Friday, 9 February 2018

तंत्र अनुभूति का जगत है।

तंत्र--सूत्र--(भाग--3)

तंत्र—सूत्र—(भाग—3)
ओशो

भूमिका :

तंत्र अनुभूति का जगत है।
तंत्र कोई दर्शनशास्त्र नहीं हैकोई चिंतन—मनन की प्रक्रिया अथवा विचार—प्रणाली नहीं है।
तंत्र शुद्धतम रूप में अनुभूति है। इसका पहला चरण है अपनी अनुभूति—अपना मनअपने भावअपनी इंद्रियाअपना बोध—अपने समग्र होने की अनुभूति। इसका दूसरा चरण है : दूसरे की अनुभूति। इसका तीसरा और आखिरी चरण है : अखंड अस्तित्व की अनुभूति।
सभ्यता के विकास के क्रम में मनुष्य विचार की दुनिया में ऐसा भटक गया है कि अब वह केवल विचारों ही विचारों में जीता हैउसकी भाव की दुनियासंवेदनशीलता और अनुभूति के जगत पर केवल विचारों के बादल छाए हैं। वह जो नहीं है अथवा नहीं होना चाहिएवही वह हो गया है। वह झूठा हो गया है।

ओशो कहते हैं तंत्र ठीक विपरीत प्रक्रिया है। तंत्र तुम्हें झूठा होने से बचाता है। और अगर तुम झूठे हो गए हो तो तंत्र सिखाता है कि कैसे उस सत्य से फिर से संपर्क साधो जो तुम्हारे भीतर जा छिपा हैकि कैसे फिर से सच्चे हो जाओ।
मनुष्य की जीवन—ऊर्जा उसकी निरंतर विचार—प्रक्रिया के कारण उसके सिर में केंद्रित हो गयी है। इसलिए मनुष्य केवल सोचता हैलेकिन अनुभव नहीं करताअथवा उसका सोचना उसे अनुभव करने के समान लगता हैक्योंकि उसका मन के साथ ऐसा तादात्म्य हो गया है।
तंत्र—सूत्र में ओशो समझाते हैं इस तादात्म्य के साथ कि मैं मन हूं सब कुछ झूठ हो जाता है। तुम झूठे हो जाते हो,क्योंकि यह तादात्म्य ही झूठा है। इस तादात्म्य को तोड़ना है। और तंत्र की विधियां उन्हें ही तोड्ने को बनी हैं। तंत्र तुम्हें सिर—विहीनकेंद्र—विहीन बनाने की चेष्टा करता है। उसकी चेष्टा है कि तुम या तो सर्वत्र होओ या कही न होओ। तंत्र कहता है : नीचे आओसिंहासन से उतरो। अपने सिरों से नीचे उतर आओ।
और सिर से नीचे उतरते ही एक चमत्कार घटित होता है. व्यक्ति की जीवन—ऊर्जा उसके रोएं—रोएं मेंपोर—पोर में प्रवाहित होने लगती है। व्यक्ति जीवंत अनुभव करने लगता है। इसमें चमत्कार जैसा कुछ नहीं हैयह सहज ही होता है। लेकिन व्यक्ति चूंकि सिर में अटक गया हैऔर हमेशा वहीं अटका रहता हैइसलिए पहली बार ऊर्जा कोअपने अखंड होने को अनुभव करना चमत्कार ही प्रतीत होगा।
तंत्र के संबंध में बहुत सी भ्रांतिया प्रचलित रही हैंउसे कभी ठीक से समझा नहीं गया और आज भी लोग तंत्र से सर्वथा अनभिग हैं। ओशो कहते हैं. तंत्र बहुत क्रांतिकारी धारणा है—सबसे पुरानी और सबसे नयी। तंत्र सबसे पुरानी परंपराओं में एक है और साथ ही वह गैर—परंपरावादी भी हैपरंपरा—विरोधी भी है। क्योंकि तंत्र कहता है कि जब तक तुम अखंडपूर्ण और एक नहीं होतुम पूरे जीवन से चूक रहे हो। तुम्हें विभाजितखंडित अवस्था में नहीं रहना हैतुम्हें एक होना है।
मनुष्य अपने अज्ञान में अथवा अपने धर्मगुरुओं की भ्रामक शिक्षाओं के कारण अपने ही भीतर विभाजित हो गया हैवह अपने को ही पूरा का पूरा स्वीकार नहीं कर पाता। वह अपने भीतर अच्छे—बुरेनैतिक—अनैतिकशुभ— अशुभ के द्वंद्व में घिरा रहता है। यही योगदान है सब धर्मों का व्यक्ति के जीवन में। तंत्र इन सब धर्मों के प्रति विद्रोह है। ओशो कहते हैं. तंत्र जीवन का गहन स्वीकार हैसमग्र स्वीकार है। तंत्र अपने ढंग की सर्वथा अनूठी साधना हैअकेली साधना है। सभी देश और काल में तंत्र का यह अनूठापन अक्षुण्ण रहा है।
तंत्र व्यक्ति के आंतरिक जगत में प्रसुप्त एवं उपेक्षित चैतन्य—संपदा से संबंधित होने कीउसमें स्थापित एवं प्रतिष्ठित होने की विधिवत प्रणाली है। दुर्भाग्य सेतंत्र की यह अनूठी संपदाकेवल कुछ गिने—चुने साधकों को छोड़ करशेष सबके लिए आज तक अनुपलब्ध रही अथवा अनेक तरह के आवरणों और भ्रांतियों में ढंकी रही। आज पुन: एक विशाल पैमाने पर ओशो ने आधुनिक मनुष्यता के लिए इस संपदा को उदघाटित कर सर्वसुलभ बनाया है। तंत्र की इन अनूठी ध्यान—विधियों के प्रयोग के बिना यह दुनिया अनावश्यक रूप से दरिद्र बनी रही है। आज ओशो ने पुन: हमारी आध्यात्मिक समृद्धि के समस्त द्वार खोल दिये हैं। इस महत कार्य के लिए यह पूरा युग ओशो के प्रति अनुगृहीत होगा।
आओतो अनुभूति के इस अनुपम जगत में प्रवेश करें।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
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