Wednesday 7 February 2018

संसार माया है, फिर भी इतने लोग क्‍यों संसार में ही उलझे रहते हैं

ओशो, संत कहते हैं कि संसार माया है, फिर भी इतने लोग क्‍यों संसार में ही उलझे रहते हैं?

 रामपाल, संत लाख कहें संसार माया है, सौ में से निन्यानबे संत तो खुद ही माया में उलझे रहते हैं। लोग भी कुछ अंधे नहीं हैं। लोग भी देखते हैं कि महाराज हमें तो समझा रहे हैं कि संसार माया है और खुद? खुद माया में ही जी रहे हैं।
संसार माया है भी नहीं, संसार तो सत्य है। झूठी बात कहोगे, उसके परिणाम कैसे होंगे? झूठी बात में कहीं सत्य की सुगंध उठ सकती है? सदियों से संत दोहरा रहे हैं कि संसार माया है। दोहराते रहो। लोग भी दोहराना सीख गए हैं, वे भी दोहराते हैं कि संसार माया है। मगर यह दोहराने की बात एक, जीने की बात और; कहने की बात एक, होने की बात और। दिखाने के दांत और, खाने के दांत और।
कैसे मानते हो कि संसार माया है? संसार माया नहीं है, संसार वास्तविक है। वास्तविक परमात्मा से वास्तविक संसार ही पैदा हो सकता है। वास्तविक से अवास्तविक कैसे पैदा होगा, थोड़ा सोचो तो! अगर ब्रह्म सत्य है तो जगत मिथ्या कैसे हो सकता है? क्योंकि ब्रह्म का ही तो अवतरण है जगत, उसी की तो तरंगें हैं। उसी ने तो रूप धरा, उसी ने तो रंग लिया। वही निर्गुण तो सगुण बना। वही तो निराकार आकार में उतरा। उसने देह धरी। अगर परमात्मा ही असत्य हो तो संसार असत्य हो सकता है।
लेकिन न परमात्मा असत्य है न संसार असत्य है; दोनों सत्य के दो पहलू हैं—एक दृश्य, एक अदृश्य। माया फिर क्या है? मन माया है। मुझसे पूछो तो मैं संसार को माया नहीं कहता, मन को माया कहता हूं। मन है एक झूठ, क्योंकि मन है जाल— वासनाओं का, कामनाओं का, कल्पनाओं का, स्मृतियों का। मन माया है।
काश, हमने लोगो को समझाया होता कि संसार माया नहीं, मन माया है, तो यह दुनिया आज कुछ और होती! इस दुनिया का सौंदर्य कुछ और होता! इस दुनिया का उल्लास कुछ और होता! इस दुनिया में धार्मिकता होती!
संसार माया है, तो लोग संसार को छोड़ कर भागने लगे। संसार को छोड़ कर कहां जाओगे? जहां जाओगे वहीं संसार है।
एक आदमी भाग गया— क्रोधी था। किसी साधु से सत्संग किया, साधु ने कहा : संसार तो माया है। इसमें रहोगे तो ये क्रोध, माया, लोभ, मोह, काम, कुत्सा, ये सब घेरेंगे। छोड़ दो संसार। यहां तो क्रोध स्वाभाविक है। मैं भी क्रोधी था जब संसार में था। जब से संसार छोड़ा, क्रोध आता ही नहीं। हट ही गए वहां से तो क्या क्रोध!
उस आदमी ने कहा ठीक है। वह जंगल में जाकर एक झाडू के नीचे बैठ गया। एक कौए ने उसके ऊपर बीट कर दी। अब कौए को क्या पता कि महाराज यहां नीचे बैठे ध्यान कर रहे हैं। कौए तो कौए, धार्मिक—अधार्मिक में भेद भी उनको क्या! साधु—संत में फर्क भी क्या करें! संसारी है कि संन्यासी है, इतना हिसाब भी उनको कहां! रहा होगा कोई नास्तिक कौआ। उसने एकदम बीट कर दी! उनके ऊपर बीट गिरी, उठा लिया डंडा कि हद हो गई, संसार इसीलिए तो छोड़ कर आया। इस दुष्ट कौए को अगर पाठ नहीं पढ़ाया तो जिंदगी मेरी अकारथ है।
अब कौआ उड़ा फिरे और वह आदमी भागा फिरे। पत्थर मारे, डंडा फेंके।
संसार से भाग जाओगे, क्या होगा? आखिर उसने कहा यह जंगल भी किसी काम का नहीं। झाडू के नीचे बैठना ठीक नहीं, क्योंकि झाड़ पर कौआ बीट कर सकता है। नदी के किनारे जहां झाडू वगैरह नहीं थे, वह रेत में जाकर बैठ गया। इतना उदास हो गया था, इतना हताश हो गया था, अपने क्रोध से ऐसा जल चुका था— उसने सोचा यह जीवन अकारण है, अकारथ है। और जब संसार माया ही है तो क्या जीना, जीना कहां? तो उसने लकड़ियां इकट्ठी करके चिता बनानी शुरू की, कि चिता बना कर उस पर चढ़ जाऊंगा, खत्म करूं, मामला ही खत्म कर दूं। जैसे ही चिता में आग लगाने को था कि मोहल्ले के लोग, आस—पास के लोग आ गए। उन्होंने कहा महाराज, आप कहीं और यह कृत्य करें तो अच्छा, नहीं तो पुलिस हमें सताएगी। और फिर आप जलेंगे तो बास भी हमें आएगी। और जिंदा आदमी को जलते देखें, हम पर भी पाप पड़ेगा। आप कहीं और जाएं महाराज! अगर कहें तो हम ये लकड़ियां ढोकर आपकी और कहीं पहुंचा दें, जहां आपको जाना हो।
उस आदमी के क्रोध की सीमा न रही। उसने कहा हद हो गई! अरे न जीने देते हो न मरने देते हो! सिर खोल दूंगा एक—एक का!
भागोगे कहां? यहां जीना भी मुश्किल, मरना भी मुश्किल। संसार से भाग नहीं सकते हो। लेकिन संसार माया है, इस धारणा ने लोगों को गलत संन्यास का रूप दे दिया। मैं कहता हूं संसार माया नहीं है, संसार तो परमात्मा का व्यक्त रूप है। यह तो परमात्मा का मंदिर है। यह तो उसका प्रसाद है। ये फूल उसी के सौंदर्य की कथा कहते हैं! ये पक्षी उसी की प्रीति के गीत गाते हैं! ये तारे उसी की आंखों की जगमगाहट हैं! यह सारा अस्तित्व उससे भरपूर है, लबालब है!
लेकिन फिर भी मैं जानता हूं एक चीज माया है— वह है मन। इसलिए मन से छूट जाना संन्यास है। मन से मुक्त हो जाना संन्यास है। इसके लिए कहीं पहाड़ों में, आश्रमों में, गुफाओं में जाने की कोई जरूरत नहीं है। दुकान पर, बाजार में, घर में— जहां हो वहीं मन से छूटा जा सकता है।
मन से छूटने की सीधी सी विधि है अतीत में मन को न जाने दो। जब भी जाए, वापस लौटा लाओ कि भैया, वापस। अतीत में नहीं जाते। जो गया गया। जो हो गया हो गया, अब पीछे नहीं लौटते। जब भविष्य में जाने लगे तो कहना, भइया उधर नहीं। अभी आया नहीं, जाकर क्या करोगे? यहीं, अभी और यहीं रहो, यह क्षण तुम्हारा सर्वस्व हो। बस, सब माया मिट गई, सब मोह मिट गया। मन मिटा तो सब जंजाल मिटा।
और जैसे ही मन मिटता है, अंधकार चला जाता है, रोशनी हो जाती है। क्योंकि अतीत और भविष्य दोनों ही अभाव हैं, उनका अस्तित्व नहीं है। वे अंधकार जैसे हैं, जैसे अंधकार का कोई अस्तित्व नहीं है। वर्तमान ज्यातिर्मय है!
जिन ऋषियों ने कहा है हे प्रभु! हमें तमस से ज्योति की ओर ले चलो—तमसो मा ज्योतिर्गमय— वे यही कह रहे हैं। वे उस अंधेरे की बात नहीं कर रहे हैं जो रात अमावस को घेर लेता है। वे उस अंधेरे की बात कर रहे हैं जो तुम्हारे अतीत और भविष्य में डोलने के कारण तुम्हारे भीतर घिरा है। और वे किस ज्योतिर्मय लोक की बात कर रहे हैं? वर्तमान में ठहर जाओ, ध्यान में रुक जाओ, समाधि का दीया जल जाए— अभी रोशनी हो जाए। और तुम्हारे भीतर रोशनी हो, तब तुम जो देखोगे वही सत्य है।
रात के दो बजे मुल्ला नसरुद्दीन घर वापस लौट रहा था। उसने देखा कि एक मोटा—तगड़ा आदमी सड़क के किनारे एक पेडू के नीचे खड़ा किसी स्त्री को प्रेम कर रहा है। यद्यपि अंधेरा बहुत था, फिर भी नसरुद्दीन की तेज निगाहों को यह समझने में देर न लगी कि वह इनसान कोई और नहीं, उसी का मित्र मटकानाथ ब्रह्मचारी है।
मुल्ला थोड़ी देर तक तो छिपा—छिपा यह रासलीला देखता रहा। जब उसे पक्का भरोसा हो गया कि यह मटकानाथ ही है, तो उसने जोर से आवाज लगाई, क्यों रे पाखंडी! खुलेआम सड़क पर रास रचा रहा है। ठहर बेटा, पूरे गांव में खबर कर दूंगा कल सुबह।
ऐसा सुनते ही मटकानाथ ब्रह्मचारी अपनी दुम दबा कर पास की गली में अदृश्य हो गया। अब वहां सिर्फ वह स्त्री बची और नसरुद्दीन। जो होना था सो हुआ। मुल्ला ने देखा कि स्त्री अत्यंत सुंदर और मोहक है। वैसे तो अंधेरा था, मगर फिर भी नसरुद्दीन ठहरा सौंदर्य का पारखी! दूर से ही पहचान गया। पास गया तो स्त्री के कपड़ों में लगे इत्र की सुगंध से मदहोश हो गया। स्त्री भी राजी हो गई। मुल्ला ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया। ऐसी अदभुत, कामोत्तेजक और मनमोहक स्त्री मुल्ला ने कभी देखना तो दूर, सोची भी न थी। उसे लगा कि जरूर मटकानाथ की साधना को भ्रष्ट करने के लिए स्वर्ग से इंद्र ने किसी अप्सरा को भेजा है।
जब प्रेम—क्रीड़ा करते—करते करीब पंद्रह मिनट बीत गए तब एक दुष्ट पुलिस का सिपाही न जाने कहां से कबाब में हड्डी बन कर आ टपका। उसने जोर से आवाज लगाई, कौन है? इतनी रात को यहां क्या हो रहा है? मुल्ला ने डरते—डरते कहा अरे हवलदार जी, मुझे नहीं पहचानते! मैं हूं मुल्ला नसरुद्दीन, यहीं पास के ही मकान में रहता हूं।
अरे, आप हैं भाईजान! पुलिसमैन ने टार्च की रोशनी में उसे पहचानते हुए कहा, मगर इतनी रात को आप यहां क्या कर रहे हैं?
कुछ न पूछो दोस्त, जरा रोमांस का दिल हो आया तो अपनी बीवी को प्यार कर रहा हूं।
अरे माफ करना भाईजान, मुझे क्या पता कि आप अपनी बीवी को प्यार कर रहे हैं! क्षमा करना मुल्ला।
क्षमा मांगने की कोई बात नहीं भाई— नसरुद्दीन बोला— जब तक तुमने टार्च की रोशनी नहीं डाली थी तब तक तो मुझे ही कहां पता था कि मैं अपनी ही बीवी से प्यार कर रहा हूं।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki, Spiritual & Cosmic Healing, (Treatment & Training Center)
C53,  Sector 15 Vasundra, Avash Vikash Markit, Near Pani Ki Tanki,  Ghaziabad

Mob-: 9958502499 

No comments:

Post a Comment