Monday, 19 February 2018

समाधि : अहं शून्‍यता, समय-शून्‍यता के अनुभव

संभोग से समाधि की और—13

समाधि : अहं शून्‍यता, समय-शून्‍यता के अनुभव-4

     मेरे प्रिया आत्‍मन,
एक छोटा सा गांव था, उस गांव के स्‍कूल में शिक्षक राम की कथा पढ़ाता था। करीब-करीब सारे बच्‍चे सोये हुए थे।
      राम की कथा सुनते-सुनते बच्‍चे सो जाये, ये आश्चर्य नहीं। क्‍योंकि राम की कथा सुनते समय बूढे भी सोते है। इतनी बार सुनी जा चुकी है जो बात उसे जाग कर सुनने का कोई अर्थ भी नहीं रह जाता।
      बच्‍चे सोये थे और शिक्षक भी पढ़ा रहा था। लेकिन कोई भी उसे देखता तो कह सकता था कि वह भी सोया हुआ पढ़ाता है। उसे राम की कथा कंठस्‍थ थी। किताब सामने खुली थी। लेकिन किताब पढ़ने की उसे जरूरत न थी। उसे सब याद था। यह यंत्र की भांति कहे जाता था। शायद ही उसे पता हो कि वह क्‍या कह रहा है।
      तोतों को पता नहीं होता है कि वे क्‍या कह रहे है। जिन्‍होंने शब्‍दों को कंठस्‍थ कि लिया है, उन्‍हें भी पता नहीं होता की वे क्‍या कह रहे है।
      और तभी अचानक एक सनसनी दौड़ गयी कक्षा में। अचानक ही स्‍कूल का निरीक्षक आ गया था। वह कमरे के भीतर गया। बच्‍चे सजग होकर बैठ गये। शिक्षक भी सजग होकर पढ़ाने लगा। उसे निरीक्षक ने कहां कि मैं कुछ पूछना चाहूंगा। और चूंकि राम की कथा पढ़ाई जाती है। इसलिए राम से संबंधित ही कोई प्रश्‍न पूछा। उसने बच्‍चों से एक सीधी सी बात पूछी। उसने पूछा कि शिव का धनुष किसने तोड़ा था?’ उसने सोचा कि बच्‍चों को तोड़-फोड़ की बात बहुत याद रह जाती है। उन्‍हें जरूर याद होगा कि किसने शिव का धनुष तोड़ा।
      लेकिन इसके पहले कि कोई बोले, एक बच्‍चे ने हाथ हिलाया और खड़े होकर कहा, क्षमा करिये। मुझे पता नहीं कि किसने तोड़ा था। एक बात निश्‍चित है कि मैं 15 दिन से छुट्टी पर था। मैंने नहीं तोड़ा है। और इसके पहले कि मेरे पर इलजाम लग जाये, में पहले ही साफ कर देना चाहता हूं। कि धनुष का मुझे कुछ पता नहीं है। क्‍योंकि जब भी स्‍कूल की कोई भी चीज टूटती है तो सबसे पहले मेरे उपर दोषारोपण आता है। इसलिए मैं निवेदन किये देता हूं।
      निरीक्षक तो हैरान रह गया। उसने सोचा भी नहीं था कि कोई यह उत्‍तर देगा।
      उसने शिक्षक की तरफ देखा। शिक्षक अपना बेंत निकाल रहा था और उसने कहा, जरूर इसी बदमाश ने तोड़ा होगा। इसकी हमेशा की आदत है। और अगर तूने नहीं तोड़ा था तो तूने खड़े होकर क्‍यों कहा कि मैंने नहीं तोड़ा है?
      और उसने इंस्‍पेक्‍टर से कहा कि इसकी बातों में मत आयें, यह लड़का शरारती है। और स्‍कूल में सौ चीजें टूटे तो 99 यहीं तोड़ता है।
      तब तो वह निरीक्षक और भी हैरान हो गया। फिर उसने कुछ भी वहां कहना उचित नहीं समझा। वह सीधा प्रधान अध्‍यापक के पास गया। जाकर उसने कहां कि ये-ये घटना घटी है। राम की कथा पढ़ाई जाती थी जिस कक्षा में, उसमें मैंने पूछा कि शिव का धनुष किसने तोड़ा है। तो एक बच्‍चे ने कहां कि मैंने नहीं तोड़ा है। मैं 15 दिन से छुट्टी पर था। यहां तक भी गनीमत थी। लेकिन शिक्षक ने यह कहा कि जरूर इसी ने तोड़ा होगा। जब भी कोई चीज टूटती है तो यह जिम्‍मेदार होता है। इसके संबंध में क्‍या किया जाये?
      उस प्रधान अध्‍यापक ने कहा कि इस संबंध में एक ही बात की जा सकती है कि अब बात को आगे न बढ़ाया जाये,क्‍योंकि लड़कों से कुछ भी कहना खतरा मोल लेना है। किसी क्षण भी हड़ताल हो सकती है। अनशन हो सकता है। अब जिसने भी तोड़ा होगा। आप कृपा करें और बात बंद करें। कोई दो महीने से शांति चल रही है स्‍कूल में, उसको भंग करने की कोशिश मत करें। न मालूम कितना फर्नीचर तोड़ डाला है लड़कों ने। हम चुपचाप देखते रहते है। स्‍कूल की दीवालें टूट रही है, हम चुपचाप देखते रहते है। क्‍योंकि कुछ भी बोलना खतरनाक है। हड़ताल हो सकती है। अनशन हो सकता है। इसलिए चुपचाप देखने के सिवाय कोई मार्ग नहीं है।
      वह इंस्‍पेक्‍टर तो अवाक। वह तो आंखे फाड़े रह गया। अब कुछ कहने का उपाय न था वह वहां से सीधा स्‍कूल की जो शिक्षा समिति थी उसके अध्‍यक्ष के पास गया। और उसने जाकर कहा कि यह हालत है स्‍कूल की। राम की कथा पढ़ाई जाती है। वहां बच्‍चा कहता है कि मैंने शिव का धनुष नहीं तोड़ा, शिक्षक कहता है कि इसी ने तोड़ा होगा, प्रधान अध्‍यापक कहता है कि जिसने भी तोड़ा हो बात को रफा-दफा कर दें। शांत कर दें। इसे आगे बढ़ाना ठीक नहीं, हड़ताल हो सकती है। आप क्‍या कहते है?
      उस अध्‍यक्ष ने कहा, ठीक ही कहता है प्रधान अध्‍यापक। किसी ने भी तोड़ा हो हम ठीक करवा देंगे समिति की तरफ से। आप फर्नीचर वाले के यहां भिजवा दें और ठीक करवा लें। इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं कि किसने तोड़ा। सुधरवाने का उपाय होगा। आपको सुधरवाने की जरूरत है और क्‍या करना है?
      वह स्‍कूल का इंस्‍पेक्‍टर मुझसे ये सारी बातें कहता था। वह मुझसे पूछने लगा कि क्‍या स्‍थिति है यह? मैंने उससे कहा कि इसमे कुछ बड़ी स्‍थिति नहीं है। मनुष्‍य की एक सामान्‍य कमजोरी है, वही इस कहानी में प्रकट होती है। और वह कमजोरी क्‍या है?
      वह कमजोरी यह है कि जिस संबंध में हम कुछ भी नहीं जानते है, उस संबंध में भी हम ऐसी घोषणा करना चाहते है कि हम जानते है। वह कोई भी कुछ नहीं जानते थे कि शिव का धनुष क्‍या है? क्‍या उचित न होता कि वह कह देते कि हमें पता नहीं है कि शिव का धनुष क्‍या है। लेकिन अपना अज्ञान कोई भी स्‍वीकार नहीं करना चाहता है।
      मनुष्‍य जाति के इतिहास में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं घटी है कि हम अपना अज्ञान स्‍वीकार करने को राज़ी  नहीं होते। जीवन के किसी भी प्रश्न के संबंध में कोई भी आदमी इतनी हिम्‍मत और साहस नहीं दिख पाता है। कि मुझे नहीं पता है। यह कमजोरी बहुत घातक सिद्ध होती है। सारा जीवन व्‍यर्थ हो जाता है।
      और चूंकि हम यह मानकर बैठ जाते है कि हम जानते है, इसलिए जो उत्‍तर हम देते है वह इतने ही मूर्खतापूर्ण होते है,जितने उस स्‍कूल में दिये गये थे—बच्‍चों से लेकिर अध्यक्ष तक। जिसका हमें पता नहीं हे उसका उत्‍तर देने की कोशिश सिवाय मूढ़ता के और कहीं भी नहीं ले जायेगी। फिर यह तो हो भी सकता है शिव का धनुष किसने तोड़ा या न तोड़ा1 इससे जीवन को कोई गहरा संबंध नहीं है लेकिन जिन प्रश्‍नों के जीवन से बहुत गहरे संबंध है जिनके आधार पर सारा जीवन सुन्‍दर बनेगा या कुरूप हो जायेगा। स्‍वस्‍थ बनेगा या विक्षिप्‍त हो जायेगा; जिनके आधार पर जीवन की सारी गति और दिशा निर्भर है, उन प्रश्‍नों के संबंध में भी हम यह भाव दिखलाने  की कोशिश करते है कि हम जानते है। और फिर जो हम जीवन में उत्‍तर देते है वह बता देते है कि हम कितना जानते है।
      एक-एक आदमी की जिन्‍दगी बता रही है कि हम जिंदगी के संबंध में कुछ भी नहीं जानते है—अन्‍यथा इतनी असफलता,इतनी निराश, इतनी दुख,इतनी चिन्‍ता।
      यही बात मैं सेक्‍स के संबंध में आपसे कहना चाहता हूं कि हम कुछ भी नहीं जानते है।
      आप बहुत हैरान होंगे। आप कहेंगे कि हम यह मान सकते है कि ईश्‍वर के संबंध में कुछ नहीं जानते,आत्‍मा के संबंध में कुछ नहीं जानते; लेकिन हम यह कैसे मान सकते है कि हम काम के यौन के और सैक्‍स के संबंध में कुछ नहीं जानते? सबूत है—हमारे बच्‍चे पैदा हुए है, पत्‍नी है। हम सेक्‍स के संबंध मे नहीं जानते है?
      लेकिन मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि यह बहुत कठिन पड़ेगा, लेकिन इसे समझ लेना जरूरी है। आप सेक्‍स के अनुभव से गूजरें होंगे। लेकिन सेक्‍स के संबंध में आप इतना ही जानते है कि जितना छोटा सा बच्‍चा जानता है। उससे ज्‍यादा कुछ भी नहीं जानते है। अनुभव से गुजर जाना जान लेने के लिए पर्याप्‍त नहीं है।
      एक आदमी कार चलाता है वह कार चलाना जानता है और हो सकता है हजारों मील कार चलाकर वह आ गया हो;लेकिन उससे यह कोई मतलब नहीं होता है कि वह कार के भीतर के यंत्र और मशीन और उसकी व्‍यवस्‍था, उसके काम करने के ढंग के संबंध में कुछ भी जानता हो। वह कहा सकता है कि मैं हजार मील चल कर आया हूं कार से। मैं नहीं जानता हूं कार के संबंध में? लेकिन कार चलाना एक ऊपरी बात है और कार की पूरी आंतरिक व्‍यवस्‍था को जानना बिलकुल दूसरी बात है।
      एक आदमी बटन दबाता है और बिजली चल जाती है। वह आदमी यह कह सकता है कि मैं बिजली के संबंध में सब जानता हूं। क्‍योंकि में बटन दबाता हूं और बिजली जल जाती है। बटन दबाता हूं बिजली बुझ जाती है। मैंने हजार दफा बिजली जलायी इसलिए मैं बिजली के सबंध में सब जानता हूं हम कहेंगे कि वह पागल है बटन दबाना और बिजली जला लेना और बुझा लेना बच्‍चें भी कर सकते है। इसके लिए बिजली के ज्ञान की कोई जरूरत नहीं है।
      बच्‍चे कोई भी पैदा सकता है। सेक्‍स को जानने से इसका कोई संबंध नहीं है। शादी कोई भी कर सकता है। पशु भी बच्‍चे पैदा कर रहे है, लेकिन वे सेक्‍स संबंध कुछ जानते है। इस भ्रम में पड़ने का कोई कारण नहीं। सच तो यह है कि सेक्‍स को कोई विज्ञान ही विकसित नहीं हो सका। सेक्‍स का कोई शास्‍त्र ठीक से विकसित नहीं हो सका। क्‍योंकि हर आदमी यह मानता है कि हम जानते है। शास्‍त्र की जरूरत क्‍या है। विज्ञान की जरूरत क्‍या है।
      और मैं आपसे कहता हूं कि इससे बड़े दुर्भाग्‍य की और कोई बात नहीं है क्‍योंकि जिस दिन सेक्‍स का पूरा शास्‍त्र और पूरा विचार और पूरा विज्ञान विकसित होगा उस दिन हम बिलकुल नये तरह के आदमी को पैदा करने में समर्थ हो सकते है। फिर यह कुरूप और अपंग मनुष्‍य पैदा करने की जरूरत नहीं है। यह रूग्‍ण और रोते हुए और उदास आदमी पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। यह पाप और अपराध से भरी हुई संतति को जन्‍म देने की जरूरत नहीं है।
      लेकिन हमें कुछ भी पता नहीं है। हम सिर्फ बटन दबाना और बुझाना जानते है और उसी से हमने समझ लिया है कह हम बिजली के जानकार हो गये है। सेक्‍स के संबंध में पूरी जिंदगी बीत जाने के बाद भी आदमी इतना ही जानता है के बटन दबाना और बुझाना इससे ज्‍यादा कुछ भी नहीं। लेकिन चूंकि यह भ्रम है कि हम सब जानते है; इसलिए इस संबंध में कोई शोध कोई खोज कोई विचार कोई चिंतन को कोई उपाय नहीं है। और इसी भ्रम के कारण कि हम सब जानते है। हम किसी से न कोई बात करते है न विचार करते है, न सोचते है। क्‍योंकि जब सभी को सब पता है तो जरूरत क्‍या है?
      और मैं आप से कहना चाहता हूं कि जीवन में और जगत में सेक्‍स के अणु को भी पूरी तरह जान सकेंगे, उस दिन मनुष्‍य जाति ज्ञान के एक बिलकुल नये जगत में प्रविष्टि हो जायेगी। अभी हमने पदार्थ की थोड़ी बहुत खोजबीन की है और दुनिया कहां से कहां पहुंच गई। जिस दिन हम चेतना के जन्‍म की प्रक्रिया और कीमिया को समझ लेंगे, उस दिन हम मनुष्‍य को कहां से कहां पहुंचा देंगे। इसको आज कहना कठिन है। लेकिन एक बात निश्‍चित कहीं जा सकती है कि काम की शक्‍ति और काम की प्रक्रिया जीवन और जगत में सर्वाधिक रहस्‍यपूर्ण सर्वाधिक गहरी सबसे मूल्‍यवान बात है। और उसके संबंध में हम बिलकुल चुप है। जो सर्वाधिक मूल्‍यवान है, उसके संबंध में कोई बात भी नहीं की जाती। आदमी जीवन भी संभोग से गुजरता है और अंत तक भी नहीं जान पाता है कि क्‍या था संभोग।
      और जब मैंने पहले दिन आपसे कहा कि शून्‍य का—अहंकार शून्‍यता का, विचारशून्‍यता का अनुभव होगा। तो अनेक मित्रों को यह बात अनहोनी,आश्‍चर्यजनक लगी है। एक मित्र ने लौटते ही मुझे कहा यह तो मेरे ख्‍याल में भी न था। लेकिन ऐसा हुआ है। एक बहन ने आज मुझे आकर कहा, लेकिन मुझे तो इसका कोई अनुभव नहीं है आप कहते है कि इतनी मुझे ख्‍याल आता है कि मन थोड़ा शांत और मौन होता है। लेकिन मुझे अहंकार शून्‍यता का यह किसी और गहरे अनुभव का कोई भी पता नहीं।
      हो सकता है अनेकों को इस संबंध में विचार मन में उठा हो। उस संबंध में थोड़ी सी बातें ओर गहराई से स्‍पष्‍ट कर लेना जरूरी है।
      पहली बात मनुष्‍य जन्‍म के साथ ही संभाग के पूरे विज्ञान को जानता हुआ पैदा नहीं होता है। शायद पृथ्‍वी पर बहुत थोड़े से लोग अनेक जीवन के अनुभव के बाद संभोग की पूरी की पूरी कला और पूरी की पूरी विधि और पूरा शास्त्र जानने में समर्थ हो पाते है। और ये ही वे लोग है। जो ब्रह्मचर्य को उपलब्‍ध हो जाते है। क्‍योंकि जो व्‍यक्‍ति संभोग को पूरी तरह से जानने में समर्थ हो जाता है, उस के लिए संभोग व्‍यर्थ हो जाता है। वह उस के पास निकल जाता है। वह उस का अतिक्रमण कर जाता है। लेकिन इस संबंध में कुछ बहुत स्पष्ट बातें नहीं कही गई है।


एक बात, पहली बात स्‍पष्‍ट कर लेनी जरूरी है वह हय कि यह भ्रम छोड़ देना चाहिए कि हम पैदा हो गये है, इसलिए हमें पता है—क्‍या है काम, क्‍या है संभोग। नहीं पता नहीं है। और नहीं पता होने के कारण जीवन पूरे समय काम और सेक्‍स में उलझा रहता है और व्‍यतीत होता है।
      मैंने आपसे कहा, पशुओं का बंधा हुआ समय है। उनकी ऋतु है। उनके मौसम है। आदमी का कोई बंधा हुआ समय नहीं है। क्‍योंपशु शायद मनुष्‍य से ज्‍यादा संभोग की गहराई में उतरने में समर्थ है और मनुष्‍य उतना भी समर्थ नहीं रह गया है।
      जिन लोगों ने जीवन के इन तलों पर बहुत खोज की है और गहराइयों में गये है और  जिन लोगों ने जीवन के बहुत से अनुभव संग्रहीत किये है। उनको यह जानना, यह सुत्र उपलब्‍ध हुआ है कि अगर संभोग एक मिनट तक रुकेगा तो आदमी दूसरे दिन फिर संभोग के लिए लालायित हो जायेगा। अगर तीन मिनट तक रूक सके तो यह सप्‍ताह तक उसे सेक्‍स की वह याद भी नहीं आयेगी। और अगर साम मिनट तक रूक सके तो तीन महीने के लिए सेक्‍स से इस तरह मुक्‍त हो जायेगा कि उसकी कल्‍पना में भी विचार प्रविष्‍ट नहीं होगा। और अगर तीन घंटे तक रूक सके तो जीवन भर के लिए मुक्‍त हो जायेगा। जीवन में उसको कल्‍पना भी नहीं उठेगी।
      लेकिन सामान्‍यत: क्षण भर का अनुभव है मनुष्‍य का। तीन घंटे की कल्‍पना करनी भी मुश्‍किल है। लेकिन मैं आपसे कहता हूं के तीन घंटे अगर संभोग की स्‍थिति में, उस समाधि की दशा में व्‍यक्‍ति रूक जाये तो एक संभोग पूरे जीवन के लिए सेक्‍स से मुक्‍त करने के लिए पर्याप्‍त है। इतनी तृप्‍ति पीछे छोड़ जाता है—इतनी अनुभव,इतनी बोध छोड़ जाता है कि जीवन भर के लिए पर्याप्‍त हो जाता है। एक संभोग के बाद व्‍यक्‍ति ब्रह्मचर्य को अपलब्‍ध हो सकता है।
      लेकिन हम तो जीवन भी संभोग के बाद भी उपलब्‍ध नहीं होते। क्‍या है? बूढ़ा हो जाता है आदमी मरने के करीब पहुंच जाता है और संभोग की कामना से मुक्‍त नहीं होता। संभोग की कला और संभोग के शास्‍त्र को उसने समझा नहीं है। और न कभी किसी ने समझाया है, न विचार किया है। न सोचा है, न बात की है। कोई संवाद भी नहीं हुआ जीवन में—कि अनुभवी लोग उस पर संवाद करते और विचार करते हम बिलकुल पशुओं से भी बदतर हालत पर है। उस स्‍थिति में है। आप कहेंगे कि एक क्षण से तीन घंटे तक संभोग की दशा ठहर सकती है, लेकिन कैसे?
      कुछ थोड़े से सूत्र आपको कहता हूं। उन्‍हें थोड़ा ख्‍याल में रखेंगे तो ब्रह्मचर्य की तरफ जाने में बड़ी यात्रा सरल हो जायेगी। संभोग करते क्षणों में क्षणों श्वास जितनी तेज होगी। संभोग का काल उतना ही छोटा होगा। श्वास जितनी शांत और शिथिल होगी। संभोग का काल उतना ही लंबा हो जायेगा। अगर श्वास को बिलकुल शिथिल करने का थोड़ा अभ्‍यास किया जाये, तो संभोग के क्षणों को कितना ही लंबा किया जा सकता है। और संभोग के क्षण जितने लंबे होंगे, उतने ही संभोग के भीतर से समाधि का जो सूत्र मैंने आपसे कहा है—निरहंकार भाव, इगोलेसनेस और टाइमलेसनेस का अनुभव शुरू हो जायेगा। श्वास अत्‍यंत शिथिल होनी चाहिए। श्वास के शिथिल होते ही संभोग की गहराई अर्थ और उदघाटन शुरू हो जायेंगे।
      और दुसरी बात, संभोग के क्षण में ध्‍यान दोनों आंखों के बीच, जहां योग आज्ञा चक्र को बताता है। वहां अगर ध्‍यान हो तो संभोग की सीमा और समय तीन घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। और एक संभोग व्‍यक्‍ति को सदा के लिए ब्रह्मचर्य में प्रतिष्‍ठित कर देगा—न केवल एक जन्‍म के लिए, बल्‍कि अगले जन्‍म के लिए भी।
      किन्‍हीं एक बहन ने पत्र लिखा है और मुझे पूछा है कि विनोबा तो बाल ब्रह्मचारी है, क्‍या उन्‍हें समाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा। मेरे बाबत पूछा है कि मैंने तो विवाह नहीं किया, मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूं मुझे समाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा।
      उस बहन को अगर वह यहां मौजूद हों तो मैं कहना चाहता हूं। विनोबा को या मुझे या किसी को भी बिना अनुभव के ब्रह्मचर्य उपलब्‍ध नहीं होता। वह अनुभव चाहे इस जन्‍म का हो, चाहे पिछले जन्‍म का हो—जो इस जन्‍म में ब्रह्मचर्य को उपलब्‍ध होता है, वह पिछले जन्‍मों के गहरे संभोग के अनुभव के आधार पर और किसी आधार पर नहीं। कोई और रास्‍ता नहीं है।
      लेकिन अगर पिछले जन्‍म में किसी को गहरे संभोग की अनुभूति हुई हो ता इस जन्‍म के साथ ही वह सेक्‍स से मुक्‍त पैदा होगा। उसकी कल्‍पना के मार्ग पर सेक्‍स कभी भी खड़ा नहीं होगा और उसे हैरानी दूसरे लोगों को देखकर कि यह क्‍या बात है। लोग क्‍यों पागल हैं, क्‍यों दीवाने है?  उसे कठिनाई होगी यह जांच करने में कि कौन स्‍त्री है, कौन पुरूष है? इसका भी हिसाब रखने में और फासला रखने में कठिनाई होगी।
      लेकिन कोई अगर सोचता हो कि बिना गहरे अनुभव के कोई बाल ब्रह्मचारी हो सकता है। तो बाल ब्रह्मचारी नहीं होगा,सिर्फ पागल हो जायेगा। जो लोग जबरदस्‍ती ब्रह्मचर्य थोपने की कोशिश करते है, वह विक्षिप्‍त होते है और कहीं भी नहीं पहुंचते।
      ब्रह्मचर्य थोपा नहीं जाता। वह अनुभव की निष्‍पति है। वह किसी गहरे अनुभव का फल है। और वह अनुभव संभोग का ही अनुभव है। अगर वह अनुभव एक बार भी हो जाए तो अनंत जीवन की यात्रा के लिए सेक्‍स से मुक्‍ति हो जाती है।
      तो दो बातें मैंने कहीं, उस गहराई के लिएश्वास शिथिल हो इतनी शिथिल हो कि जैसे चलती ही नहीं और ध्‍यान, सारी अटैंशन आज्ञा चक्र के पास हो। दोनों आंखों के बीच के बिन्‍दु पर हो। जितना ध्‍यान मस्‍तिष्‍क के पास होगा, उतनी ही संभोग की गहराई अपने आप बढ़ जायेगी। और जितनी श्राव शिथिल होगी, उतनी लम्‍बाई बढ़ जायेगी। और आपको पहली दफा अनुभव होगा कि संभोग का आकर्षण नहीं है मनुष्‍य के मन में। मनुष्‍य के मन में समाधि का आकर्षण है। और एक बार उसकी झलक मिल जाए, एक बार बिजली चमक जाये और हमें दिखाई पड़ जाये अंधेरे में कि रास्‍ता क्‍या है फिर हम रास्‍ते पर आगे निकल सकते है।
      एक आदमी एक गंदे घर में बैठा है। दीवालें अंधेरी है ओर धुएँ से पूती हुई है। घर बदबू से भरा हुआ है। लेकिन खिड़की खोल सकता है। उस गंदे घर की खिड़की में खड़े होकर वह देख सकता है दूर आकाश को तारों को सूरज को, उड़ते हुए पक्षियों को। और तब उसे उस घर के बहार निकलने में कठिनाई नहीं रह जायेगी।
      जिस दिन आदमी को संभोग के भीतर समाधि का पहली थोड़ी सह भी अनुभूति होती है उसी दिन सेक्‍स का गंदा मकान सेक्‍स की दीवालें अंधेरे से भरी हुई व्‍यर्थ हो जाती है आदमी बाहर निकल जाता है।
      लेकिन यह जानना जरूरी है कि साधारणतया हम उस मकान के भीतर पैदा होते है। जिसकी दीवालें बंद है। जो अंधेरे से पूती है। जहां बदबू है जहां दुर्गंध है और इस मकान के भीतर ही पहली दफ़ा मकान के बाहर का अनुभव करना जरूरी है, तभी हम बहार जा सकते है। और इस मकान को छोड़ सकते है। जिस आदमी ने खिड़की नहीं खोली उस मकान की और उसी मकान के कोने में आँख बंद करके बैठ गया है कि मैं इस गंदे मकान को नहीं देखूँगा, वह चाहे देखे और चाहे न देखे। वह गंदे मकान के भीतर ही है और भीतर ही रहेगा।
      जिसको हम ब्रह्मचारी कहते है। तथाकथित जबर दस्‍ती थोपे हुए ब्रह्मचारी, वे सेक्‍स के मकान के भीतर उतने ही है जितना की कोई भी साधारण आदमी है। आँख बंद किये बैठे है, आप आँख खोले हुए बैठे है, इतना ही फर्क है। जो आप आँख खोलकर कर रहे है, वह आँख बंद कर के भीतर कर रहे है। जो आप शरीर से कर रहे है। वे मन से कर रहे है। और कोई फर्क नहीं है।
      इसलिए मैं कहता हूं कि संभोग के प्रति दुर्भाव छोड़ दे। समझने की चेष्‍टा,प्रयोग करने की चेष्‍टा करें और संभोग को एक पवित्रता की स्‍थिति दे।
      मैंने दो सूत्र कहे। तीसरी एक भाव दशा चाहिए संभोग के पास जाते समय। वैसा भाव-दशा जैसे कोई मंदिर के पास जा रहा है। क्‍योंकि संभोग के क्षण में हम परमात्‍मा के निकटतम होते है। इसीलिए तो संभोग में परमात्‍मा सृजन का काम करता है। और नये जीवन को जन्‍म देता है। हम क्रिएटर के निकटतम होते है।
      संभोग की अनुभूति में हम सृष्‍टा के निकटतम होते है।
      इसीलिए तो हम मार्ग बन जाते है। और एक नया जीवन हमसे उतरता है। और गतिमान हो जाता है। हम जन्‍मदाता बन जाते है।
      क्‍यों?
      सृष्‍टा के निकटतम है वह स्‍थिति। अगर हम पवित्रता से प्रार्थना से सेक्‍स के पास जायें तो हम परमात्‍मा की झलक को अनुभव कर सकते है। लेकिन हम तो सेक्‍स के पास घृणा एक दुर्भाव एक कंडेमनेशन के साथ जाते है। इसलिए दीवाल खड़ी हो जाती है। और परमात्‍मा का यहां कोई अनुभव नहीं हो पाता है।  
      सेक्‍स के पास ऐसे जाऐं, जैसे की मंदिर के पास जा रहे है। पत्‍नी को ऐसा समझें, जैसे की वह प्रभु है। पति को ऐसा समझें कि जैसे कि वह परमात्‍मा है। और गंदगी में क्रोध में कठोरता में द्वेष में, ईर्ष्‍या में, जलन में चिन्‍ता के क्षणों में कभी भी सेक्‍स के पास न जायें। होता उलटा है। जितना आदमी चिन्‍तित होता है। जितना परेशान होता है। जितना क्रोध से भरा होता है। जितना घबराया होता है, जितना एंग्‍विश में होता है। उतना ही ज्‍यादा वह सेक्‍स के पास जाता है।
      आनंदित आदमी सेक्‍स के पास नहीं जाता। देखी आदमी सेक्‍स की तरफ जाता है। क्‍योंकि दुख को भुलाने के लिए इसको एक मौका दिखाई पड़ता है।
      लेकिन स्मरण रखें कि जब आप दुःख में जायेंगे, चिंता में जायेंगे, उदास हारे हुए जायेगे, क्रोध में लड़े हुए जायेंगे। तब आप कभी भी सेक्‍स की उस गहरी अनुभूति को उपलब्‍ध नहीं कर पायेंगे। जिसका की प्राणों में प्यास  है। वह समाधि की झलक वहां नहीं मिलेगी। लेकिन यहां उलटा होता है।
      मेरी प्रार्थना है जब आनंद में हों, जब प्रेम में हों, जब प्रफुल्‍लित हों और जब प्राण प्रेयर फुल हों। जब ऐसा मालुम पड़े कि आज ह्रदय शांति से और आनंद से कृतज्ञता से भरा हुआ है, तभी क्षण है—तभी क्षण है संभोग के निकट जाने का। और वैसा व्‍यक्‍ति संभोग से समाधि को उपलब्‍ध होता है। और एक बार भी समाधि की एक किरण मिल जाये। तो संभोग से सदा के लिए मुक्‍त हो जाता है। और समाधि में गतिमान हो जाता है।
      स्‍त्री और पुरूष का मिलन एक बहुत गहरा अर्थ रखता है। स्‍त्री और पुरूष के मिलन में पहली बार अहंकार टूटता है और हम किसी से मिलते है।
      मां के पेट से बच्‍चा निकलता है और दिन रात उसके प्राणों में एक ही बात लगी रहती है जैसे की हमने किसी वृक्ष को उखाड़ लिया जमीन से। उस पूरे वृक्ष के प्राण तड़पते है कि जमीन से कैसे जुड़ जाये। क्‍योंकि जमीन से जुड़ा हुआ होकर ही उसे प्राण मिलता था। रस मिलता था जीवन  मिलता था। व्‍हाइटालिटी मिलती थी। जमीन से उखड गया तो उसकी सारी जड़ें चिल्लाये गी कि मुझे जमीन में वापस भेज दो। उसका सारा प्राण चिल्लाये गा कि मुझे जमीन में वापस भेज दो। वह उखड  गया टूट गया। अपरूटेड हो गया।
      आदमी जैसे ही मां के पेट से बाहर निकलता है, अपरूटेड हो जाता है। वह सारे जीवन और जगत से एक अर्थ में टूट गया। अलग हो गया। अब उसकी सारी पुकार और सारे प्राण की आकांशा जगत और जीवन और अस्‍तित्‍व से, एग्ज़िसटैंस से वापस जुड़ जाने की है। उसी पुकार का नाम प्रेम और प्‍यास है।
      प्रेम का और अर्थ क्‍या है? हर आदमी चाह रहा है कि मैं प्रेम पाऊँ और प्रेम करूं। प्रेम का मतलब क्‍या है?
      प्रेम का मतलब है कि मैं टुट गया हूं, आइसोलेट हो गया हूं। अलग हो गया हूं। मैं वापस जुड़ जाऊँ जीवन से। लेकिन इस जुड़ने का गहरे से गहरा अनुभव मनुष्‍य को सेक्‍स के अनुभव में होता है। स्‍त्री और पुरूष को होता है। वह पहला अनुभव है जुड़ जाने का। और जो व्‍यक्‍ति इस जुड़ जाने के अनुभव को—प्रेम की प्‍यास, जुड़ने की आकांशा के अर्थ में समझेगा,वह आदमी एक दूसरे अनुभव को भी शीध्र उपलब्‍ध हो सकता है।
      योगी जुड़ता है, साधु भी जुड़ता है। संत भी जुड़ता है, समाधिस्‍थ व्‍यक्‍ति भी जुड़ता है। संभोगी भी जुड़ता है।
      संभोग करने में दो व्‍यक्‍ति जुड़ते है। एक व्‍यक्‍ति दूसरे से जुड़ता है और एक हो जाता है।
      समाधि में एक व्‍यक्‍ति समष्‍टि से जुड़ता है और एक हो जाता है।
      संभोग दो व्‍यक्‍तियों के बीच मिलन है।
      समाधि एक व्‍यक्‍ति और अनंत के बीच मिलन है।
      स्‍वभावत: दो व्‍यक्‍ति का मिलन क्षण भर को हो सकता है। एक व्‍यक्‍ति और अनंत का मिलन अनंत के लिए हो सकता है। दोनों व्‍यक्‍ति सीमित है। उनका मिलन असीम नहीं हो सकता। यही पीड़ा है, यहीं कष्‍ट है, सारे दांपत्‍य का, सारे प्रेम का कि जिससे हम जुड़ना चाहते है। उससे भी सदा के लिए नहीं जुड़ पाते। क्षण भर को जुड़ते है और फिर फासले हो जात है। फासले पीड़ा देते है। फासले कष्ट देते है। और निरंतर दो प्रेमी इसी पीड़ा में परेशान रहते है। कि फासला क्‍यों है। और हर चीज फिर धीरे-धीरे ऐसी मालूम पड़ने लगती है कि दूसरा फासला बना रहा है। इसीलिए दूसरे पर क्रोध पैदा होना शुरू हो जाता है।

लेकिन जो जानते है, वे यह कहेंगे,दो व्‍यक्‍ति अनिवार्यता: दो अलग-अलग व्‍यक्‍ति है। वे जबरदस्‍ती क्षण भी को मिल सकते है। लेकिन सदा के लिए नहीं मिल सकते। यही प्रेमियों की पीड़ा और कष्‍ट है कि निरंतर एक संघर्ष खड़ा हो जाता है। जिसे प्रेम करते है, उसी से संघर्ष करते है, उसी से तनाव, अशांति और द्वेष खड़ा हो जाता है। क्‍योंकि ऐसा प्रतीत होने लगता है। जिससे मैं मिलना चाहता हूं, शायद वह मिलने को तैयार नहीं। इसलिए मिलना पूरा नहीं हो पाता।
      लेकिन इसमें व्‍यक्‍तियों का कसूर नहीं है। दो व्‍यक्‍ति अनंत कालीन तल पर नहीं मिल सकते। हम क्षण के लिए मिल सकते है। क्‍योंकि सीमित है। उनके मिलने का क्षण भी सीमित होगा। अगर अनंत मिलन चाहिए तो वह परमात्‍मा से हो सकता है। वह समस्‍त अस्‍तित्‍व से हो सकता है।
      जो लोग संभोग की गहराई में उतरते हैं, उन्‍हें पता चलता है, एक क्षण मिलन का इतना आनंद है, तो अनंत काल के लिए मिल जाने का कितना आनंद होगा। उसका तो हिसाब लगाना मुश्किल होगा। एक क्षण मिलन की इतनी अद्भुत प्रतीति है तो अनंत से मिल जाने की कितनी प्रतीति होगी,कैसी प्रतीति होगी।
      जैसे एक घर में दीया जल रहा हो और उस दीये से हम हिसाब लगाना चाहें कि सूरज की रोशनी में कितने दीये जल रहे है। हिसाब लगाना बहुत मुशिकल है। एक दिया बहुत छोटी बात है। सूरज बड़ी बात है। सूरज पृथ्‍वी से साठ हजार गुणा बड़ा है। दस करोड़ मील दूर है। तब भी हमें तपाता है। तब भी हमें झुलसा देता है। उतने बड़े सूरज को एक छोटे से दीये से हम तौलने जायें तो कैसे तोल सकेंगे?
      लेकिन नहीं, एक दीये से सूरज को तौला जा सकता है। क्‍योंकि दीया भी सीमित है और सूरज भी सीमित है। दीये में एक कैंडल का लाइट है तो अरबों-खरबों कैंडल का लाइट होगा सूरज में। लेकिन सीमा आंकी जा सकती है, तौली जा सकती है।
      लेकिन संभोग में जो आनंद है और समाधि में जो आनंद है, उसे फिर भी नहीं तौला जा सकता। क्‍योंकि संभोग अत्‍यंत क्षणिक दो क्षुद्र व्‍यक्‍तियों का मिलन है और समाधि बूंद का अनंत के सागर से मिल जाना है। उसे कोई भी नहीं तौल सकता। उसे तौलने का कोई भी उपाय नहीं है। उसे......कोई मार्ग नहीं कि हम जाँचे कि वह कितना होगा।
      इसलिए जब वह उपलब्‍ध होता है, जब वह उपलब्‍ध हो जाता है तो फिर कहां सेक्‍स, फिर कहां संभोग, फिर कहां कामना?जब इतना अनंत मिल गया तब कोई कैसे सोचेगा, कैसे विचार करेगा उसी क्षण भर के सुख को पाने के लिए? तब वह सुख दुःख जैसा प्रतीत होता है। तब वह सुख पागलपन जैसा प्रतीत होता है। तब वह सुख शक्‍ति का अपव्‍यय प्रतीत होता है, और ब्रह्मचर्य सहज फलित हो जाता है।
      लेकिन संभोग और समाधि के बीच एक सेतु है, एक ब्रिज है, एक यात्रा है, एक मार्ग है। समाधि जिसका अंतिम छोर है आकाश में जाकर, संभोग अस सीढ़ी का पहला सोपान है, पहला पाया है। और जो इस पाये के ही विरोध में जाते है, वे आगे नहीं बढ़ पाते। यह मैं आपसे कह देना चाहता हूं, जो पहले पाये को इंकार करने लगते है, वे दूसरे पाये पर पैर नहीं रख सकते है। मैं आपसे यह कह देना चाहता हूं। इस पहले पाये पर भी अनुभव से ज्ञान से, बोध से पैर रखना जरूरी है। इसलिए नहीं कि हम उसी पर रुके रह जायें। बल्‍कि इसलिए कि हम उस पर पैर रखकर आगे निकल जा सकें।
      लेकिन मनुष्‍य जाति के साथ एक अदभुत दुर्घटना हो गयी। जैसा मैंने कहा,वह पहले पाये के विरोध में हो गया है। और अंतिम पाये पर पहुंचना चाहता है। उसे पहले पाये का ही अनुभव नहीं, उसे दीये का भी अनुभव नहीं और वह सूरज के अनुभव की आकांशा करता है। यह कभी भी नहीं हो सकता। जो दीया मिला है प्रकृति की तरफ से पहले उस दीये की रोशनी को समझ लेना जरूरी है, पहले उस दीये की हल्‍की सी रोशनी को जो क्षण भर में जीती है, और बुझ जाती है। जरा सा हवा का झोंका जिसे मिटा देता है। उस रोशनी को भी जान लेना जरूरी है। ताकि सूरज की आकांशा की जा सके। ताकि सूरज तक पहुंचने के लिए कदम उठाया जा सके, ताकि सूरज की प्‍यास, असंतोष, आकांक्षा, और अभीप्‍सा भीतर पैदा की जा सके।
      संगीत के छोटे से अनुभव से ही परम संगीत की तरफ जाया जा सकता है। प्रकाश के छोटे से अनुभव से अनंत प्रकाश की तरफ जाया जा सकता है। एक बूंद को जान लेना पूरे सागर को जान लेने के लिए पहला कदम है। एक छोटे से अणु  को जानकर हम पदार्थ की सारी शक्‍ति को जान लेते है।
      संभोग का एक छोटा सा अणु है, जो प्रकृति की तरफ से मनुष्‍य को मुफ्त में मिला हुआ है। लेकिन हम उसे जान नहीं पाते हे। आँख बन्‍द करके जी लेते है किसी तरह, पीठ फेर कर जी लेते है। उसकी स्‍वीकृति नहीं हमारे मन में, स्‍वीकार नहीं हमारे मन में। आनंद और अहो भाव से उसके जानने और जीने और उसमें प्रवेश करने की कोई विधि नहीं हमारे हाथ में।
      मैंने जैसा आप से कहा, जिस दिन आदमी इस विधि को जान पायेगा, उस दिन हम दूसरे तरह के मनुष्‍य को पैदा करने में समर्थ हो जायेगे।
      मैं इस संदर्भ में आपसे यह कहना चाहता हूं कि स्‍त्री और पुरूष दो निगेटिव पोल्‍स है, विद्युत के—पाजीटिव और निगेटिव,विधायक और नकारात्‍मक दो छोर है। उन दोनों के मिलन से एक संगीत पैदा होता है। विद्युत का पूरा चक्र पैदा होता है।
      मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं। कि अगर गहराई और देर तक संभोग स्‍थिर रह जायें तो दो जोड़ा....स्‍त्री और पुरूष का एक जोड़ा अगर आधे घंटे के पास तक संभोग में रह जाये तो दोनों के पास प्रकाश का एक विलय, दोनों के पास प्रकाश का एक घेरा निर्मित हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पूरी तरह मिलती है तो आसपास अंधेरे में भी रोशनी दिखाई पड़ने लगती है।
      कुछ अद्भुत खोजी यों ने इस दिशा में काम किया है। और फोटोग्राफ भी लिए है। जिस जोड़े को उस विद्युत का अनुभव उपलब्‍ध हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पुरी तरह से मिलती है। वह जोड़ा सदा के लिए संभोग से बहार हो जाता है।
      लेकिन यह हमारा अनुभव नहीं है, और ये बातें अजीब मालूम होती है। ये तो हमारे अनुभव में नहीं है बात। अगर अनुभव में नहीं है तो उसका मतलब है कि आप फिर से सोचें, फिर से देखें और जिन्‍दगी को कम से कम सेक्‍स की जिन्‍दगी को क ख ग से फिर से शुरू करें।
      समझने के लिए बोध पूर्वक जीने के लिए—मेरी अपनी अनुभूति यह है, मेरी अपनी धारणा यह है कि महावीर यह बुद्ध या क्राइस्‍ट और कृष्‍ण आकस्‍मिक रूप से नहीं पैदा हाँ जाते। यह उन दो व्‍यक्‍तियों के परिपूर्ण मिलन का परिणाम है।
      मिलन जितना गहरा होगा, जो संतति पैदा होगी। वह उतनी ही अद्भुत होगी। मिलन जितना अधूरा होगा, जो संतति पैदा होगी वह उतनी ही कचरा और दलित होगी।
      आज सारी दुनिया में मनुष्‍यता का स्‍तर रोज नीचे चला जा रहा है। लोग कहते है कि कलयुग आ गया है। इसलिए स्‍तर नीचे जा रहा है। लोग कहते है कि नीति बिगड़ गयी है। इसलिए स्‍तर नीचे जा रहा है। गलत, बेकार की और फिजूल की बातें करते है।
      सिर्फ एक फर्क पडा है। मनुष्‍य के संभोग का स्‍तर नीचे उतर गया है। मनुष्‍य के संभोग ने पवित्रता खो दी है। मनुष्‍य के संभोग ने वैज्ञानिकता खो दी है। सरलता और प्राकृतिकता खो दी है। मनुष्‍य का संभोग जबरदस्‍ती एक नाइट मेयर, एक दुखद स्‍वप्‍न जैसा हो गया है। मनुष्‍य के संभोग ने हिंसात्‍मक स्‍थिति ले ली है। वह एक प्रेमपूर्ण कृत्‍य नहीं है। वह एक पवित्र और शांत कृत्‍य नहीं है। वह एक ध्‍यान पूर्ण कृत्‍य नहीं है। इसलिए मनुष्‍य नीचे उतरता चला जायेगा।
      एक कलाकार कुछ चीज बनाता हो, कोई मूर्ति बनाता हो और कलाकार नशे में हो, तो आप आशा करते है कि कोई सुन्‍दर मूर्ति बन पायेगी? एक नृत्‍यकार नाच रहा हो, क्रोध से भरा हो, अशांत हो, चिंतित हो, तो आप आशा करते है कि नृत्‍य सुन्‍दर हो सकेगा?
      हम जो भी करते है वह हम किसी स्‍थिति में है, इस पर निर्भर करता है। और सबसे ज्‍यादा उपेक्षित निग्‍लेक्‍टेड, सेक्‍स है,संभोग है।   
      और बड़े आश्‍चर्य की बात है, उसी संभोग से जीवन की सारी यात्रा चलती है। नये बच्‍चे, नयी आत्‍माएं जगत में प्रवेश करती है।
      शायद आपको पता न हो, संभोग तो एक सिचुएशनल है, जिसमें एक आकाश में उड़ती हुई आत्‍मा अपने योग्‍य स्‍थिति को समझकर प्रविष्‍ट होती है। आप सिर्फ एक अवसर पैदा करते है। आप बच्‍चे के जन्‍मदाता नहीं है, सिर्फ एक अवसर पैदा करते है। वह अवसर जिस आत्‍मा के लिए जरूरी उपयोगी और सार्थक मालूम होता है, वह आत्‍मा प्रविष्‍ट होती है।
      अगर आपने एक रूग्‍ण अवसर पैदा किया है, अगर आप क्रोध में दुःख में, पीड़ा में और चिंता में है तो जो आत्‍मा अवतरित होगी, वह आत्‍मा उसी तल की हो सकती है। उसके ऊंचे तल की नहीं हो सकती है।
      श्रेष्‍ठ आत्‍माओं की पुकार के लिए श्रेष्‍ठ संभोग का अवसर और सुविधा चाहिए तो श्रेष्‍ठ आत्‍माएं जन्‍मती है। और जीवन ऊपर उठता है।
      इसलिए मैंने कहा कि जिस दिन आदमी संभोग के पूरे शस्‍त्र में निष्‍णात होगा। जिस दिन हम छोटे-छोटे बच्‍चों से लेकर सारे जगत को उस कला और विज्ञान के सबंध में सारी बात कहेंगे और समझा सकेंगे,उस दिन हम बिलकुल‍ नये मनुष्‍य को,जिसे नीत्‍से सुपरमैन कहता था। जिसे अरविन्‍द अतिमानव कहते थे। जिसको महान आत्‍मा कहा जा सकता है, वैसा बच्‍चा वैसी संतति जगत में निर्मित की जा सकेगी। और जब तक हम ऐसा जगत निर्मित नहीं कर लेते है, तब तक न शांति हो सकती है,विश्‍व में,और न युद्ध ही रूक सकते है, न धृणा रूकेगी, न अनीति रूकेगी, न दुश्चरित्र रूकेगी। न व्यभिचार रुकेगा,न जीवन का यह अंधकार रुकेगा।
      लाख राजनीतिज्ञ चिल्‍लाते रहे....मत फिक्र करें, यह पाँच मिनिट के पानी गिरने से कोई फर्क न पड़ेगा। बंद कर लें छाते,क्‍योंकि दूसरे लोगों के पास छाते नहीं है। यह बहुत अधार्मिक होगा कि कुछ लोग छाते खोल लें। उसे बंद कर लें। सबके पास छाते होते तो ठीक था। और लोगों के पास नहीं है और आप खोलकर बैठेंगे तो कैसा बेहूदा होगा। कैसा असंस्‍कृत होगा। उसको बंद कर लें। मैं जरूर मेरे ऊपर छप्‍पर है, तो जितनी देर आप पानी में बैठे रहेंगे, मीटिंग के बाद उतनी देर में पानी में खड़ा हो जाऊँगा।
      नहीं मिटेगे युद्ध, नहीं मिटेगी अशांति, नहीं मिटेगी हिंसा, नहीं मिटेगी ईर्ष्‍या। कितने दिन हो गये। दस हजार साल हो गये। मनुष्‍य जाति के पैगम्‍बर, तीर्थकर,अवतार समझा रहे है कि मत लड़ों, मत करो हिंसा, मत करो क्रोध, लेकिन किसी ने कभी नहीं सुना। जिन्‍होंने हमें समझाया कि मत करो हिंसा मत करो क्रोध उनको हमने सूली पर लटका दिया। यह उनकी शिक्षा का फल हुआ। गांधी हमें समझाते थे कि प्रेम करो, एक हो जाओ,हमने गोली मार दी। यह कुल उनकी शिक्षा का फल हुआ।
      दुनिया के सारे मनुष्‍य सारे महापुरुष हार गये है, यह समझ लेना चाहिए। असफल हो चुके है। आज तक कोई भी मूल्‍य जीत नहीं सका। सब मूल्‍य हार गये। सब मूल्‍य असफल हो गये। बड़े से बड़े पुकारने वाले लोग, भले से भले लोग भी हार गये और समाप्‍त हो गये। और आदमी रोज अंधेरे और नरक में चला जाता रहा है। क्‍या इससे यह पता नहीं चलता कि हमारी शिक्षाओं में कहीं कोई बुनियादी भूल है।
      अशांत आदमी इस लिए अशांत है कि वह अशांति में जन्‍मता है। उसके पास अशांति के कीटाणु है। उसके प्राणों की गहराई में अशांति को रोग है। जन्‍म के पहले दिन वह अशांति को, दुःख और  पीड़ा का लेकिन पैदा हुआ है। जन्‍म के पहले क्षण में ही उसके जीवन का सारा स्‍वरूप निर्मित हो गया है। इसलिए बुद्ध हार जायेंगे,महावीर हार जायेंगे,कृष्‍ण हारे गे, क्राइस्‍ट हारे गे,हार चुके है। हम शिष्‍टता वश यह न कहते हों कि वह नहीं हारे है तो दूसरी बात है। लेकिन वह सब हार चुके है।
      और आदमी रोज बिगड़ता चला गया है रोज बिगड़ता गया है। अहिंसा की इतने शिक्षा और हम छुरी से एटम और हाइड्रोजन बम पर पहुंच गये है। यह अहिंसा की शिक्षा की सफलता होगी?
      पिछले पहले महायुद्ध में तीन करोड़ लोगों की हत्‍या की। और उसके बाद शांति और प्रेम की बातें करने के बाद दूसरे महायुद्ध में हमने साढे सात करोड़ लोगों की हत्‍या की। और उसके बाद भी चिल्‍ला रहे है बर्ट्रेंड रसल से लेकिन विनोबा भावे तक सारे लोग कि शांति चाहिए, शांति चाहिए। और हम तीसरे महायुद्ध की तैयारी कर रहे है। और तीसरा युद्ध दूसरे महायुद्ध को बच्‍चो का खेल बना देगा।
      आइंस्‍टीन से किसी ने पूछा था तीसरे महायुद्ध में क्‍या होगा। आइंस्‍टीन ने कहा,तीसरे के बाबत कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन चौथे के संबंध में मैं कुछ कह सकता हूं। पूछने वालों ने कहा, आश्‍चर्य आप तीसरे के संबंध में नहीं कह सकते तो चौथे के संबंध में क्‍या कहेंगे। आइंस्‍टीन ने कहा चौथे के संबंध में एक बात निश्‍चित है कि चौथा महायुद्ध कभी नहीं हो सकता। क्‍योंकि तीसरे के बाद किसी आदमी के बचने की उम्‍मीद नहीं है।
      यह मनुष्‍य की सारी नैतिक और धार्मिक शिक्षा का फल है। मैं आपसे कहना चाहता हूं, इसकी बुनियादी वजह दूसरी है। जब तक हम मनुष्‍य के संभोग को सुव्‍यवस्‍थित, मनुष्‍य के संभोग को आध्‍यात्‍मिक जि तक हम मनुष्‍य के संभोग को समाधि का द्वार बनाने में सफल नहीं होते,तब तक अच्‍छी मनुष्‍यता पैदा नही हो सकती हे। रोज को जन्‍म दे जायेंगे। हर पीढ़ी नीचे उतरती चली जायेगी। यह बिलकुल ही निश्‍चित है। इसकी प्रोफेसी की जा सकती है, इसकी भविष्‍यवाणी की जा सकती है।

और अब तो हम उस जगह पहुंच गये है कि शायद और पतन  की गुंजाइश नहीं है। करीब-करीब सारी दुनिया एक मेड हाऊस एक पागलखाना हो गयी है।
      अमरीका के मनोवैज्ञानिकों ने हिसाब लगया है न्‍यूयार्क जैसे नगर में केवल 18 प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ कहे जा सकते है। 18 प्रतिशत, 18 प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्‍वास्‍थ है। तो 82 प्रतिशत लोग करीब-करीब विक्षिप्‍त होने की हालत में है।
      आप कभी अपने संबंध में कोने में बैठकर विचार करना, तो आपको पता चलेगा कि पागलपन कितना है भीतर। किसी तरह दबाये है पागलपन को, किसी तरह संभलकर चले जा रहे है। वह बात दूसरी है। जरा सा कोई धक्‍का दे-दे और कोई भी आदमी पागल हो सकता है।
      यह संभावना है कि सौ वर्ष के भीतर सारी मनुष्‍यता एक पागलखाना बन जाये। सारे लोग करीब-करीब पागल हो जाये। फिर हमें एक फायदा होगा कि पागलों के इलाज की कोई जरूरत नहीं रहेगी। एक फायदा ओर होगा कि पागलों के चिकित्‍सक नहीं होंगे। एक फायदा होगा कि कोई अनुभव नहीं करेगा कि कोई पागल है। क्‍योंकि पागल का पहला लक्षण यह है कि वह कभी नहीं मानता कि मैं पागल हूं। इतना ही फायदा होगा।
      लेकिन यह रूग्णता बढ़ती चली जाती है। यह रोग, यह अस्वस्थता, यह मानसिक चिंता और मानसिक अंधकार बढ़ता चला जाता है। क्‍या मैं आपसे कहूं कि सेक्‍स को स्‍प्रीच्‍युअलाइज किये बिना, संभोग को आध्‍यात्‍मिक बनाये बिना कोई नयी मनुष्‍यता पैदा नहीं हो सकती है?
      इन तीन दिनों में थोड़ी सी बातें आपसे कहीं। निश्‍चित ही एक नये मनुष्‍य को जन्‍म देना है। मनुष्‍य के प्राण आतुर है उंचाईयों को छूने के लिए, आकाश में उठ जाने के लिए, चाँद तारों जैसे रोशन होने के लिए, फूलों जैसे खिल जाने के लिए, नृत्‍य के लिए, संगीत के लिए, आदमी की आत्‍मा रोती है। और प्‍यासी है। और आदमी कोल्‍हू के बैल की तरह चक्‍कर में घूमता है और उसी में समाप्‍त हो जाता है। चक्‍कर के बहार नहीं उठ पाता है। क्‍या कारण है?
      कारण एक ही है, मनुष्‍य के जन्‍म की प्रक्रिया बेहूदी है, एब्‍सर्ड है। मनुष्‍य के पैदा होने की विधि पागलपन से भरी हुई है। मनुष्‍य के संभोग को हम द्वार नहीं बना सके समाधि का इसीलिए। मनुष्‍य का संभोग समाधि का द्वार बन सकता है।
      इन तीन दिनों में इसी छोटे से मंत्र पर मैने सारी बातें कहीं और अंत में एक बात दोहरा दूँ और आज की चर्चा में पूरी करूं।
      मैं यह कह देना चाहता हूं, कि जीवन के सत्‍यों से आंखें चुराने वाले लोग मनुष्‍य के शत्रु है। जो आपसे कहें कि संभोग और सेक्‍स की बात का विचार भी नहीं करना चाहिए। वह आदमी मनुष्‍य का दुश्‍मन हे, क्‍योंकि ऐसे ही दुश्‍मनों ने हमें सोचने नहीं दिया। अन्‍यथा यह कैसे संभव था कि हम आज तक वैज्ञानिक दृष्‍टि ने खोज लेते और जीवन को नया करने का प्रयोग न खोज लेत।
      जो आपसे कहे कि सेक्‍स का धर्म से कोई संबंध नहीं है। वह आदमी सौ प्रतिशत गलत है। क्‍योंकि सेक्‍स की ऊर्जा ही परिवर्तित और रूपांतरित होकर धर्म के जगत में प्रवेश पाती है। वीर्य की शक्ति ही उर्ध्‍वस्‍वी होकर मनुष्‍य को उन लोको में ले जाती है, जिनका हमें कोई पता नहीं है। जहां कोई मृत्‍यु नहीं है, जहां कोई दुःख नहीं जहां आनंद के अतिरिक्‍त और कोई अस्‍तित्‍व नहीं है।
      उस सत चित आनंद में ले जाने वाली शक्‍ति और ऊर्जा किसके पास है और कहां है?
      हम उसे व्‍यय कर रहे है। हम उन पात्रों की तरह है, जिनमें छेद है, जिन्‍हें हम कुओं में डालते हैं खींचने के लिए। ऊपर तक पात्र तो आ जाता है, शेर गुल भी बीच में बहुत होता है और पानी गिरता है और लगता है कि पानी आता होगा। लेकिन पानी सब बीच में गिर जाता है। खाली पात्र हाथ में वापस आ जाता है।
      हम उन नाव की तरह है, जिनके छेद है। हम नावों को खेते है—सिर्फ डूबने के लिए; नावें किसी किनारे पर नहीं पहुंच पाती है। सिर्फ मंझधार में डूबा देती है। और नष्‍ट हो जाती है।
      और ये सारे छिद्र मनुष्‍य की सेक्‍स ऊर्जा के गलत मार्गों से प्रवाहित और बह जाने के कारण है। और उन गलत मार्गों पर बहाने वाले लोग वह नहीं है, जिन्‍होंने नंगी तस्‍वीरें लटकायी है; वे नहीं है जिन्‍होंने नंगे उपन्‍यास लिखे है; वह नहीं है, जो नंगी फिल्में बना रहे है।
      मनुष्‍य की ऊर्जा को विकृत करनेवाले वे लोग हैं, जिन्‍होंने मनुष्‍य को सेक्‍स के सत्‍य से परिचित होने में बाधा दी है। और उन्‍हीं लोगों के कारण ये नंगी तस्‍वीरें बिक रही है। नंगी फिल्‍में बिक रही है। लोग नए क्‍लबों को ईजाद कर रहे है। और गंदगी के नये-नये और बेहूदगी के नये-नये रास्‍ते निकाल रहे है।    
      किनके कारण? ये उनके कारण जिनको हम साधु और संन्‍यासी कहते है। उन्‍होंने इनके बाजार का रास्‍ता तैयार किया है। अगर गौर से हम देखें तो वे इनके विज्ञापनदाता है, वे इनके एजेन्‍ट है।
      एक छोटी सी कहानी, मैं अपनी बात पूरी कर दूँगा।
      एक पुरोहित जा रहा था। अपने चर्च की तरफ। दूर था गांव, भागा हुआ चला जा रहा था। तभी उसे पास की खाई में जंगल में एक आदमी पडा हुआ दिखायी पडा घावों से भरा हुआ। खून बह रहा था। छुरी उसकी छाती में चुभी है।
      पुरोहित को ख्‍याल आया कि चलू में इसे उठा लूं, लेकिन उसने देखा कि चर्च पहुंचने में देर हो जायेगी। और वहां उसे व्‍याख्‍यान देना है। और लोगों को समझाना है। आज वह प्रेम के संबंध में ही समझाने जाता है। आज उसके विषय चुना था,‘’लव इज़ गॉड’’ क्राइस्ट के वचन को चुना था कि ईश्‍वर परमात्‍मा प्रेम है। वह यही समझाने जा रहा था। लेकिन उस आदमी ने आंखे खोली और वह चिल्‍लाया, पुरोहित मुझे पता है कि तू प्रेम पर बोलने जा रहा है। मैं भी आज सुनने आने वाला था। लेकिन दुष्‍टों ने मुझे छुरी मारकर यहां पटक दिया है। लेकिन याद रख अगर में जिन्‍दा रह गया तो गांव भर में खबर कर दूँगा कि आदमी मर रहा था। और यह आदमी प्रेम पर व्‍याख्‍यान देने चला गया था। देख आगे मत बढ़।
      इससे पुरोहित को थोड़ा डर लगा। क्‍योंकि अगर वह आदमी जिंदा रह गया तो गांव में खबर कर दे तो लोग कहेंगे कि प्रेम का व्‍याख्‍यान बड़ा झूठा है। आपने इस आदमी की फिक्र न की, जो मरता था। तो मजबूरी में उसे नीचे उतर कर उसके पास जाना पडा। वहां जाकर उसका चेहरा देखा तो बहुत घबराया। चेहरा तो पहचाना हुआ सा मालूम पड़ता है। उसने कहा, ऐसा मालूम होता है मैंने तुम्‍हें कहीं देखा है? और उस मरणासन्‍न आदमी ने कहां,जरूर देखा होगा। मैं शैतान हूं और पादरियों से अपना पुराना नाता है। तुमने नहीं देखा होगा तो किसने मुझे देखा होगा।
      तब उसे ख्‍याल आया कि वह तो शैतान है, चर्च में उसकी तस्‍वीर लटकी हे। उसने अपने हाथ अलग कर लिये और कहा कि मर जा। शैतान को तो हम चाहते है कि वह मर ही जाये। अच्‍छा हुआ कि तू मर जा, मैं तुझे बचाने का क्‍यों उपाय करूं। मैंने तेरा खून भी छू लिया, यह भी पाप हुआ। मैं जाता हूं।
      वह शैतान जोर से हंसा, उसने कहा याद रखना जिस दिन में मर जाऊँगा,उस दिन तुम्‍हारा धंधा भी मर जायेगा। मेरे बिना तुम जिंदा भी नहीं रह सकते हो। मैं हूं, इसलिए तुम जिंदा हो। मैं तुम्‍हारे धंधे का आधार हूं। मुझे बचाने की कोशिश करों,नहीं तो जिस दिन शैतान मर जायगा, उसी दिन पुरोहित पंड़े, पुजारी सब मर जायेगे; क्‍योंकि दुनिया अच्‍छी हो जायेगी। पंडे,पुजारी, पुरोहित,की कोई जरूरत नही रह जायेगी।
      पुरोहित ने सोचा और घबरा गया। बात तो एक दम सही है। बात तो बहुत बुनियादी कह रहा है। ये बात मेरी समझ में क्‍यों नहीं आई। उसने उसे तत्‍काल कंधे पर उठाया, और कहां प्‍यारे शैतान तुम घबराओ मत, मैं तुम्‍हें अस्‍पताल में ले चलता हूं वहां तुम्हारी इलाज कराऊंगा। तुम देखना जरूर ठीक हो जाओगे। लेकिन देखो मर मत जाना। तुम बिलकुल ठीक कहते हो। तुम मर गये तो हम बिलकुल ही बेकार हो जायेगे।
      हमें ख्‍याल भी नहीं आ सकता हे कि पुरोहित के धंधे के पीछे शैतान है। हमें यह भी ख्‍याल नहीं आ सकता कि शैतान के धंधे के पीछे पुरोहित हे। कि जो शैतान का धंधा चल रहा है.....सेक्‍स का शोषण चल रहा है। सारी दुनिया में....हर चीज के पीछे सेक्‍स का शोषण चल रहा है। हमें ख्‍याल भी नहीं आ सकता की इसके पीछे पुरोहित का हाथ हो सकता है। पुरोहित ने जितनी निंदा की है। सेक्‍स उतना आकर्षक हो गया है। फिर उसने जितने दमन के लिए कहां है, आदमी उतना भोग में गिर गया है। पुरोहित ने जितना इंकार किया हे कि सेक्‍स के संबंध में सोचना ही मत, सेक्‍स उतनी ही अंजान पहेली हो गयी है। और हम उसके संबंध में कुछ भी करने मे असमर्थ है।
      नहीं। ज्ञान चाहिए। ज्ञान शक्‍ति है। और सेक्‍स का ज्ञान बड़ी शक्‍ति बन सकता है। अज्ञान में जीना हितकर नहीं है। और सेक्‍स के अज्ञान में जीना तो बिलकुल हितकर नहीं है।
      यह भी हो सकता है, कि हम न जायें चाँद पर। कोई जरूरत नहीं है चाँद पर जान पर की। चाँद को जान लेने से कोई मनुष्‍य जाति का बहुत हित नहीं हो सकता। यह भी जरूरी नहीं है कि हम पैसिफिक महासागर की गहराइयों में उतरें पाँच मील,जहां की सूरज की रोशनी नहीं पहुँचती। उसको जान लेने से भी मनुष्‍य जाति का कोई बहुत परम मंगल हो जाने वाला नहीं है। यह भी जरूरी नहीं है कि हम एटम को तोड़े ओर पहचाने।
      लेकिन एक बात बिलकुल जरूरी हे, सबसे जरूरी है, अल्‍टीमेट कन्‍सर्न की है। और वह यह है कि मनुष्‍य के सेक्‍स को ठीक से जान लें और समझ लें। ताकि नये मनुष्‍य को जन्‍म देने में सफल हो सकें।
      ये थोड़ी से बातें तीन दिन में मैंने आपसे कहीं। कल आपके प्रश्‍न के उत्‍तर दूँगा। और चूंकि कल का दिन खाली छूट गया। कुछ मित्र आये और देखकर लौट गये तो मेरे ऊपर उनका ऋण हो गया है तो मैं कल दो घंटे उत्‍तर दे दूँगा, ताकि आपको कोई अड़चन और तकलीफ न हो। अपने प्रश्‍न आप लिखकर दे देंगे ईमानदारी से क्‍योंकि यह मामला ऐसा नहीं है कि आप परमात्‍मा, आत्‍मा के संबंध में जिस तरह की बातें पूछते है, वह यहां पूछे। यह मामला जिन्‍दगी का है और सीधे और सच्‍चे अगर आपके प्रश्‍न पूछे तो हम इन विषयों की और गहराई में भी उतरने में समर्थ हो सकते है।
      मेरी बातों को इतने प्रेम से सुना, उसके लिए अनुगृहित हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्‍मा को प्रणाम करता हूं,मेरे प्रणाम स्‍वीकार करें।
ओशो
संभोग से समाधि की ओर,
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki, Spiritual & Cosmic Healing, (Treatment & Training Center)
C53,  Sector 15 Vasundra, Avash Vikash Markit, Near Pani Ki Tanki,  Ghaziabad
Mob-: 9958502499

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