दूध एक कामोत्तेजक आहार
सभी जीव दूध पीते है अपनी माँ का, लेकिन मनुष्य; दूसरों की माताओं का भी दूध पीता है!वह भी मनुष्य की माताओं का ही नहीं! जानवरों की माताओं का भी!
दूध असल में अत्यधिक कामोत्तेजक आहार है, और मनुष्य को छोड़कर पृथ्वी पर कोई जीव इतना कामवासना से भरा हुआ नहीं है, और उसका एक कारण दूध है! क्योंकि कोई पशु बचपन से कुछ समय के बाद दूध नहीं पीता, सिर्फ आदमी को छोड़ कर! पशु को जरूरत भी नहीं है, शरीर का काम पूरा हो जाता है। फिर दूध की आवश्यकता नही! बच्चा एक उम्र तक दूध पिये, ये नैसर्गिक है। इसके बाद दूध समाप्त हो जाना चाहिए। सच तो यह है, जब तक माँ के स्तन से बच्चे को दूध मिल सके, बस तब तक ठीक है, उसके बाद दूध की आवश्यकता नैसर्गिक नहीं है। बच्चे का शरीर बन गया! निर्माण हो गया, तब तक दूध की जरूरत थी, हड्डी बननी थी, खून बनना था, मांस बनाने के लिए, स्ट्रक्चर पूरा हो गया, ढांचा तैयार हो गया। अब सामान्य भोजन काफी है। अब भी अगर दूध दिया जाता है! तो यह सारा दूध कामवासना का निर्माण करता है, अतिरिक्त है! इसलिए वात्सायन ने काम-सूत्र में कहा है कि 'हर संभोग के बाद पत्नी को चाहिए कि वो अपने पति को दूध पिलाये' ठीक ही कहा है! दूध जिस बड़ी मात्रा में वीर्य बनाता है, और कोई चीज नहीं बनाती। क्योंकि दूध जिस बड़ी मात्रा में खून बनाता है और कोई चीज नहीं बनाती! खून बनता है, फिर खून से वीर्य बनता है। तो दूध से निर्मित जो भी है, वह कामोतेजक है।
इसलिए महावीर ने कहा है! दूध उपयोगी नहीं है, खतरनाक है, कम से कम ब्रह्मचर्य के साधक के लिए तो निश्चित ही खतरनाक है। ठीक से देखे तो; वात्सायन और महावीर की बात में कोई विरोध नहीं है। भोग के साधक के लिए दूध सहयोगी है, तो योग के साधक के लिए अवरोध है। फिर वह तो पशुओं का दूध है! निश्चित ही पशुओं के लिए है, उनके शरीर के लिए है, उनकी वीर्य ऊर्जा के लिए जितना शक्तिशाली दूध चाहिए! उतना पशु मादाएं पैदा करती है। जब एक गाए दूध पैदा करती है, तो वह आदमी के बच्चे के लिए पैदा नहीं करती! वह एक सांड के लिए पैदा करती है! और जब आदमी का बच्चा पिये उस दूध को; और उसके भीतर सांड जैसी कामवासना पैदा हो जाए! तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। वह आदमी का आहार था ही नहीं! वह तो सांड का आहार था! पर पी रहा है आदमी! और आज नहीं तो कल हमें समझना ही पड़ेगा कि अगर आदमी में बहुत सी पशु प्रवृतियां है! तो कहीं उनका कारण पशुओं का दूध तो नहीं है? अगर उसकी पशु प्रवृतियों को बहुत बल मिलता है! तो उसका कारण कही पशुओं का आहार तो नहीं है।
दूध मांसाहार का हिस्सा है! दूध मांसाहारी है, क्योंकि दूध माँ के खून और मांस से निर्मित होता है। 'दूध शुद्धतम मांसाहार है' लेकिन बडे मजे की बात है कि कुछ कामी धूर्त लोगो ने दूध को हमारे लिए पवित्रतम घोषित कर रखा है! पूर्ण शाकाहार! कामवासना और धूर्तता की पराकाष्ठा; और मुर्खो ने उन्हें महान बना रखा है। एक उम्र तक तो दूध? फिर उसके बाद दूध, मलाई, मक्खन और घी? यही सब तो और उपद्रव है, दूध से निकले हुए उपद्रव; मतलब दूध को हम और भी कठिन करते चले जाते है, जब मलाई बना लेते है, फिर मक्खन बना लेते है, फिर घी बना लेते है! घी तो शुद्धतम कामवासना हो जाती है! और यह सब अप्राकृतिक है, और इनको मनुष्य लिए चला जाता है! तो निश्चित ही, उसका आहार फिर उसके आचरण को प्रभावित करेगा!
महावीर कहते है, 'सम्यक आहार' शाकाहारी, बहुत पौष्टिक नहीं केवल उतना जितना शरीर को चलाता है। ये सम्यक रूप से सहयोगी है उस साधक के लिए, जो अपनी तरफ आना शुरू हुआ है। शक्ति की जरूरत होती है, दूसरे की तरफ जाने के लिए! शांति की जरूरत है, स्वयं की तरफ आने के लिए। अब्रह्मचारी, कामुक शक्ति के उपाय खोजेगा कि कैसे शक्ति बढ़ जाये। और ब्रह्मचारी का साधक; कैसे शक्ति शांति बन जाए, इसकी चेष्टा करता रहेगा। जब शक्ति शांति बनती है तो भीतर की ओर बहती है। जिससे जीवन में प्रेम और करूणा भरती है। और जब वही शांति स्वयं मे आन्तरिक शक्ति बन जाती है, तो जीव परमात्मा को उपलब्ध हो जाता है !!
~ओशो~
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer
Anand Ji)
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