिज़नेस" अपने को "बढ़ाने की नियत से नहीं" अपितु "अपने प्रतिद्वंद्वीयों को गिराने" के लिए कर रहे हैं तो भी हम बिज़नेस में बहुत ज्यादा सफल नहीं होंगे.
(d) अगर हम "राजनीति "समाज को बढ़ाने की नियत से नहीं" अपितु "अपने को बढ़ाने" के लिए कर रहे हैं तो भी हम एक दिन नीचे आएंगे ही आएंगे.
मित्रों जब हम कोई भी "काम सिर्फ दूसरों को दिखाने या दूसरों को गिराने की नियत" से करते हैं तो हम दूसरों के "सोच के जाल" "(Trap of Thinking)" में फंस जाते हैं और तब हमारी "अपनी सोच बंद" हो जाती है और हम "दूसरों की सोच के इर्द गिर्द ही घूमते घूमते" अपनी सारी की सारी जिंदगी गुजार देते हैं.
इसलिए मित्रों आप सभी से नम्र निवेदन है की जिंदगी जीनी है, तो, "किसी को भी गिराने की सोच से कोई काम मत करो" और "अगर हमने ये किया, तो समझ लीजिएगा कि जब उस काम की "शुरूआत ही गलत नियत" से हुई है, तो, हमें जिंदगी में "सफलता मिलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता."
ये बात भी भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में हमें "समझाकर", "सचेत रहने" के लिए कहा है कि "हमारी सफलता कार्य के पीछे की नियत पर ही निर्भर करती है."
मित्रों अगर हम "अपना धर्म यानि कर्त्तव्य यानि कर्म" "बिना किसी फल की इच्छा के साथ करेंगे" और "किसी भी कार्य को करने से पहले "निस्वार्थ नियत" को साथ रखेंगे" तो मान कर चलिए हमको किसी भी "कर्म के" "सबसे बेहतर, जी हाँ सबसे बेहतर फल मिलेंगे, इसमें कोई संशय नहीं.
किसी ने बिलकुल सही कहा है :-
अपनी जिंदगी में "कर्मों का तूफ़ान" पैदा करो,
भाग्य के रास्ते अपने आप खुल जायेंगे ......😊
भाग्य के रास्ते अपने आप खुल जायेंगे
1. "कर्म करो, फल की इच्छा मत करो."
2. "हमारी सफलता हमारे द्वारा किये गए "कार्य के पीछे की नियत" पर निर्भर करती है....."
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1. "कर्म करो, फल की इच्छा मत करो" :-
धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य. हमारे ग्रंथों ने कर्त्तव्य को ही धर्म कहा है. हमें भी जीवन में अपने कर्त्तव्य को पूरा करने में कभी भी ये नहीं सोचना है कि ये कर्त्तव्य करने से हमारा नाम होगा या बेइजत्ती, हमारा फायदा होगा या नुकसान. अपने मन को सिर्फ और सिर्फ अपने कर्तव्य पर टिकाकर काम करना है. इससे हमें अपनी "जिंदगी के सबसे बढ़िया परिणाम" मिलेंगे और सबसे बड़ी बात हम काफी बिमारियों से मुक्त रहेंगे. हमारे बीमार पड़ने के सबसे बड़े कारणों में से एक है, हमारा अपने "कर्तव्यों को करने से पहले उसके फायदे या नुकसान के बारे में सोचकर कार्य करना".
चलिए जरा कुछ उदाहरण लेते हैं :-
1. स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई पर कम और कितने नंबर आएंगे, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
2. अपने ऑफिस में काम में पूरा ध्यान न लगा कर, हमारी सैलरी कितनी और कब बढ़ेगी, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
3. बिज़नेस में पूरा ध्यान ग्राहक की सेवा में न लगा कर, साल के आखिर में कितना मुनाफा होगा, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
4. राजनीति में एक बार जीतने के बाद, काम करने की जगह, पहले दिन से ही अगली बार का टिकट मिलेगा की नहीं, इस पर ज्यादा ध्यान देते हैं.
मित्रों शुरू से ही "अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा" हमारे अंदर नकारात्मक भाव पैदा करती है और फिर हम हर वक़्त अपने कर्त्तव्य यानि कार्य को न कर अपनी "पसंद के परिणाम" पर ही "ध्यान केंद्रित" कर देते हैं और अपने को "धीरे धीरे कमजोर" करते हैं.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यही कहा है - "कर्म करो, फल की इच्छा मत करो" और "कर्म ही पूजा है."
2. मित्रों हमें इससे भी महत्वपूर्ण बात, "किसी भी कार्य को करने के पीछे की नियत" को भी समझना होगा, जी हाँ किसी भी कार्य (चाहे छोटा हो या बड़ा).
अगर पहले से ही हमारी नियत गलत है और हमने वो कार्य शुरू कर दिया तो पहले से ही समझ लीजिएगा कि वो कार्य शुरू होकर चलने तो लग जायेगा पर बहुत आगे तक नहीं जा सकता. जैसे :-
(a) अगर हम "स्कूल/ कॉलेज" में पढ़ाई "अपना भविष्य बनाने की नियत से नहीं" अपितु "अपने दोस्तों को दिखाने की नियत" से कर रहें हैं तो हम बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाएंगे.
(b) अगर हम "ऑफिस" में काम "खुद को सीखने की नियत से नहीं" अपितु "अपने बॉस को खुश करने की नियत" से कर रहे हैं तो भी हम अपनी जिंदगी में बहुत ज्यादा सफल नहीं होंगे.
(c) अगर हम "बिज़नेस" अपने को "बढ़ाने की नियत से नहीं" अपितु "अपने प्रतिद्वंद्वीयों को गिराने" के लिए कर रहे हैं तो भी हम बिज़नेस में बहुत ज्यादा सफल नहीं होंगे.
(d) अगर हम "राजनीति "समाज को बढ़ाने की नियत से नहीं" अपितु "अपने को बढ़ाने" के लिए कर रहे हैं तो भी हम एक दिन नीचे आएंगे ही आएंगे.
मित्रों जब हम कोई भी "काम सिर्फ दूसरों को दिखाने या दूसरों को गिराने की नियत" से करते हैं तो हम दूसरों के "सोच के जाल" "(Trap of Thinking)" में फंस जाते हैं और तब हमारी "अपनी सोच बंद" हो जाती है और हम "दूसरों की सोच के इर्द गिर्द ही घूमते घूमते" अपनी सारी की सारी जिंदगी गुजार देते हैं.
इसलिए मित्रों आप सभी से नम्र निवेदन है की जिंदगी जीनी है, तो, "किसी को भी गिराने की सोच से कोई काम मत करो" और "अगर हमने ये किया, तो समझ लीजिएगा कि जब उस काम की "शुरूआत ही गलत नियत" से हुई है, तो, हमें जिंदगी में "सफलता मिलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता."
ये बात भी भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में हमें "समझाकर", "सचेत रहने" के लिए कहा है कि "हमारी सफलता कार्य के पीछे की नियत पर ही निर्भर करती है."
मित्रों अगर हम "अपना धर्म यानि कर्त्तव्य यानि कर्म" "बिना किसी फल की इच्छा के साथ करेंगे" और "किसी भी कार्य को करने से पहले "निस्वार्थ नियत" को साथ रखेंगे" तो मान कर चलिए हमको किसी भी "कर्म के" "सबसे बेहतर, जी हाँ सबसे बेहतर फल मिलेंगे, इसमें कोई संशय नहीं.
किसी ने बिलकुल सही कहा है :-
अपनी जिंदगी में "कर्मों का तूफ़ान" पैदा करो,
भाग्य के रास्ते अपने आप खुल जायेंगे ......😊
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer
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