सेक्स नैतिक या अनैतिक: ओशो (भाग-1)
सेक्स से संबंधित किसी नैतिकता का कोई भविष्य नहीं है। सच तो यह है कि सेक्स और नैतिकता के संयोजन ने नैतिकता के सारे अतीत को विषैला कर दिया है। नैतिकता इतनी सेक्स केंद्रित हो गई कि उसके दूसरे सभी आयाम खो गये—जो अधिक महत्वपूर्ण है। असल में सेक्स नैतिकता से इतना संबंधित नहीं होना चाहिए।
सच, ईमानदारी, प्रामाणिकता, पूर्णता—इन चीजों का नैतिकता से संबंध होना चाहिए। चेतना, ध्यान, जागरूकता, प्रेम, करूण—इन बातों का असल में नैतिकता से संबंध होना चाहिए।
लेकिन अतीत में सेक्स और नैतिकता लगभग पर्यायवाची रहे है; सेक्स अधिक मजबूत, अत्यधिक भारी हो गया। इसलिए जब कभी तुम कहो कि कोई व्यक्ति अनैतिक है तब तुम्हारा मतलब होता है, कि उसके सेक्स जीवन के बारे में कुछ गलत है। और जब तुम कहते हो कि कोई व्यक्ति बहुत नैतिक है, तुम्हारा सारा अर्थ यह होता है, कि वह सभी नैतिकता एक आयामी हो गई; यह ठीक नहीं था। ऐसी नैतिकता का कोई भविष्य नहीं है, वह समाप्त हो रही है। वास्तव में यह मर चुकी है। तुम सिर्फ लाश को ढो रहे हो।
सेक्स तो आमोद-प्रमोद पूर्ण होना चाहिए। न कि गंभीर मामला जैसा कि अतीत में बना दिया गया। यह तो एक नाटक की तरह होना चाहिए, एक खेल कि तरह: मात्र दो लोग एक दूसरे की शारीरिक ऊर्जा के साथ खेल रहे है। यदि वे दोनों खुश है, तो इसमें किसी दूसरे की दखल अंदाजी नहीं होनी चाहिए। वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे। वे बस एक दूसरे की ऊर्जा का आनंद ले रहे है। यह ऊर्जाओं का एक साथ नृत्य है। इसमें समाज का कुछ लेना देना नहीं है। जब तक कि कोई एक दूसरे के जीवन में नुकसान न दें। अपने को थोपे, लादे, हिंसात्मक न हो, किसी के जीवन को नुकसान न पहुँचाए, तब ही समाज को बीच में आना चाहिए। अन्यथा कोई समस्या नहीं है; इसका किसी तरह से लेना देना नहीं होना चाहिए।
सेक्स के बारे में भविष्य में पूरा अलग ही नजरिया होगा। यह अधिक खेल पूर्ण, आनंद पूर्ण, अधिक मित्रतापूर्ण, अधिक सहज होगा। अतीत की तरह गंभीर बात नहीं। इसने लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया है। बेवजह सरदर्द बन गया था। इसने बिना किसी कारण—ईर्ष्या, अधिकार, मलकियत, किचकिच, झगड़ा, मारपीट, भर्त्सना पैदा की।
सेक्स साधारण बात है, जैविक घटना मात्र। इसे इतना महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। इसका इ तना ही महत्व है कि ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन किया जा सके। यह अधिक से अधिक आध्यात्मिक हो सकता है। और अधिक आध्यात्मिक बनाने के लिए इसे कम से कम गंभीर मसला बनाना होगा।
सेक्स से संबंधित नैतिकता के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित मत होओ, यह पूरी तरह से समाप्त हो जाने वाला है। भविष्य में सेक्स के बारे में पूरी तरह से नया ही दृष्टिकोण होगा। और एक बार सेक्स का नैतिकता से इतना गहरा संबंध समाप्त हो जायेगा। तो नैतिकता का संबंध दूसरी अन्य बातों से हो जायेगा जिनका अधिक महत्व है।
सत्य, ईमानदारी, प्रामाणिकता, पूर्णता, करूण, सेवा, ध्यान, असल में इन बातों का नैतिकता से संबंध होना चाहिए। क्योंकि ये बातें है जो तुम्हारे जीवन को रूपांतरित करती है। ये बातें है जो तुम्हें अस्तित्व के करीब लाती है।
ओशो
आह, दिस
गंदा बूढ़ा जैसी अभिव्यक्ति क्यों बनी?
क्योंकि लंबे समय से समाज दमन करता चला आया है इसलिए गंदे बूढ़े होते है। यह तुम्हारे साधु-संतों, पंडित-पुजारियों की देन है।
यदि लोग अपने सेक्स जीवन को आनंदपूर्ण ढंग से जी सके तो बयालीस साल के होत-होत, याद रखो में कह रहा हूं, बयालीस, न कि चौरासी...बयालीस के होते सेक्स उन पर से अपनी पकड़ छोड़ना शुरू कर देगा। ऐसे ही जैसे कि चौदह के होते स्वयं सेक्स आता है और ताकतवर होता है। ऐसे ही कोई बयालीस का होता है सेक्स विदा हो जाता है। बूढ़ा व्यक्ति अधिक प्रेम पूर्ण, करुणापूर्ण, एक उत्सव से भरा व्यक्ति हो जाता है। उसके प्रेम में कामुकता नहीं होती। कोई चाहत नहीं होगी, इसके द्वारा किसी तरह की वासना को पूरी करने की मंशा नहीं होगी। उसका प्रेम शुद्ध होगा। मासूम; उसका प्रेम आनंद होगा।
सेक्स तुम्हें सुख देता है। और सेक्स तभी सुख देता है जब तुम इसमें से गूजरों तब सुख इसका परिणाम होगा। यदि सेक्स अप्रासंगिक हो गया हो—न कि दमन, बल्कि तुमने इतनी गहनता से अनुभव किया कि इसका कोई मुल्य नहीं है। तुमने इसे पूर्णता से जान लिया, और ज्ञान हमेशा स्वतंत्रता लता है। तुमने इसे पूर्णता से जाना और चूंकि तुमने इसे जान लिया, रहस्य समाप्त हो गया, इससे अधिक जानने को कुछ नहीं रहा। इस जानने में, सारी ऊर्जा, काम की ऊर्जा, प्रेम और करूण में रूपांतरित हो जाती है। आनंद वश कोई देता है। तब बूढ़ा व्यक्ति दुनिया का सबसे सुंदर व्यक्ति है, दुनिया का सर्वाधिक स्वच्छ व्यक्ति।
दुनिया की किसी भाषा में स्वच्छ बूढ़ा जैसा कोई शब्द नहीं है। मैंने कभी नहीं सूना। लेकिन गंदा बूढ़ा सारी भाषाओं में होता है। कारण यह है कि शरीर बूढा हो गया है। शरीर थक गया है। शरीर सारी कामुकता से मुक्त होना चाहिए। लेकिन मन, दमित इच्छाओं की वजह से, अब भी लालायित रहता है। जब कि शरीर इसके काबिल नहीं रहा। और मन सतत मांग करता रहता है। जिसके लिए शरीर सक्षम नहीं है। सच तो बूढ़ा व्यक्ति परेशान होता है। उसकी आंखें, कामुक, वासना से भरी है, उसका शरीर मृतप्राय हो थका हुआ है। और उसका मन उसे उत्तेजित किये जाता है। वह भद्दे ढंग से देखने लगता है, गंदा-चेहरा; उसके भीतर कुछ गंदा निर्मित होने लगता है।
शरीर देर सबेर बूढ़ा होता है; इसका बूढ़ा होना पक्का है। लेकिन यदि तुमने अपनी वासनाओं को ठीक से नहीं जिया तो वे तुम्हारे आसपास घूमती रहेंगी। वे तुम्हारे भीतर कुछ गंदा निर्मित करके रहेगी। या तो बूढ़ा व्यक्ति दूनिया का सबसे सुंदर व्यक्ति होता है। क्योंकि उसने वहीं भोलापन अर्जित कर लिया है। जो छोटे बच्चे में होता है। या यूं कह लीजिए की छोटे बच्चे से भी अधिक गहरा भोलापन। वह संत हो जाता है। लेकिन यदि वासनाएं अभी भी है, आंतरिक विद्युत की भांति दौड़ती हुई, तब वह परेशानी में पड़ने ही वाला है।
यदि तुम बूढ़े हो रहे हो, याद रखो वृद्धावस्था जीवन का सबसे अधिक सुंदर अनुभव है। अगर तुम इसे बना सको तो। क्योंकि बच्चें को भविष्य की चिंता है। यह करना है और वह करना है उसकी महान इच्छाएं है। हर बच्चा सोचता है कि वह कुछ विशेष होने वाला है वह वासनाओं और भविष्य में जीता है। युवा अपनी सभी इंद्रियों में बहुत अधिक उलझा होता है। सेक्स वहां है, आधुनिक खोज कहती है। हर आदमी तीन सेकेंड में एक बार सेक्स के बारे में सोचता है। स्त्रियां थोड़ी अधिक ठीक है। वे छ: सेकंड में एक बार सेक्स के बारे में सोचती है। यह बहुत बड़ा अंतर है। लगभग दोगुना; पति पत्नी के बीच होने वाली कलह का यह एक कारण हो सकता है।
हर तीन सेकंड में सेक्स मन में कौंधता है। युवक प्रकृति की ऐसी ताकत होती है। इससे वह स्वतंत्र नहीं हो पाता। महत्वाकांक्षा है, और समय तेज गति से भागा जा रहा है। और उसे कुछ करना है। सभी इच्छाएं, वासनाएं और बचपन की परिकल्पनांए पूरी करनी है; वह पागल दौड़ में है, बहुत जल्दी में है।
बूढ़ा व्यक्ति जानता है कि यौवन के वे सारे दिन और उनकी परेशानियां जा चुकी है। बूढ़ा उसी दशा में है जैसे कि तूफान के बाद शांति उतर आती है। वह मौन अत्यधिक सुंदर, गहन संपदा से भरा हो सकता है। यदि बूढा व्यक्ति सचमुच प्रौढ़ है, जो कि बहुत कम होता है। तब वह सुंदर होगा। लेकिन लोग सिर्फ उम्र में बढ़ते है, वे प्रौढ़ नहीं होते। इस कारण समस्या है।
परिपक्व होओ, अधिक प्रौढ़ होओ, और अधिक जागरूक और सचेत होओ। और वृद्धावस्था तुम्हें अंतिम अवसर दिया गया है: इसके पहले कि मौत आये, तैयार हो जाओ। और कोई मृत्यु के लिए कैसे तैयार होता है? अधिक ध्यान पूर्ण होकर।
यदि कुछ वासनाएं अभी अटकी है, और शरीर बूढा हो रहा है। और शरीर उनको पूरा करने की दशा में नहीं है, चिंता मत करो। उन वासनाओं पर ध्यान करो, साक्षा बनो, सचेत होओ। सिर्फ सचेत होने व साक्षी होने से और जागरूक होने से, वे वासनाएं और उनमें लगी ऊर्जा रूपांतरित हो सकती है। लेकिन इसके पहले कि मौत आये सभी वासनाओं से मुक्त हो जाओ।
जब मैं कहता हूं कि सभी वासनाओं से मुक्त हो जाओं तो मरा यह मतलब है कि वासनाओं के सभी संसाधनों से मुक्त हो जाओ। तब वहां शुद्ध अभीप्सा होगी, बगैर किसी विषय वासना के बगैर किसी पते के, बगैर किसी दिशा के, बगैर किसी मंजिल के। शुद्ध ऊर्जा, ऊर्जा का कुंड, ठहरा हुआ। बुद्ध होने का यही मतलब है।
ओशो
दि बुक ऑफ विज़डन
ऐसा लगता है कि पश्चिम के लिए यह स्वीकारना बहुत मुश्किल है कि सेक्स का बिदा होना आनंद और अनंत का आशीर्वाद की तरह हो सकता है। क्योंकि वे मात्र भौतिक शरीर में ही विश्वास करते है। किसी भी पल काम तृप्ति का आनंद लेने के लिए सेक्स एक साधन मात्र है। यदि तुम पर्याप्त भाग्यशाली हो तो, जोकि लाखों लोग नहीं है।
सिर्फ कभी-कभार कोई थोड़ा सा काम के चरमोत्कर्ष का अनुभव ले पाता है। तुम्हारे संस्कार तुम्हें रोकते है। पूरब में यदि सेक्स स्वत: गिर जाता है यह तो उत्सव है1 हमने जीवन को पूरा दूसरी ही तरह से लिया है, हमने इसे सेक्स का पर्यायवाची नहीं बनाया। इसके विपरीत, जब तक सेक्स रहता है इसका मतलब है कि तुम पर्याप्त प्रौढ़ नहीं हुए।
जब सेक्स बिदा हो जाता है, तुम में अत्यधिक प्रौढ़ता और केंद्रीयता आती है। और असली ब्रह्मचर्य, प्रामाणिक ब्रह्मचर्य। और अब तुम जैविक बंधनों से मुक्त हुए जो सिर्फ ज़ंजीरें मात्र है। जो तुम्हें अंधी शक्तियों के कैदी बनाते है, तुम आंखे खोलते हो और इस अस्तित्व की सुंदरता को देख सकते हो। तुम अपने ब्रह्मचर्य के दिनों में अपनी ही मूढ़ता पर हंसोगे। कि कभी तुम सोचते थे कि यही सब कुछ है जो जीवन हमें देता है।
हास्य और सेक्स के बीच क्या संबंध है--
इनमें निश्चित संबंध है; संबंध बहुत सामान्य है। सेक्स का चरमोत्कर्ष और हंसी एक ही ढंग से होता है; उनकी प्रक्रिया एक जैसी है। सेक्स के चरमोत्कर्ष में भी तुम तनाव के शिखर तक जाते हो। तुम विस्फोट के करीब और करीब आ रहे हो। और तब शिखर पर अचानक चरम सुख घटता है। तनाव के पास शिखर पर अचानक सब कुछ शिथिल हो जाता है। तनाव के शिखर और शिथिलता के बीच इतना बड़ा विरोध है कि तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम शांत, स्थिर सागर में गिर गये—गहन विश्रांति, सधन समर्पण।
यही कारण है कि कभी भी किसी की मृत्यु सेक्स क्रिया के दौरान हार्ट अटेक से नहीं हुई। यह आश्चर्यजनक है। क्योंकि सेक्स क्रिया श्रमसाध्य कार्य है। यह महान योग है। लेकिन कभी कोई नहीं मरा इसका सामान्य सा कारण है कि यह गहन विश्रांति लाता है। सच तो यह है कि कार्डियोलॉजिस्ट और हार्ट स्पेशलिस्ट तो हार्ट के मरीजों को सेक्स औषधि की तरह सिफारिश करने लगे है। सेक्स उनके लिए बहुत मददगार हो सकता है। यह तनाव को विश्रांत करता है। और जब तनाव चला जाता है, तुम्हारा हार्ट अधिक प्राकृतिक ढंग से कार्य करने लगता है।
यही प्रक्रिया हंसी के साथ भी है: यह भी तुम्हारे भीतर का निर्माण करता है। एक निश्चित कहानी और तुम सतत उपेक्षा किये चले जाते हो। कि कुछ होगा। और जब सचमुच कुछ होता है वह इतना अनउपेक्षित होता है कि वह तनाव को मुक्त कर देता है। वह होना तार्किक नहीं है। हंसी के बारे में यह बहुत महत्वपूर्ण बात समझना आवश्यक है। यह होना बहुत मजाकिया होना चाहिए, इसे निश्चित हास्यास्पद होना चाहिये। यदि तुम इसका तार्किक ढंग से निष्कर्ष निकाल सको, तब वहां हंसी नहीं होगी।
एक और अर्थ में हंसी और सेक्स मन में गहरे से जुड़े है। तुम्हारी सेक्स की इंद्री तुम्हारे सेक्स का बाहरी हिस्सा है। असल में सेक्स वही नहीं है। सेक्स दिमाग के किसी केंद्र पर है। इसलिए देर-सबेर मानव इस पुराने तरह के सेक्स से मुक्त हो जायेगा। यह सचमुच हास्यास्पद है। यही कारण है कि लोग सेक्स अंधेरे में, रात के कंबल की ओट में करते है। यह इतनी बेतुकी क्रिया है कि यदि तुम स्वयं अपने को सेक्स क्रिया में रत देखो, तुम फिर इसके बारे में कभी नहीं सोचोगे। इसलिए लोग छुपाते है। वे अपने दरवाजे बंद कर लेत है। दरवाज़ों पर ताले लगा लेते है। विशेष रूप से वे बच्चों से बहुत डरते है। क्योंकि वे इस हास्यास्पद स्थिति को तत्काल देख लेते हे। तुम क्या कर रहे हो। डैडी आप क्या कर रहे थे? क्या आप पागल हो गये है? और यह पागलपन लगता है। जैसे कि मिरगी का दौरा पडा हो।
सेक्स और हंसी के केंद्र दिमाग में बहुत पास-पास है, इसलिए कभी-कभी वे एक दूसरे को ढाँक सकते है। इसलिए जब तुम सेक्स क्रिया में जाते हो, यदि तुम इसे सचमुच होने दो, स्त्री को गुदगुदी होने लगेगी। यह गुदगुदाता है। क्योंकि केंद्र बहुत पास है। शिष्टता वश वह हंसेगी नहीं, क्योंकि पुरूष को बुरा लग सकता है। लेकिन केंद्र बहुत पास है। और कभी-कभी जब तुम गहरी हंसी में होते हो तो आनंद का वैसा ही विस्फोट होगा जैसा सेक्स में होता है।
वह मात्र सांयोगिक नहीं है। कि कई खूबसूरत चुटकुले सेक्स से जुड़े होते है। केंद्र बहुत नजदीक है.....मैं क्या कर सकता हूं?
ओशो
कम, कम, याट अगेन कम
सेक्स के प्रति ज़ेन नजरिया क्या है?
ज़ेन का सेक्स के प्रति कोई नजरिया नहीं है। और यह ज़ेन की खूबसूरती है। यदि तुम्हारा कोई नजरिया होता है इसका मतलब ही होता है कि तुम इस तरह या उस तरह उससे ग्रस्त हो। कोई सेक्स के विरोध में है—उसका एक तरह का नजरिया है; और कोई सेक्स के पक्ष में है—उसका दूसरे तरह का रवैया है। और पक्ष में या विपक्ष में दोनों एक साथ चलते है जैसे कि गाड़ी के दो पहिये। ये शत्रु नहीं है, मित्र है, एक ही व्यवसाय के भागीदार।
ज़ेन का किसी तरह नजरिया नहीं है। सेक्स के प्रति किसी का कोई भी नजरिया क्यों होना चाहिए? यही इसकी खूबसूरती है—ज़ेन पूरी तरह से सहज है। पानी पीने के बारे में तुम्हारा कोई नजरिया है? भोजन करने के बारे में तुम्हारा कोई नजरिया है?राज सोने को लेकर तुम्हारा कोई नजरिया है? कोई नजरिया नहीं है।
मैं जानता हूं कि पागल लोग है जिनका इन चीजों के बारे में भी नजरिया है, कि पाँच घटों से अधिक नहीं सोना भी एक तरह का पाप है, कुछ मानों आवश्यक बुराई, इसलिये किसी को पाँच घंटे से अधिक नहीं सोना चाहिए। या भारत में ऐसे लोग है जो सोचते है कि तीन घंटों से अधिक नहीं सोना चाहिए।
कई सदियों से यह बहुत बड़ी दुर्धटना घटी है। लोग सृजनहीन लोगों को पूजते रहे है। और कभी-कभी विकृत चीजों को। तब सोने के प्रति भी तुम्हारा नजरिया होगा। ऐसे लोग है जिनका भोजन के प्रति नजरिया है। यह खाओ या वह खाओ, इतना खाओ, इससे अधिक नहीं। वे अपने शरीर की नहीं सुनते है, शरीर भूखा है या नहीं। उनका अपना कोई विचार है जो वे प्रकृति पर थोपते है।
ज़ेन का सेक्स के बारे में किसी प्रकार का नजरिया नहीं है। जेन बहुत सामान्य है, ज़ेन मासूम है। ज़ेन बच्चे जैसा है। वह कहाता है कि किसी प्रकार के नज़रिये की जरूरत नहीं है। क्यों? क्या छींकने को लेकर तुम्हारा कोई नजरिया है? छींके या नहीं। यह पाप है या पुण्य। तुम्हारा कोई नजरिया नहीं है। लेकिन मैंने ऐसा व्यक्ति देखा है जो छींकने का विरोधी है। और जब कभी वह छींकता है स्वयं की रक्षा के लिए तत्काल मंत्र जाप करता है। वह एक छोटे से मूर्ख पंथ का हिस्सा था। वह संप्रदाय सोचता है जब तुम छिंकते हो तुम्हारी आत्मा बाहर चली जाती है। छींकने में आत्मा बाहर जाती है, और यदि तुम परमात्मा को याद नहीं करो तो हो सकता है वापस न आये। यदि तुम छींकते हुए मर जाते हो तो तुम नर्क चले जाओगे।
किसी भी चीज के लिए तुम्हारा नजरिया हो सकता है। एक बार तुम्हारा कोई नजरिया होता है, तुम्हारा भोलापन नष्ट हो जाता है। और वे नजरिया तुम्हारा नियंत्रण करने लगते है। ज़ेन न तो किसी चीज के पक्ष में है न ही किसी के विपक्ष में। ज़ेन के अनुसार जो कुछ सामान्य है वह ठीक है। साधारण होना, कुछ नहीं होना, शुन्य होना, बगैर किसी अवधारणा के होना, चरित्र के बगैर, चरित्र विहीन......
जब तुम्हारे पास कोई चरित्र होता है तुम किसी तरह के मनोरोगी होते हो। चरित्र का मतलब है कि कुछ तुम्हारे भीतर पक्का हो चुका है। चरित्र का मतलब है तुम्हारी अतीत। चरित्र का मतलब है संस्कार, परिष्कार। जब तुम्हारा कोई चरित्र होता है तब तुम इसके कैदी हो जाते हो, तुम अब स्वतंत्र नहीं रहे। जब तुम्हारे पास चरित्र होता है तब तुम्हारे आसपास कवच होता है। तुम स्वतंत्र व्यक्ति नहीं रहे। तुम अपना कैद खाना अपने साथ लेकिन चल रहे हो; यह बहुत सूक्ष्म कैद खाना है। सच्चा आदमी चरित्र विहीन होगा।
जब मैं कहता हूं चरित्र विहीन तब इसका क्या मतलब होता है। वह अतीत से मुक्त होगा। वह क्षण में व्यवहार करेगा। क्षण के अनुसार। सिर्फ वही तात्कालिक हो सकता है। वह स्मृति ने नहीं देखा कि अब क्या करना। एक तरह की स्थिति बनी और तुम अपनी स्मृति में देख रहे हो—इसका मतलब है कि तुम्हारे पास चरित्र है। जब तुम्हारे पास कोई चरित्र नहीं होता है तब तुम सिर्फ स्थिति को देखते हो और स्थिति तय करती है कि क्या किया जाना चाहिए। तब यह तात्कालिक होता है तब वहां जवाब होगा न कि प्रतिक्रिया।
ज़ेन के पास किसी बात के लिए कोई विश्वास-प्रक्रिया नहीं है। और इसमे सेक्स भी आ जाता है—ज़ेन इसके बारे में कुछ नहीं कहता है। और यह मूलभूत बात होनी चाहिए। समाज ने दमित मन पैदा किया, जीवन निरोधी मन, आनंद का विरोधी। समाज सेक्स के बहुत अधिक विरोध में है। समाज सेक्स के इतना विरोध में क्यों है। क्योंकि यदि तुम लोगों को सेक्स का मजा लेने दो, तुम उन्हें गुलाम नहीं बना सकते। यह असंभव है—एक आनंदित व्यक्ति गुलाम बनाये जा सकते है। आनंदित व्यक्ति स्वतंत्र व्यक्ति है; उसके पास अपनी आत्म निर्भयता है।
तुम एक आनंदित व्यक्ति को युद्ध के लिए भरती नहीं कर सकते। वे युद्ध के लिए क्यों जायेंगे? लेकिन यदि व्यक्ति ने अपने सेक्स का दामन किया है तो वह युद्ध के लिए तैयार हो जायेगा। वह युद्ध में जाने के लिए तत्पर होगा। क्योंकि उसने जीवन का आनंद नहीं लिया। वह जीवन का आनंद लेने काबिल नहीं रहा, इसलिए वह सृजन के भी काबिल नहीं रहा। अब वह मात्र एक काम कर सकता है—वह विध्वंस कर सकता है। उसकी सारी उर्जा जहर हो गई है।
यदि समाज आनंदित होने के पूरी स्वतंत्रता देता है, तो कोई भी विध्वंसात्मक नहीं होगा। जो लोग सुंदर ढंग से प्यार कर सकते है वे कभी विध्वंसात्मक नहीं हो सकते। और जो लोग सुंदर ढंग से प्रेम कर सकते है और जीवन का आनंद मना सकते हे वे प्रतियोगिक भी नहीं होंगे। सिर्फ प्रेम की मुक्ति इस दुनिया में क्रांति ला सकती है। साम्यवाद असफल हो गया, तानाशाही असफल हो गया। सभी वाद असफल हो गये क्योंकि गहरे में ये सभी सेक्स का दमन करते है। इस मामले में उनके बीच कोई फर्क नहीं है—वाशिंगटन और मॉस्को में कोई मतभेद नहीं है। बीजिंग और दिल्ली में—कोई मतभेद नहीं है। ये सभी एक बात पर सहमत है—सेक्स पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। लोगों को सेक्स में सहज आनंद लेने की अनुमति नहीं देते है।
सामान्यतया समाज सेक्स के विरोध में है, तंत्र मानवता की मदद करने के लिए आया है, मानवता को सेक्स पुन: देने के लिए। और जब सेक्स वापस दिया जायेगा, तब ज़ेन की उत्पती होती है। ज़ेन का कोई नजरिया नहीं है। ज़ेन शुद्ध स्वास्थ्य है।
ओशो
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer
Anand Ji)
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