Tuesday 13 February 2018

मूलाधार से सहस्‍त्रार की ज्‍योति

तंत्र--सूत्र--(भाग--3) --प्रवचन--47

मूलाधार से सहस्‍त्रार की ज्‍योति—यात्रा—(प्रवचन—सैतालीसवां)

सूत्र:
70—अपनी प्राण—शक्‍ति को मेरूदंड में ऊपर उठती,
एक केंद्र से दूसरे केंद्र की और गति करती हुई
प्रकाश—किरण समझों; ओरइस भांति तुममें
जीवंतता का उदय होता है।
      71—या बीच के रिक्‍त स्‍थानों में ये बिजली कौंधने
            जैसा है—ऐसा भाव करो।
      72—भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्‍वत उपस्‍थिति है।

नुष्‍य को तीन रूपों में सोचा जा सकता है—सामान्यअसामान्य और अधिसामान्य। पश्चिमी मनोविज्ञान असामान्य मनुष्य कीरुग्ण मनुष्य की सामान्य सेऔसत से नीचे गिर गए मनुष्य की चिंता लेता है। और पूर्वीय मनोविज्ञान—तंत्र और योग—अधिसामान्य मनुष्य के दृष्टिकोण से मनुष्य पर विचार करता हैउस मनुष्य के दृष्टिकोण से मनुष्य पर विचार करता है जो सामान्य केऔसत के पार चला गया है। दोनों ही असामान्य हैं। जो मनुष्य रुग्ण हैबीमार हैवह असामान्य हैक्योंकि वह स्वस्थ नहीं है। और जो मनुष्य अधिसामान्य है वह भी असामान्य हैक्योंकि वह सामान्य मनुष्य से ज्यादा स्वस्थ है। भेद ऋण और धन का है।
पश्चिमी मनोविज्ञान मनोचिकित्सा के अंग के रूप में विकसित हुआ। फ्रायडकैएडलर तथा दूसरे मनोवैज्ञानिक असामान्य लोगों कीमानसिक रूप से रुग्ण लोगों की चिकित्सा कर रहे थे। इस कारण मनुष्य के प्रति पश्चिम की पूरी दृष्टि भ्रांत हो गई है। फ्रायड बीमार लोगों का अध्ययन कर रहा था। कोई स्वस्थ आदमी क्यों उसके पास जाता! सिर्फ वे लोग उसके पास जाते थे जो मानसिक रूप से रुग्ण थे। उसने उन लोगों का ही अध्ययन कियाऔर इस अध्ययन से उसने सोचा कि मैंने मनुष्य को समझ लिया।
लेकिन बीमार मनुष्य दरअसल पूरी तरह मनुष्य नहीं हैं। वे रुग्ण हैंबीमार हैं। और जो चीज उनके अध्ययन पर आधारित होगी वह निश्चित ही पूरी तरह गलत होगीहानिकारक होगी। यह बात हानिकारक सिद्ध हुईक्योंकि यह मनुष्य को रुग्णता के दृष्टिकोण से देखती है। अगर चित्त की एक विशेष दशा चुनी जाती है और वह दशा रुग्ण हैबीमार हैतो मनुष्य का पूरा चित्र रोग— आधारित हो जाता है।
इसी दृष्टिकोण के कारण सारा पश्चिमी समाज नीचे गिर गयाक्योंकि रुग्ण मनुष्य उसकी नींव बन गया हैविकृत मनुष्य उसका आधार बन गया है। और अगर तुम सिर्फ असामान्य लोगों का अध्ययन करोगे तो तुम अधिसामान्य लोगों के होने की कल्पना भी नहीं कर सकते। बुद्ध फ्रायड के लिए असंभव हैंअकल्पनीय हैं। निश्चित हीफ्रायड के लिए बुद्ध काल्पनिक हैं,पौराणिक हैंवे उसके लिए सत्य नहीं हो सकते। फ्रायड सिर्फ बीमार लोगों के संपर्क में आया; वे लोग सामान्‍य भी नहीं थे। इसलिए वह सामान्‍य लोगों के संबंध में भी जो कहता है वह असामान्य लोगों के अध्ययन पर आधारित है।
यह ऐसा ही है जैसे कि अगर कोई चिकित्सककोई डाक्टर अध्ययन करना चाहे तो वह बीमार लोगों का ही अध्ययन करेगा। कोई स्वस्थ आदमी क्यों उसके पास जाएगाउसकी जरूरत नहीं है। अस्वस्थ लोग ही उसके पास जाएंगे। और इतने अस्वस्थ लोगों का अध्ययन करके वह अपने मन में मनुष्य का जो चित्र निर्मित करेगा वह निश्चित ही मनुष्य का चित्र नहीं हो सकता है। वह मनुष्य का चित्र नहीं हो सकता हैक्योंकि मनुष्य बस रोग ही रोग नहीं है। और अगर तुम मनुष्य की धारणा रोगों पर आधारित बनाओगे तो उसका दुष्परिणाम पूरे समाज को भोगना पड़ेगा।
पूर्वीय मनोविज्ञान के पासविशेषकर तंत्र और योग के पास भी मनुष्य की एक धारणा हैलेकिन वह धारणाअधिसामान्य लोगों केबुद्धपतंजलिशंकरनागार्जुनकबीरनानक जैसे लोगों के अध्ययन पर आधारित है। ये वे लोग हैं जो मनुष्य की क्षमता और संभावना के शिखर पर पहुंचे। इस अध्ययन में निम्नतम का विचार नहीं हैसिर्फ श्रेष्ठतम का विचार है। और जब तुम श्रेष्ठतम का विचार करते हो तो तुम्हारा चित्त एक द्वार बन जाता हैतब तुम जानते हो कि ऊंचाइयां संभव हैंऊंचे शिखर संभव हैं।
अगर तुम निम्नतम का विचार करोगे तो कोई विकास संभव नहीं है। उसमें चुनौती नहीं है। और अगर तुम सामान्य हो तो तुम प्रसन्न अनुभव करते हो। यह काफी है कि तुम विक्षिप्त नहीं होतुम किसी मानसिक अस्पताल में नहीं हो। तुम अपने को ठीक महसूस कर सकते होलेकिन इसमें कोई चुनौती नहीं है।
लेकिन अगर तुम अधिसामान्य की खोज करोगेअगर अपनी श्रेष्ठतम संभावना की अभीप्सा करोगेअगर कोई व्यक्ति उस संभावना को उपलब्ध हो चुका हैतो उस संभावना के लिए द्वार खुलता हैतब तुम विकास कर सकते हो। तुमको एक चुनौती मिलती हैऔर तुम्हें अब अपने से संतुष्ट होने की जरूरत न रही। ऊंचे शिखर संभव हो जाते हैंदिखने लगते हैंऔर तुम्हें पुकारने लगते हैं।
इस बात को अच्छे से समझने की जरूरत हैतो ही तंत्र का मनोविज्ञान समझा जा सकता है। तुम जो कुछ हो वह अंत नहीं हैतुम ठीक मध्य में होबीच में होयहां से तुम नीचे गिर सकते होयहां से तुम ऊपर भी उठ सकते हो। तुम्हारा विकास पूरा नहीं हो गया है। तुम मंजिल पर नहीं होतुम अभी मार्ग में हो। तुम्हारे भीतर कोई चीज सतत विकसित हो रही है। तंत्र विकास की इसी संभावना पर अपनी समस्त साधना—पद्धति को आधारित करता है।
और स्मरण रहेजब तक तुम वही नहीं हो जाते जो हो सकते होतब तक तुम तृप्त नहीं हो सकतेकृतार्थ नहीं हो सकते। तुम्हें वह होना ही है जो तुम हो सकते हो। यह अनिवार्यता है। अन्यथा तुम विषाद में पड़ोगेतुम अर्थहीन अनुभव करोगे;तुम्हें लगेगा कि जीवन व्यर्थ है। तुम किसी तरह जीवन को खींचे जा सकते होलेकिन जीवन में उत्कुल्लता नहीं होगी। और तुम कई अन्य क्षेत्रों में सफल भी हो सकते होलेकिन तुम अपने ही साथ निष्फल हो जाओगे।
और यही हो रहा है। कोई व्यक्ति बहुत धनवान हो जाता है और लोग सोचते हैं कि वह सफल हो गयालेकिन वह खुद ऐसा नहीं सोचता। वह अपनी निष्फलता को जानता है। वह जानता है कि धन तो इकट्ठा हो गया हैलेकिन मैं निष्फल हूं। तुम बड़े आदमी होलीडर होराजनेता हो। सब लोग सोचते है कि तुम सफल हो गएलेकिन तुम हारे हुए हो।
 यह बडी अजीब दुनिया हैयहां तुम अपने को छोड्कर सब की निगाह में सफल हो जाते हो। हर रोज मेरे पास लोग आते हैंवे कहते हैं कि हमारे पास सब कुछ हैलेकिन अब क्यावे असफल लोग हैं। लेकिन उनकी असफलता क्या हैजहां तक बाहर की चीजों का संबंध है वे असफल नहीं हैं। फिर उन्हें यह असफलता क्यों महसूस होती है?
उनकी आंतरिक संभावना संभावना ही रह गईउनका आतंरिक बीज बीज ही रह गया। उनका फूल नहीं खिला। वे वहां नहीं पहुंच सके जिसे मैसलो सेल्फ—एक्चुअलाइजेशन कहता है। वे असफल हैंभीतर से असफल हैं। और अंततः उसका कोई अर्थ नहीं है जो दूसरे समझते हैंतुम खुद जो समझते हो वही सार्थक है।
अगर तुम समझते हो कि मैं असफल हूं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि दूसरे तुम्हें नेपोलियन या सिकंदर महान समझते हों। बल्कि उससे तुम्हारा विषाद बढ़ता ही है। सब लोग समझते हैं कि तुम सफल होऔर अब तुम यह नहीं कह सकते कि मैं सफल नहीं हूं। लेकिन तुम जानते हो कि मैं सफल नहीं हूं तुम अपने को धोखा नहीं दे सकते। जहां तक आत्मोपलब्धि का सवाल हैतुम अपने को धोखा नहीं दे सकते। देर—अबेर तुम्हें स्वयं से मिलना होगा और स्वयं में गहरे झांकना होगा कि क्या हुआ। जीवन व्यर्थ चला गया। एक अवसर तुमने गंवा दियाव्यर्थ की चीजें बटोरने में गंवा दिया।
आत्मोपलब्धि तुम्हारे विकास का उच्चतम शिखर हैजहां तुम्हें गहन परितोष का अनुभव होता हैजहां तुम कह सकते हो कि यह है मेरी नियति जिसके लिए मैं पैदा हुआ थाजिसके लिए मैं यहां पृथ्वी पर हूं। तंत्र उसी आत्मोपलब्धि की फिक्र करता है कि कैसे तुम्हें विकसित होने में सहयोग दे।
और स्मरण रहेतंत्र को तुम्हारी फिक्र हैउसे आदर्शों से कुछ लेना—देना नहीं है। तंत्र आदर्शों की फिक्र नहीं करता है;वह तुम्हारी फिक्र करता है। तुम जो हो और जो हो सकते हो तंत्र उसकी फिक्र करता है। और यह बहुत बड़ा फर्क है।
अन्य सभी देशनाएंदूसरे सभी शास्त्र आदर्शों की फिक्र करते हैं। वे कहते हैं कि बुद्ध बनोजीसस बनोयह बनोवह बनो। उनके आदर्श हैंऔर तुम्हें उन आदर्शों के अनुरूप बनना है। तंत्र तुम्हें कोई आदर्श नहीं देता है। तुम्हारा अज्ञात आदर्श तुम्हारे भीतर ही छिपा हैवह तुम्हें दिया नहीं जा सकता। तुम्हें बुद्ध नहीं बनना हैउसकी कोई जरूरत नहीं है। एक बुद्ध काफी हैंपुनरुक्ति का कोई मूल्य नहीं है।
अस्तित्व सदा अनूठा हैवह अपने को कभी नहीं दोहराता है। दोहराना ऊब पैदा करता है। अस्तित्व सदा नया है,नितनूतन हैशाश्वत रूप से नया है। वह बुद्ध को भी दोबारा नहीं पैदा करता हैबुद्ध जैसी सुंदर घटना को भी नहीं दोहराता है।
क्योंक्योंकि बुद्ध भी यदि दोहराए जाएं तो ऊब ही पैदा करेंगे। और फिर उपयोग क्या हैमौलिक का हीअनूठे का ही मूल्य हैनकल का कोई मूल्य नहीं है। अगर तुम मौलिक हो सकोस्वयं हो सकोतो ही तुम्हारी नियति पूरी होगी। यदि तुम नकल होकिसी की अनुकृति होतो तुम चूक गए।
तो तंत्र यह कभी नहीं कहता कि इसके जैसे बनो या उसके जैसे बनोकोई आदर्श नहीं है। तंत्र कभी आदर्शों की बात नहीं करता हैइसीलिए तो इसका नाम तंत्र है। तंत्र विधियों की चर्चा करता हैवह कभी आदर्शों की बात नहीं करता। वह समझाता है कि तुम कैसे हो सकते होयह नहीं कि तुम्हें क्या होना है। उस 'कैसेके कारण ही तंत्र का अस्तित्व हैतंत्र शब्द का अर्थ ही विधि हैउपाय है। तुम कैसे हो सकते होतंत्र इसकी फिक्र करता हैतुम क्या हो सकते होतंत्र इसकी फिक्र नहीं करता।
वह जो 'क्याहै वह तुम्हारे विकास से पैदा होगातुम्हारी वृद्धि से आएगा। तुम सिर्फ विधि का प्रयोग करोऔर धीरे— धीरे तुम्हारी आंतरिक संभावना वास्तविक होती जाएगी। तब वह अज्ञातअप्रकट संभावना प्रकट हो जाएगी। और जैसे—जैसे वह प्रकट होगीतुम्हें बोध होगा कि वह क्या है। और कोई नहीं कह सकता कि वह क्या हैजब तक तुम वह हो ही नहीं जातेकोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि तुम क्या हो सकते हो।
तो तंत्र केवल विधियां देता हैवह कभी आदर्श नहीं देता। और यहीं वह सभी नैतिक शिक्षाओं से भिन्न है। नैतिकशिक्षाएं सदा आदर्श देती हैं। अगर वे विधियों की बात भी करती हैं तो वे विधियां सदा किसी आदर्श विशेष के लिए होती हैं। तंत्र तुम्हें कोई आदर्श नहीं देतातुम स्वयं आदर्श हो। और तुम्हारा भविष्य अज्ञात है। अतीत से मिला कोई भी आदर्श काम का नहीं हैक्योंकि कुछ भी पुनरुक्त नहीं हो सकता। और अगर पुनरुक्त होता है तो वह व्यर्थ है। झेन संत कहते हैं कि स्मरण रखो और सजग रहो। अगर तुम्हें ध्यान में बुद्ध मिल जाएं तो तुरंत उनकी हत्या कर दोउन्हें वहां टिकने ही मत दो। झेन संत बुद्ध के अनुयायी हैंतो भी वे कहते हैं कि यदि बुद्ध ध्यान में मिल जाएं तो उन्हें तुरंत समाप्त कर देना। क्योंकि बुद्ध का व्यक्तित्वबुद्ध का आदर्श इतना सम्मोहक हो सकता है कि तुम स्वयं को भूल जा सकते हो। और अगर तुम स्वयं को भूल गए तो तुम मार्ग से च्युत हो गए।
बुद्ध आदर्श नहीं हैंतुम स्वयं आदर्श होतुम्हारा अज्ञात भविष्य आदर्श है। उसे ही आविष्कृत करना है। तंत्र उसे आविष्कृत करने की विधि देता है। खजाना तुम्हारे भीतर ही है। तो यह दूसरी बात स्मरण रखो। यह मानना बहुत कठिन है कि तुम स्वयं आदर्श हो। मानना कठिन इसलिए है क्योंकि हरेक आदमी तुम्हारी निंदा कर रहा है। कोई व्यक्ति तुम्हें स्वीकार नहीं करता हैतुम खुद भी तो अपने को स्वीकार नहीं करते हो। तुम सतत अपनी निंदा करते रहते हो। तुम सदा किसी दूसरे जैसे होने की भाषा में सोचते रहते होऔर यह गलत हैखतरनाक है। अगर तुम इस तरह सोचते रहोगे तो तुम नकली हो जाओगे,तुम्हारा सब कुछ झूठा हो जाएगा।
अंग्रेजी में नकली के लिए एक शब्द है : फोनी। क्या तुम जानते हो कि यह फोनी शब्द कहां से आता हैयह टेलीफोन से आता है। टेलीफोन के आरंभिक दिनों में संप्रेषण में आवाज इतनी बदल जाती थी कि टेलीफोन से असली आवाज और एक नकली आवाजदोनों सुनाई पड़ती थीं। नकली आवाज वह थी जो यांत्रिक थी। असली आवाज तो उन शुरू के दिनों म् में न के बराबर सुनाई पड़ती थी। उससे ही नकली के लिए अंग्रेजी में फोनी शब्द आया।
अगर तुम किसी का अनुकरण कर रहे हो तो तुम फोनी हो जाओगेनकली हो जाओगेतुम सच्चे नहीं रहोगे। तुम्हें चारों ओर से एक यांत्रिकता घेरे रहेगीऔर उसमें तुम्हारी अपनी आवाजतुम्हारा यथार्थतुम्हारा सत्यसब खो जाएगा। तो नकली मत बनोप्रामाणिक बनोसच्चे बनो।
 तंत्र को तुम पर भरोसा है। यही कारण है कि तंत्र को मानने वाले इतने थोड़े हैं। कोई व्यक्ति अपने पर भरोसा नहीं करता है। तंत्र तुम पर श्रद्धा करता हैऔर कहता है कि तुम स्वयं आदर्श हो। इसलिए किसी का अनुकरण मत करोअनुकरण तुम्हारे चारों ओर एक झूठा व्यक्तित्व निर्मित कर देगा। और तुम उस झूठे व्यक्तित्व को यह सोचकर ढोए जाओगे कि वह तुम्हारा अपना व्यक्तित्व है। लेकिन वह तुम्हारा व्यक्तित्व नहीं है।
तो दूसरी बात स्मरण रखने की यह है कि तुम्हारा कोई निश्चितनियत आदर्श नहीं है। तुम भविष्य की भाषा में नहीं सोच सकतेकेवल वर्तमान की भाषा में सोच सकते हो—प्रत्यक्ष भविष्य की भाषा में ही सोच सकते हो। उसमें ही विकास संभव है।
कोई नियत भविष्य नहीं है। और यह अच्छा है कि भविष्य नियत नहीं है। अन्यथा स्वतंत्रता संभव नहीं होतीअगर भविष्य नियत है तो आदमी रोबोट हो जाएगायंत्र—मानव हो जाएगा। तुम्हारा भविष्य नियत नहीं हैतुम्हारी संभावनाएं अनंत हैं। तुम अनेक आयामों में विकास कर सकते हो। लेकिन जो चीज तुम्हें परम परितोष देगीवह यह है कि तुम विकास करो। और यह विकास इस ढंग से हो कि प्रत्येक विकास और—और विकास का द्वार बने।
विधियां सहयोगी हैंक्योंकि वे वैज्ञानिक हैं। तुम व्यर्थ के भटकाव से बच जाओगेतुम्हें बेकार ही इधर—उधर टटोलना नहीं पड़ेगा। अगर तुम किसी विधि का उपयोग नहीं करते हो तो तुम्हें अनेक जन्म लग जाएंगे। तुम मंजिल पर तो पहुंच जाओगेक्योंकि तुम्हारे अंदर की जीवन—ऊर्जा तब तक गति करती रहेगी जहां से आगे गति करना संभव नहीं होगा। जीवन—ऊर्जा अपने अंतिम बिंदु तकउच्चतम शिखर तक यात्रा करती रहेगी। यही कारण है कि व्यक्ति को बार—बार जन्म लेना पड़ता है। अपने आप भी तुम पहुंच सकते होलेकिन तुम्हें बहुत—बहुत लंबी यात्रा करनी होगीऔर वह यात्रा बहुत नीरस और उबाने वाली होगी।
किसी सदगुरु के साथवैज्ञानिक विधियों के साथ तुम बहुत समयअवसर और ऊर्जा की बचत कर सकते हो। और कभी—कभी तो तुम क्षणों में इतना विकास कर सकते हो जितना जन्मों—जन्मों में भी संभव नहीं होगा। अगर सम्यक विधि प्रयोग की जाए तो विकास का विस्फोट घटित होता है।
और ये विधियां लाखों वर्ष तक प्रयोग में लाई गई हैं। ये किसी एक व्यक्ति की ईजाद नहीं हैंअनेक—अनेक साधकों ने इनके आविष्कार में योगदान दिया है। और यहां इनका सार—सूत्र ही दिया गया है। इन एक सौ बारह विधियों में दुनियाभर की सारी विधियां सम्मिलित हैंकहीं कोई ऐसी विधि नहीं है जो इन एक सौ बारह विधियों में नहीं हैजो इन एक सौ बारह विधियों में नहीं समाविष्ट की गई है। ये विधियां समस्त आध्यात्मिक खोज का नवनीत हैं।
लेकिन सभी विधियां सभी के लिए नहीं हैं। तो तुम्हें उनका प्रयोग करके देखना होगा। कोई—कोई विधि ही तुम्हारे काम की होगीऔर तुम्हें उसे खोजना होगा। दो उपाय हैं। एक कि स्वयं के प्रयोग और भूल के द्वारा कोई विधि तुम्हारे हाथ लग जाए जो काम करने लगे और
तुम विकास करने लगो। फिर तुम उसे जारी रख सकते हो। दूसरा उपाय है कि तुम किसी गुरु के प्रति समर्पित हो जाओ और वह तुम्हारे योग्य विधि चुन दे। ये दो रास्ते हैंऔर चुनाव तुम पर निर्भर है। अब विधियों को लें।

 पहली विधि :

अपनी प्राण— शक्ति को मेरुदंड में ऊपर उठती एक केंद्र से दूसरे केंद्र की ओर गति करती हुई प्रकाश— किरण समझो;और इस भांति तुममें जीवंतता का उदय होता है।

योग के अनेक साधनअनेक उपाय इस विधि पर आधारित हैं। पहले समझो कि यह क्या हैऔर फिर इसके प्रयोग को लेंगे।
मेरुदंडरीढ़ तुम्हारे शरीर और मस्तिष्क दोनों का आधार है। तुम्हारा मस्तिष्कतुम्हारा सिर तुम्हारे मेरुदंड का ही अंतिम छोर है। मेरुदंड पूरे शरीर की आधारशिला है। अगर मेरुदंड युवा है तो तुम युवा हो। और अगर मेरुदंड बूढ़ा है तो तुम बूढ़े हो। अगर तुम अपने मेरुदंड को युवा रख सको तो बूढ़ा होना कठिन होगा। सब कुछ इस मेरुदंड पर निर्भर है। अगर तुम्हारा मेरुदंड जीवंत है तो तुम्हारे मन—मस्तिष्क में मेधा होगीचमक होगी। और अगर तुम्हारा मेरुदंड जड़ और मृत है तो तुम्हारा मन भी बहुत जड़ होगा। समस्त योग अनेक ढंगों से तुम्हारे मेरुदंड को जीवंतयुवाताजा और प्रकाशपूर्ण बनाने की चेष्टा करता है।
मेरुदंड के दो छोर हैं। उसके आरंभ में काम—केंद्र है और उसके शिखर पर सहस्रार है—सिर के ऊपर जो सातवां चक्र है। मेरुदंड का जो आरंभ है वह पृथ्वी से जुड़ा हैकामवासना तुम्हारे भीतर सर्वाधिक पार्थिव चीज है। तुम्हारे मेरुदंड के आरंभिक चक्र के द्वारा तुम निसर्ग के संपर्क में आते होजिसे सांख्य प्रकृति कहता है—पृथ्वीपदार्थ। और अंतिम चक्र सेसहस्रार से तुम परमात्मा के संपर्क में होते हो।
तुम्हारे अस्तित्व के ये दो ध्रुव हैं। पहला काम—केंद्र हैऔर दूसरा सहस्रार है। अंग्रेजी में सहस्रार के लिए कोई शब्द नहीं है। ये ही दो ध्रुव हैं। तुम्हारा जीवन या तो कामोन्यूख होगा या सहस्रारोन्यूख होगा। या तो तुम्हारी ऊर्जा काम—केंद्र से बहकर पृथ्वी में वापस जाएगीया तुम्हारी ऊर्जा सहस्रार से निकलकर अनंत आकाश में समा जाएगी। तुम सहस्रार से ब्रह्म मेंपरम सत्ता में प्रवाहित हो जाते हो। तुम काम—केंद्र से पदार्थ जगत में प्रवाहित होते हो। ये दो प्रवाह हैंये दो संभावनाएं हैं।
जब तक तुम ऊपर की ओर विकसित नहीं होतेतुम्हारे दुख कभी समाप्त नहीं होंगे। तुम्हें सुख की झलकें मिल सकती हैं;लेकिन वे झलकें ही होंगीऔर बहुत भ्रामक होंगी। जब ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होगीतुम्हें सुख की अधिकाधिक सच्ची झलकें मिलने लगेंगी। और जब ऊर्जा सहस्रार पर पहुंचेगीतुम परम आनंद को उपलब्ध हो जाओगे। वही निर्वाण है। तब झलक नहीं मिलती,तुम आनंद ही हो जाते हो।
योग और तंत्र की पूरी चेष्टा यह है कि कैसे ऊर्जा को मेरुदंड के द्वारारीढ़ के द्वारा ऊर्ध्वगामी बनाया जाएकैसे उसे गुरुत्वाकर्षण के विपरीत गतिमान किया जाए। काम या सेक्स आसान हैक्योंकि वह गुरुत्वाकर्षण के विपरीत नहीं है। पृथ्वी सब चीजों को अपनी तरफ नीचे खींच रही हैतुम्हारी काम—ऊर्जा को भी पृथ्वी नीचे खींच रही है। तुमने शायद यह
नहीं सुना होलेकिन अंतरिक्ष यात्रियों ने यह अनुभव किया है कि जैसे ही वे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बाहर निकल जाते हैं,उनकी कामुकता बहुत क्षीण हो जाती है। जैसे—जैसे शरीर का वजन कम होता हैकामुकता विलीन हो जाती है।
पृथ्वी तुम्हारी जीवन—ऊर्जा को नीचे की तरफ खींचती हैऔर यह स्वाभाविक है। क्योंकि जीवन—ऊर्जा पृथ्वी से आती है। तुम भोजन लेते होऔर उससे तुम अपने भीतर जीवन—ऊर्जा निर्मित कर रहे हो। यह ऊर्जा पृथ्वी से आती हैऔर पृथ्वी उसे वापस खींचती रहती है। प्रत्येक चीज अपने मूलस्रोत को लौट जाती है। और अगर यह ऐसे ही चलता रहाजीवन—ऊर्जा फिर—फिर पीछे लौटती रही और तुम वर्तुल में घूमते रहेतो तुम जन्मों—जन्मों तक ऐसे ही घूमते रहोगे। तुम इस ढंग से अनंत काल तक चलते रह सकते होयदि तुम अंतरिक्ष यात्रियों की तरह छलांग नहीं लेते। अंतरिक्ष यात्रियों की तरह तुम्हें छलांग लेनी है और वर्तुल के पार निकल जाना है। तब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का पैटर्न टूट जाता है। यह तोड़ा जा सकता है।
यह कैसे तोड़ा जा सकता हैये उसकी ही विधियां हैं। ये विधियां इस बात की फिक्र करती हैं कि कैसे ऊर्जा ऊर्ध्व गति करेनये केंद्रों तक पहुंचेकैसे तुम्हारे भीतर नई ऊर्जा का आविर्भाव हो और कैसे प्रत्येक गति के साथ वह तुम्हें नया आदमी बना दे। और जिस क्षण तुम्हारे सहस्रार सेकामवासना के विपरीत ध्रुव से तुम्हारी ऊर्जा मुक्त होती हैतुम आदमी नहीं रह गए;तब तुम इस धरती के न रहेतब तुम भगवान हो गए।
जब हम कहते हैं कि कृष्ण या बुद्ध भगवान हैं तो उसका यही अर्थ है। उनके शरीर तो तुम्हारे जैसे ही हैंउनके शरीर भी रुग्ण होंगे और मरेंगे। उनके शरीरों में सब कुछ वैसा ही होता है जैसे तुम्हारे शरीरों में होता है। सिर्फ एक चीज उनके शरीरों में नहीं होती जो तुममें होती हैउनकी ऊर्जा ने गुरुत्वाकर्षण के पैटर्न को तोड़ दिया है। लेकिन वह तुम नहीं देख सकतेवह तुम्हारी आंखों के लिए दृश्य नहीं है।
लेकिन कभी—कभी जब तुम किसी बुद्ध की सन्निधि में बैठते हो तो तुम यह अनुभव कर सकते हो। अचानक तुम्हारे भीतर ऊर्जा का ज्वार उठने लगता है और तुम्हारी ऊर्जा ऊपर की तरफ यात्रा करने लगती है। तभी तुम जानते हो कि कुछ घटित हुआ है। केवल बुद्ध के सत्संग में ही तुम्हारी ऊर्जा सहस्रार की तरफ गति करने लगती है। बुद्ध इतने शक्तिशाली हैं कि पृथ्वी की शक्ति भी उनसे कम पड़ जाती है। उस समय पृथ्वी की ऊर्जा तुम्हारी ऊर्जा को नीचे की तरफ नहीं खींच पाती है। जिन लोगों ने जीससबुद्ध या कृष्ण की सन्निधि में इसका अनुभव लिया हैउन्होंने ही उन्हें भगवान कहा है। उनके पास ऊर्जा का एक भिन्न स्रोत है जो पृथ्वी से भी शक्तिशाली है।
इस पैटर्न को कैसे तोड़ा जा सकता हैयह विधि पैटर्न तोड्ने में बहुत सहयोगी है। लेकिन पहले कुछ बुनियादी बातें खयाल में ले लो।
पहली बात कि अगर तुमने निरीक्षण किया होगा तो तुमने देखा होगा कि तुम्हारी काम—ऊर्जा कल्पना के साथ गति करती है। सिर्फ कल्पना के द्वारा भी तुम्हारी काम—ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। सच तो यह है कि कल्पना के बिना वह सक्रिय नहीं हो सकती है। यही कारण है कि जब तुम किसी के प्रेम में होते हो तो काम—ऊर्जा बेहतर काम —करती है। क्योंकि प्रेम के साथ कल्पना प्रवेश कर जाती है। अगर तुम प्रेम में नहीं हो तो वह बहुत कठिन हैवह काम नहीं करेगी।
इसीलिए पुराने दिनों में पुरुष—वेश्याएं नहीं होती थींसिर्फ स्त्री—वेश्याएं होती थीं। पुरुष—वेश्या के लिए काम के तल पर सक्रिय होना कठिन हैअगर वह प्रेम में नहीं है। और सिर्फ पैसे के लिए वह प्रेम कैसे कर सकता हैतुम किसी पुरुष को तुम्हारे साथ संभोग में उतरने के लिए पैसे दे सकती होलेकिन अगर उसे तुम्हारे प्रति भाव नहीं हैकल्पना नहीं हैतो वह सक्रिय नहीं हो सकता। स्त्रियां यह कर सकती हैंक्योंकि उनकी कामवासना निष्‍क्रिय है। सच तो यह है कि उनके सक्रिय होने की जरूरत नहीं है। वे बिलकुल अनासक्त रह सकती हैंसंभव है कि उन्हें कोई भी भाव न हो। उनके शरीर लाशों की भांति पड़े रह सकते हैं। वेश्या के साथ तुम एक जीवित शरीर के साथ नहींएक मृत लाश के साथ संभोग करते हो। स्त्रियां आसानी से वेश्या हो सकती हैंक्योंकि उनकी काम—ऊर्जा निष्‍क्रिय है।
तो काम—केंद्र कल्पना से काम करता है। इसीलिए स्‍वप्‍नों में तुम्हें इरेक्‍शन हो सकता हैऔर वीर्यपात भी हो सकता है। वहां कुछ भी वास्तविक नहीं हैसब कल्पना का खेल है। फिर भी देखा गया है कि प्रत्येक पुरुष कोअगर वह स्वस्थ हैरात में कम से कम दस दफा इरेक्‍शन होता है। मन की जरा सी गति के साथकाम का जरा—सा विचार उठने से ही इरेक्‍शन हो जाएगा।
तुम्हारे मन की अनेक शक्तियां हैंअनेक क्षमताएं हैंऔर उनमें से एक है संकल्प। लेकिन तुम संकल्प से काम—कृत्य में नहीं उतर सकतेकाम के लिए संकल्प नपुंसक है। अगर तुम संकल्प से किसी के साथ संभोग में उतरने की चेष्टा करोगे तो तुम्हें लगेगा कि तुम नपुंसक हो गए। कभी चेष्टा मत करो। कामवासना में संकल्प नहींकल्पना काम करती है। कल्पना करो,और तुम्हारा काम—केंद्र सक्रिय हो जाएगा।
लेकिन मैं क्यों इस तथ्य पर इतना जोर दे रहा हूंक्योंकि यदि कल्पना ऊर्जा को गतिमान करने में सहयोगी हैतो तुम सिर्फ कल्पना के द्वारा उसे चाहो तो ऊपर ले जा सकते हो और चाहो तो नीचे ले जा सकते हो। तुम अपने खून को कल्पना से गतिमान नहीं कर सकतेतुम शरीर में और कुछ कल्पना से नहीं कर सकते। लेकिन काम—ऊर्जा कल्पना से गतिमान की जा सकती हैतुम उसकी दिशा बदल सकते हो।
यह सूत्र कहता है : 'अपनी प्राण—शक्ति को प्रकाश—किरण समझो।’ स्वयं कोअपने होने को प्रकाश—किरण समझो।मेरुदंड में ऊपर उठती हुईएक केंद्र से दूसरे केंद्र की ओर गति करती हुई।’ रीढ़ में ऊपर उठती हुई।और इस भांति तुममें जीवंतता का उदय होता है।
योग ने तुम्हारे मेरुदंड को सात चक्रों में बांटा है। पहला काम—केंद्र है और अंतिम सहस्रार हैऔर इन दोनों के बीच पांच केंद्र हैं। कोई—कोई साधना—पद्धति मेरुदंड को नौ केंद्रों में बांटती हैकोई तीन में ही और कोई चार में। यह विभाजन बहुत अर्थ नहीं रखता हैतुम अपना विभाजन भी निर्मित कर सकते हो। प्रयोग के लिए पांच केंद्र पर्याप्त हैं। पहला काम—केंद्र हैदूसरा ठीक नाभि के पीछे हैतीसरा हृदय के पीछे हैचौथा केंद्र तुम्हारी दोनों भौंहों के बीच में है—ठीक ललाट के बीच मेंऔर अंतिम केंद्र सहस्रार तुम्हारे सिर के शिखर पर है। ये पांच पर्याप्त हैं।
यह सूत्र कहता है 'अपने को समझो, ' उसका अर्थ है कि भाव करोकल्पना करो। आंखें बंद कर लो और भाव करो कि मैं बस प्रकाश हूं। यह मात्र भाव या कल्पना नहीं है। शुरू—शुरू में तो कल्पना ही हैलेकिन यथार्थ में भी ऐसा ही है। क्योंकि हरेक चीज प्रकाश से बनी है। अब विज्ञान कहता है कि सब कुछ विद्युत है। तंत्र ने तो सदा से कहा है कि सब कुछ प्रकाश—कणों से बना तुम भी प्रकाश—कणों से ही बने हो। इसीलिए कुरान कहता है कि परमात्मा प्रकाश है। तुम प्रकाश हो!
तो पहले भाव करो कि मैं बस प्रकाश—किरण हूं और फिर अपनी कल्पना को काम—केंद्र के पास ले जाओ। अपने अवधान को वहां एकाग्र करो और भाव करो कि प्रकाश—किरणें काम—केंद्र से ऊपर उठ रही हैंमानो काम—केंद्र प्रकाश का स्रोत बन गया है और प्रकाश—किरणें वहा से नाभि—केंद्र की ओर ऊपर उठ रही हैं।
विभाजन इसीलिए जरूरी हैक्योंकि तुम्हारे लिए काम—केंद्र को सीधे सहस्रार से जोडना कठिन होगा। छोटे—छोटे विभाजन इसीलिए उपयोगी हैंयदि तुम सीधे सहस्रार से जुड़ सको तो किसी विभाजन की जरूरत नहीं है। तुम काम—केंद्र के ऊपर के सभी विभाजन गिरा दे सकते होऔर ऊर्जाजीवन—शक्ति प्रकाश की भांति सीधे सहस्रार की ओर उठने लगेगी।
लेकिन विभाजन ज्यादा सहयोगी होंगेक्योंकि तुम्हारा मन छोटे—छोटे खंडों की धारणा ज्यादा आसानी से निर्मित कर सकता है। तो भाव करो कि ऊर्जाप्रकाश—किरणें तुम्हारे काम—केंद्र से उठकर प्रकाश की नदी की भांति नाभि—केंद्र की ओर प्रवाहित हो रही हैं। तत्काल तुम अपने भीतर ऊपर उठती हुई ऊष्मा अनुभव करोगेशीघ्र ही तुम्हारी नाभि गर्म हो उठेगी। तुम उस गरमाहट को अनुभव कर सकते होदूसरे भी उस गरमाहट को अनुभव कर सकते हैं। तुम्हारे भाव के द्वारा तुम्हारी काम—ऊर्जा ऊर्ध्वगामी हो जाएगीऊपर को उठने लगेगी।
जब तुम अनुभव करो कि अब नाभि पर स्थित दूसरा केंद्र प्रकाश का स्रोत बन गया हैकि प्रकाश—किरणें वहां आकर इकट्ठी होने लगी हैंतब हृदय—केंद्र की ओर गति करोऔर ऊपर बढ़ो। और जैसे—जैसे प्रकाश हृदय—केंद्र पर पहुंचेगाजैसे—जैसे उसकी किरणें वहा इकट्ठी होने लगेंगीवैसे—वैसे तुम्हारे हृदय की धड़कन बदल जाएगीतुम्हारी श्वास गहरी होने लगेगी,और तुम्हारे हृदय में गरमाहट पहुंचने लगेगी। तब उससे भी और आगेऔर ऊपर बढ़ो
'अपनी प्राण—शक्ति को मेरुदंड में ऊपर उठतीएक केंद्र से दूसरे केंद्र की ओर गति करती हुई प्रकाश—किरण समझोऔर इस भांति तुममें जीवंतता का उदय होता है।
और जैसे—जैसे तुम्हें गरमाहट अनुभव होगीवैसे—वैसे हीउसके साथ—साथ हीतुम्हारे भीतर एक जीवंतता का उन्मेष होगाएक आंतरिक प्रकाश का उदय होगा।
काम—ऊर्जा के दो हिस्से हैं एक हिस्सा शारीरिक है और दूसरा मानसिक है। तुम्हारे शरीर में हरेक चीज के दो हिस्से हैं। तुम्हारे शरीर और मन की भांति ही तुम्हारे भीतर प्रत्येक चीज के दो हिस्से हैं : एक भौतिक है और दूसरा अभौतिक। काम—ऊर्जा के भी दो हिस्से हैं। वीर्य उसका भौतिक हिस्सा है। वीर्य ऊपर नहीं उठ सकताउसके लिए मार्ग नहीं है। इसीलिए पश्चिम के अनेक शरीर—शास्त्री कहते हैं कि तंत्र और योग की साधना बकवास हैवे उन्हें इनकार ही करते हैं। काम—ऊर्जा ऊपर की ओर कैसे उठ सकती हैउसके लिए कोई मार्ग नहीं हैऔर वह ऊपर नहीं उठ सकती।
वै शरीर—शास्त्री सही हैंऔर फिर भी गलत हैं। काम—ऊर्जा का जो भौतिक हिस्सा है, वह जो वीर्य हैवह ऊपर उठ सकतालेकिन वहीं सब कुछ। सच तो यह है कि वीर्य काम—ऊर्जा का शरीर भर हैवह स्वयं काम—ऊर्जा नहीं है। काम—ऊर्जा तो उसका अभौतिक हिस्सा हैऔर यह अभौतिक तत्व ऊपर उठ सकता है। और उसी अभौतिक ऊर्जा के लिए मेरुदंड मार्ग का काम करता हैमेरुदंड और उसके चक्र मार्ग का काम करते हैं। लेकिन उसको तो अनुभव से जानना होगाऔर तुम्हारी संवेदनशीलता मर गई है।
मुझे स्मरण आता है कि किसी मनोचिकित्सक ने अपने एक रोगी के संबंध मेंएक स्त्री के संबंध में एक संस्मरण लिखा है। वह उससे कह रहा था कि कुछ भाव करोकुछ अनुभव करो। लेकिन मनोचिकित्सक को लगा कि वह जो भी करती थीवह उसकी अनुभूति नहींविचार भर करती थी। वह अनुभूति के संबंध में विचार करती थीजो कि सर्वथा भिन्न बात है। तो उस चिकित्सक ने अपना हाथ स्त्री के हाथ पर रखा और कहा कि अपनी आंखें बंद करो और बताओ कि तुम क्या अनुभव कर रही हो?
उस स्त्री ने तुरंत कहा कि मैं तुम्हारा हाथ अनुभव कर रही हूं। लेकिन चिकित्सक ने कहा कि यह तुम्हारा अनुभव नहीं है,यह सिर्फ तुम्हारा विचार हैतुम्हारा अनुमान है। मैंने तुम्हारे हाथ में अपना हाथ रखाऔर तुम कहती हो कि मैं तुम्हारा हाथ अनुभव कर रही हूं। लेकिन तुम अनुभव नहीं कर रही होयह तुम्हारा अनुमान मात्र है। बताओ कि तुम क्या अनुभव कर रही हो?
तो उस स्त्री ने कहा कि मैं तुम्हारी अंगुलियां अनुभव कर रही हूं। लेकिन चिकित्सक ने फिर कहा कि यह भी तुम्हारा अनुभव नहींअनुमान ही है। अनुमान मत करोआंखें बंद करो और वहां जाओ जहां मेरा हाथ है और फिर मुझे बताओ कि क्या अनुभव कर रही हो। तब उस स्त्री ने कहा : 'ओहमैं तो पूरी बात ही चूक रही थीमैं थोड़ा दबाव और गरमाहट अनुभव कर रही हूं।
जब कोई हाथ तुम्हें स्पर्श करता है तो हाथ नहींदबाव और गरमाहट अनुभव होती है। हाथ तो अनुमान भर हैवह बुद्धि हैभाव नहीं। गरमाहट और दबाव अनुभूतियां हैं। अब यह स्त्री अनुभव कर रही थी।
हमने अनुभूति बिलकुल खो दी हैतुम्हें फिर से उसे विकसित करना होगा। केवल तभी इन विधियों को प्रयोग में ला सकते हो। अन्यथा ये विधियां काम नहीं करेंगी। तुम केवल बुद्धि से सोचोगे कि मैं अनुभव करता हूं और कुछ भी घटित नहीं होगा। यही कारण है कि लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि आप तो कहते हैं कि यह विधि बहुत महत्वपूर्ण हैलेकिन कुछ भी घटित नहीं होता है।
उन्होंने प्रयोग तो कियालेकिन वे एक आयाम चूक गएवे अनुभव का आयाम चूक गए। तो तुम्हें पहले इस आयाम को विकसित करना होगा। और उसके कुछ उपाय हैं जिन्हें तुम प्रयोग में ला सकते हो।
तुम एक काम करोअगर तुम्हारे घर में कोई छोटा बच्चा है तो प्रतिदिन एक घंटा उस बच्चे के पीछे —पीछे चलो। बुद्ध के पीछे चलने से उसके पीछे चलना बेहतर और कहीं ज्यादा तृप्तिदायी हो सकता है। बच्चे को अपने चारों हाथ—पांव पर चलने को कहोघुटनों के बल चलने को कहोऔर तुम भी उसी तरह अपने चारों हाथ—पांव पर चलो। बच्चे के पीछे—पाछॅ तुम भी चलो।
और पहली बार तुम्हें अपने में एक नवजीवन का उन्मेष होगा। तुम फिर बच्चे हो जाओगे। बच्चे को देखोऔर उसके पीछे—पीछे चलो। बच्चा घर के कोने—कोने में जाएगा वह घर की हरेक चीज को स्पर्श करेगा। न केवल स्पर्श करेगावह एक—एक चीज का स्वाद लेगावह एक—एक चीज को सूंघेगा। तुम बस उसका अनुकरण करोवह जो भी करे तुम भी वही करो।
कभी तुम भी बच्चे थेतुम भी कभी यह सब कर चुके हो। बच्चा अनुभूति की अवस्था में हैवह सोच—विचार नहीं कर रहा है। उसे सुगंध आती है और वह उस कोने की तरफ बढ जाता है जहां से सुगंध आ रही है। उसे एक सेव दिखाई पड़ता है,और वह उसे उठाकर खाने लगता है। तुम भी ठीक बच्चे की तरह स्वाद लो। जब बच्चा सेव खा रहा है तो उसे गौर से देखोवह उसे खाने में पूरी तरह डूबा हुआ है। उसके लिए सारा संसार खो गया हैसिर्फ सेव बचा है। यहां तक कि सेव भी नहीं है और न बच्चा हैसिर्फ खाना है।
तो एक घंटे तक बच्चे का अनुकरण मात्र करोवह एक घंटा तुम्हें इतना समृद्ध बना जाएगा जिसका कि हिसाब नहीं। तुम फिर से बच्चे हो जाओगे। तुम्हारी सब सुरक्षा—व्यवस्था गिर जाएगीतुम्हारा सब कवच गिर जाएगा। और तुम फिर संसार को वैसे ही देखने लगोगे जैसे एक बच्चा देखता है। बच्चा अनुभूति के आयाम से उसे देखता है। और जब तुम्हें लगे कि अब मैं विचार नहींअनुभूति के आयाम से देख सकता हूं तो तुम उस कालीन की कोमलता का भी सुख ले सकते हो जिस पर तुम बच्चे की भांति चलते हो। तुम उसके दबाव और गरमाहट को भी महसूस कर सकोगे। और यह सब सिर्फ निर्दोष भाव से एक बच्चे का अनुकरण करने से होता है।
मनुष्य बच्चों से बहुत कुछ सीख सकता है। और देर—अबेर तुम्हारी सच्ची निर्दोषता प्रकट हो जाएगी। तुम भी कभी बच्चे थेऔर तुम जानते हो कि बच्चा होना क्या है। सिर्फ उसका विस्मरण हो गया है।
तो अनुभूति के केंद्रों को फिर से सक्रिय होना होगातो ही ये विधियां कारगर हो सकती हैं। अन्यथा तुम सोचते रहोगे कि ऊर्जा ऊपर उठ रही हैलेकिन उसकी कोई अनुभूति नहीं होगी। और अनुभूति के अभाव में कल्पना व्यर्थ हैबांझ है। अनुभूति— भरा भाव ही परिणाम ला सकता है।
तुम और भी कई चीजें कर सकते होऔर उन्हें करने में कोई विशेष प्रयत्न भी नहीं है। जब तुम सोने जाओ तो बिस्तर कोतकिए को महसूस करोउसकी ठंडक को महसूस करो। तकिए को छुओउसके साथ खेलो। अपनी आंखें बंद कर लो और सिर्फ एयरकंडीशनर की आवाज को सुनो। घड़ी की आवाज को या चलती सड़क के शोरगुल को सुनो। कुछ भी सुनो। उसे नाम मत दोकुछ कहो ही मत। मन का उपयोग ही मत करोबस अनूभूति में जीओ
सुबह जागने के पहले क्षण मेंजब तुम्हें लगे कि नींद जा चुकी हैतो तुरंत सोच—विचार मत करने लगो। कुछ क्षणों के लिए तुम फिर से बच्चे हो सकते होनिर्दोष और ताजे हो सकते हो। तुरंत सोच—विचार में मत लग जाओ। यह मत सोचो कि क्या—क्या करना हैकब दफ्तर के लिए रवाना होना हैकौन सी गाड़ी पकड़नी है। सोच—विचार मत शुरू करो। उन मूढ़ताओं के लिए तुम्‍हें काफी समय मिलेगाअभी रुको। अभी कुछ क्षणों के लिए सिर्फ ध्वनियों पर ध्यान दो। एक पक्षी गाता हैवृक्षों सेहवाएं गुजर रही हैंकोई बच्चा रोता है या दूध देने वाला आया है और पुकार रहा हैया वह पतेली में दूध डाल रहा है। जो भी हो रहा हो उसे महसूस करोउसके प्रति संवेदनशील बनोखुले रहो। उसकी अनुभूति में डूबो। और तुम्हारी संवेदनशीलता बढ़ जाएगी।
जब स्नान करो तो उसे अपने पूरे शरीर पर अनुभव करोपानी की प्रत्येक बूंद को अपने ऊपर गिरते हुए महसूस करो। उसके स्पर्श कोउसकी शीतलता और उष्णता को महसूस करो। पूरे दिन इसका प्रयोग करोजब भी अवसर मिले प्रयोग करो। और सब जगह अवसर ही अवसर है। श्वास लेते हुए सिर्फ श्वास को अनुभव करोभीतर जाती और बाहर आती श्वास को अनुभव करोकेवल अनुभव करो। अपने शरीर को ही महसूस करोतुमने उसे भी नहीं अनुभव किया है।
हम अपने शरीरों से भी इतने भयभीत हैं कि कभी कोई अपने शरीर को प्रेमपूर्वक स्पर्श नहीं करता है। क्या तुमने कभी अपने शरीर को ही प्रेम किया हैसमूची सभ्यता इस बात से भयभीत है कि कोई अपने को ही स्पर्श करेक्योंकि बचपन से ही स्पर्श वर्जित रहा है। अपने को प्रेमपूर्वक स्पर्श करना हस्तमैथुन करने जैसा मालूम पड़ता है। लेकिन अगर तुम अपने को ही प्रेम से स्पर्श नहीं कर सकते तो तुम्हारा शरीर जड़ और मृत हो जाएगा। वह दरअसल जड और मृत हो ही गया है।
अपनी आंखों को स्पर्श करो और उस स्पर्श को अनुभव करोऔर तुम्हारी आंखें तुरंत ताजी और जीवंत हो उठेंगी। अपने पूरे शरीर को महसूस करोअपने प्रेमी के शरीर को महसूस करोअपने मित्र के शरीर को महसूस करो। एक—दूसरे को सहलाओ;एक—दूसरे की मालिश करो। मालिश बढ़िया है। दो मित्र एक—दूसरे की मालिश कर सकते हैं और एक—दूसरे के शरीर को अनुभव कर सकते हैं। तुम अधिक संवेदनशील हो जाओगे।
संवेदनशीलता और अनुभूति पैदा करो। तभी तुम इन विधियों का प्रयोग सरलता से कर सकोगे। और तब तुम्हें अपने भीतर जीवन—ऊर्जा के ऊपर उठने का अनुभव होगा। इस ऊर्जा को बीच में मत छोड़ोउसे सहस्रार तक जाने दो। स्मरण रहे कि जब भी तुम यह प्रयोग करो तो उसे बीच में मत छोड़ोउसे पूरा करो। यह भी ध्यान रहे कि इस प्रयोग में कोई तुम्हें बाधा न पहुंचाए। अगर तुम इस ऊर्जा को कहीं बीच में छोड़ दोगे तो उससे तुम्हें हानि हो सकती है। इस ऊर्जा को मुक्त करना होगा। तो उसे सिर तक ले जाओऔर भाव करो कि तुम्हारा सिर एक द्वार बन गया है।
इस देश में हमने सहस्रार को हजार पंखुड़ियों वाले कमल के रूप में चित्रित किया है। सहस्रार का यही अर्थ है : सहस्रदल कमल का खिलना। तो धारणा करो कि हजार पंखुड़ियों वाला कमल खिल गया हैऔर उसकी प्रत्येक पंखुड़ी से यह प्रकाश—ऊर्जा ब्रह्मांड में फैल रही है। यह फिर एक अर्थों में संभोग हैलेकिन यह प्रकृति के साथ नहींपरम के साथ संभोग है। फिर एक आर्गाज्म घटित होता है।
आर्गाज्‍म दो प्रकार का होता है। एक सेक्यूअल और दूसरा स्प्रिचुअल। सेक्यूअल
आर्गाज्य निम्नतम केंद्र से आता है और स्तिचुअल उच्चतम केंद्र से। उच्चतम केंद्र से तुम उच्चतम से मिलते हो और निम्नतम केंद्र से निम्नतम से।
साधारण संभोग में भी तुम यह प्रयोग कर सकते होदोनों लोग यह प्रयोग कर सकते हो। ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बनाओ। और तब संभोग तंत्र—साधना बन जाता हैतब वह ध्यान बन जाता है।
लेकिन ऊर्जा को कहीं शरीर मेंकिसी बीच के केंद्र पर मत छोड़ो। कोई व्यक्ति बीच में आ सकता है जिसके साथ तुम्हें व्यावसायिक सरोकार होया कोई फोन आ जाए और तुम्हें प्रयोग को बीच में ही छोड़ना पड़े। इसलिए ऐसे समय में प्रयोग करो जब कोई तुम्हें बाधा न देऔर ऊर्जा को किसी केंद्र पर न छोड़ना पड़े। अन्यथा वह केंद्रजहां तुम ऊर्जा को छोड़ोगे घाव बन जाएगा और तुम्हें अनेक मानसिक रूणताओं का शिकार होना पड़ेगा।
तो सावधान रहोअन्यथा यह प्रयोग मत करो। इस विधि के लिए नितांत एकात आवश्यक हैबाधा—रहितता आवश्यक है। और आवश्यक है कि तुम उसे पूरा करो। ऊर्जा को सिर तक जाना चाहिए और वहीं से उसे मुक्त होना चाहिए।
तुम्हें अनेक अनुभव होंगे। जब तुम्हें लगेगा कि प्रकाश—किरणें काम—केंद्र से ऊपर उठने लगी हैं तो काम—केंद्र पर इरेक्‍शन का और उत्तेजना का अनुभव होगा। अनेक लोग बहुत भयभीत और आतंकित स्थिति में मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि जब हम ध्यान शुरू करते हैंजब हम ध्यान में गहरे जाने लगते हैंहमें इरेक्‍शन होता है। और वे चकित होकर पूछते हैं कि यह क्या है!
वे भयभीत हो जाते हैंक्योंकि वे सोचते हैं कि ध्यान में कामुकता के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन तुम्हें जीवन के रहस्यों का पता नहीं है। यह अच्छा लक्षण है। यह बताता है कि ऊर्जा उठ रही हैउसे गति की जरूरत है। तो आतंकित मत होओऔर यह मत सोचो कि कुछ गलत हो रहा है। यह शुभ लक्षण है। जब तुम ध्यान शुरू करते हो तो काम—केंद्र ज्यादा संवेदनशीलज्यादा जीवंतज्यादा उत्तेजित हो जाएगाऔर शुरू—शुरू में यह उत्तेजना साधारण कामुक उत्तेजना जैसी ही होगी।
लेकिन केवल आरंभ में ही ऐसा होगा। जैसे—जैसे तुम्हारा ध्यान गहराएगा वैसे—वैसे ऊर्जा ऊपर उठने लगेगी। और जब ऊर्जा ऊपर उठती है तो काम—केंद्र अनुत्तेजितशांत होने लगता है। और जब ऊर्जा बिलकुल सहस्रार पर पहुंचेगी तो काम—केंद्र पर कोई उत्तेजना नहीं रहेगीकाम—केंद्र बिलकुल स्थिर और शात हो जाएगावह बिलकुल शीतल हो जाएगा। अब उष्णता सिर में आ जाएगी।
और यह शारीरिक बात है। जब काम—केंद्र उत्तेजित होता है तो वह गरम हो जाता है। तुम उस गरमाहट को महसूस कर सकते होवह शारीरिक है। लेकिन जब ऊर्जा ऊपर उठती है तो काम—केंद्र ठंडा होने लगता हैबहुत ठंडा होने लगता हैऔर उष्णता सिर पर पहुंच जाती है। तब तुम्हें सिर में चक्कर आने लगेगा। जब ऊर्जा सिर में पहुंचेगी तो तुम्हारा सिर घूमने लगेगा। कभी—कभी तुम्हें घबराहट भी होगीक्योंकि पहली बार ऊर्जा सिर में पहुंची हैऔर तुम्हारा सिर उससे परिचित नहीं है। उसे ऊर्जा के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ेगा।
तो भयभीत मत होओ। यह होता है। अगर बहुत सारी ऊर्जा अचानक उठ जाए और सिर में पहुंच जाए तो तुम बेहोश भी हो जा सकते हो। लेकिन यह बेहोशी एक घंटे से ज्यादा देर नहीं रहेगीघंटे भर के भीतर ऊर्जा अपने आप ही वापस लौट जाएगी या मुक्त हो जाएगी। तुम उस अवस्था में कभी एक घंटे से ज्यादा देर नहीं रह सकते। मैं कहता तो हूं एक घंटालेकिन असल में यह समय अड़तालीस मिनट का है। यह उससे ज्यादा नहीं हो सकतालाखों वर्षों के प्रयोग के दौरान कभी ऐसा नहीं हुआ है।
तो डरो मततुम बेहोश भी हो जाओ तो ठीक है। उस बेहोशी के बाद तुम इतने ताजा अनुभव करोगे कि तुम्हें लगेगा कि मैं पहली बार नींद सेगहनतम नींद से गुजरा हूं। योग में इसका एक विशेष नाम हैवे उसे योग—तंद्रा कहते हैं। यह बहुत गहरी नींद हैइसमें तुम अपने गहनतम केंद्र पर सरक जाते हो। लेकिन डरो मत।
और अगर तुम्हारा सिर गरम हो जाए तो वह भी शुभ लक्षण है। ऊर्जा को मुक्त होने दो। भाव करो कि तुम्हारा सिर कमल के फूल की भांति खिल रहा है। भाव करो कि ऊर्जा ब्रह्मांड में मुक्त हो रही हैफैलती जा रही है। और जैसे—जैसे ऊर्जा मुक्त होगी,तुम्हें शीतलता का अनुभव होगा। इस उष्णता के बाद जो शीतलता आती हैउसका तुम्हें कोई अनुभव नहीं है। लेकिन विधि को पूरा प्रयोग करोउसे कभी आधा—अधूरा मत छोड़ो

 प्रकाश—संबंधी दूसरी विधि:
या बीच के रिक्त स्थानों में यह बिजली कौधंने जैसा है— ऐसा भाव करो
थोड़े से फर्क के साथ यह विधि भी पहली विधि जैसी ही है।
'या बीच के रिक्त स्थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
एक केंद्र से दूसरे केंद्र तक जाती हुई प्रकाश—किरणों में बिजली के कौंधने का अनुभव करो—प्रकाश की छलांग का भाव करो। कुछ लोगों के लिए यह दूसरी विधि ज्यादा अनुकूल होगीऔर कुछ लोगों के लिए पहली विधि ज्यादा अनुकूल होगी। यही कारण है कि इतना—सा संशोधन किया गया है।
ऐसे लोग हैं जो क्रमश: घटित होने वाली चीजों की धारणा नहीं बना सकतेऔर कुछ लोग हैं जो छलांगों की धारणा नहीं बना सकते। अगर तुम क्रम की सोच सकते होचीजों के कम से होने की कल्पना कर सकते होतो तुम्हारे लिए पहली विधि ठीक है। लेकिन अगर तुम्हें पहली विधि के प्रयोग से पता चले कि प्रकाश—किरणें एक केंद्र से दूसरे केंद्र पर सीधे छलांग लेती हैं तो तुम पहली विधि का प्रयोग मत करो। तब तुम्हारे लिए यह दूसरी विधि बेहतर है।
'यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
भाव करो कि प्रकाश की एक चिनगारी एक केंद्र से दूसरे केंद्र पर छलांग लगा रही है। और दूसरी विधि ज्यादा सच है,क्योंकि प्रकाश सचमुच छलांग लेता है। उसमें कोई क्रमिककदम—ब—कदम विकास नहीं होता है। प्रकाश छलांग है।
विद्युत के प्रकाश को देखो। तुम सोचते हो कि यह स्थिर हैलेकिन वह भ्रम है। उसमें भी अंतराल हैंलेकिन वे अंतराल इतने छोटे हैं कि तुम्हें उनका पता नहीं चलता है। विद्युत छलांगों में आती है। एक छलांगऔर उसके बाद अंधकार का अंतराल होता है। फिर दूसरी छलांगऔर उसके बाद फिर अंधकार का अंतराल होता है। लेकिन तुम्हें कभी अंतराल का पता नहीं चलता हैक्योंकि छलांग इतनी तीव्र है। अन्यथा प्रत्येक क्षण अंधकार आता है; पहले प्रकाश की छलांग और फिर अंधकार। प्रकाश कभी चलता नहींछलांग ही लेता है। और जो लोग छलांग की धारणा कर सकते हैंयह दूसरी संशोधित विधि उनके लिए है।
'या बीच के रिक्त स्थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
प्रयोग करके देखो। अगर तुम्हें किरणों का क्रमिक ढंग से आना अच्छा लगता है तो वही ठीक है। और अगर वह अच्छा न लगेऔर लगे कि किरणें छलांग ले रही हैंतो किरणों की बात भूल जाओ और आकाश में कौंधने वाली विद्युत कीबादलों के बीच छलांग लेती विद्युत की धारणा करो।
स्त्रियों के लिए पहली विधि आसान होगी और पुरुषों के लिए दूसरी। स्त्री—चित्त क्रमिकता की धारणा ज्यादा आसानी से बना सकता है और पुरुष—चित्त ज्यादा आसानी से छलांग लगा सकता है। पुरुष—चित्त उछलकूद पसंद करता हैवह एक से दूसरी चीज पर छलांग लेता है। पुरुष—चित्त में एक सूक्ष्म बेचैनी रहती है। स्त्री—चित्त में क्रमिकता की एक प्रक्रिया है। स्त्री—चित्त उछलकूद नहीं पसंद करता है। यही वजह है कि स्त्री और पुरुष के तर्क इतने अलग होते हैं। पुरुष एक चीज से दूसरी चीज पर छलांग लगाता रहता हैस्त्री को यह बात बड़ी बेबूझ लगती है। उसके लिए विकासक्रमिक विकास जरूरी है।
लेकिन चुनाव तुम्हारा है। प्रयोग करोऔर जो विधि तुम्हें रास आए उसे चुन लो।
इस विधि के संबंध में और दो—तीन बातें। बिजली कौंधने के भाव के साथ तुम्हें इतनी उष्णता अनुभव हो सकती है जो असहनीय मालूम पड़े। अगर ऐसा लगे तो इस विधि को प्रयोग मत करो। बिजली तुम्हें बहुत उष्ण कर दे सकती है। और अगर तुम्हें लगे कि यह असहनीय है तो इसका प्रयोग मत करो। तब तुम्हारे लिए पहली विधि हैअगर वह तुम्हें रास आए। अगर बेचैनी महसूस हो तो दूसरी विधि का प्रयोग मत करो। कभी—कभी विस्फोट इतना बड़ा हो सकता है कि तुम भयभीत हो जा सकते हो। और यदि तुम एक दफा डर गए तो फिर तुम दुबारा प्रयोग न कर सकोगे। तब भय पकड़ लेता है।
तो सदा ध्यान रहे कि किसी चीज से भी भयभीत नहीं होना है। अगर तुम्हें लगे कि भय होगा और तुम बरदाश्त न कर पाओगे तो प्रयोग मत करो। तब प्रकाश—किरणों वाली पहली विधि सर्वश्रेष्ठ है।
लेकिन यदि पहली विधि के प्रयोग में भी तुम्हें लगे कि अतिशय गर्मी पैदा हो रही है—और ऐसा हो सकता हैक्योंकि लोग भिन्न—भिन्न है—तो भाव करो कि प्रकाश—किरणें शीतल हैंठंडी हैं। तब तुम्हें सब चीजों में उष्णता की जगह ठंडक महसूस होगी। वह भी प्रभावी हो सकता है। तो निर्णय तुम पर निर्भर हैप्रयोग करके निर्णय करो।
स्मरण रहेचाहे इस विधि के प्रयोग में चाहे अन्य विधियों के प्रयोग मेंयदि तुम्हें बहुत बेचैनी अनुभव हो या कुछ असहनीय लगेतो मत करो। दूसरे उपाय भी हैंदूसरी विधियां भी हैं। हो सकता हैयह विधि तुम्हारे लिए न हो। अनावश्यक उपद्रवों में पड़कर तुम समाधान की बजाय समस्याएं ही ज्यादा पैदा करोगे।
इसीलिए भारत में हमने एक विशेष योग का विकास किया जिसे सहज योग कहते हैं।
सहज का अर्थ है सरलस्वाभाविकस्वतःस्फूर्त। सहज को सदा याद रखो। अगर तुम्हें महसूस हो कि कोई विधि सहजता से तुम्हारे अनुकूल पड़ रही हैअगर वह तुम्हें रास आएअगर उसके प्रयोग से तुम ज्यादा स्वस्थज्यादा जीवंतज्यादा सुखी अनुभव करोतो समझो कि वह विधि तुम्हारे लिए है। तब उसके साथ यात्रा करोतुम उस पर भरोसा कर सकते हो। अनावश्यक समस्याएं मत पैदा करो। आदमी की आंतरिक व्यवस्था बहुत जटिल है। अगर तुम कुछ भी जबरदस्ती करोगे तो तुम बहुत सी चीजें नष्ट कर दे सकते हो। इसलिए अच्छा है कि किसी ऐसी विधि के साथ प्रयोग करो जिसके साथ तुम्हारा अच्छा तालमेल हो।

 प्रकाश—संबंधी तीसरी विधि:
भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है
यह विधि भी प्रकाश से ही संबंधित है।
'भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है।
गर तुमने एल. एस डी या उसी तरह के किसी मादक द्रव्य का सेवन किया होतो तुम्हें पता होगा कि कैसे तुम्हारे चारों ओर का जगत प्रकाश और रंगों के जगत में बदल जाता हैजो कि बहुत पारदर्शी और जीवंत मालूम पड़ता है।
यह एल .एस .डी के कारण नहीं है। जगत ऐसा ही हैलेकिन तुम्हारी दृष्टि शइमल और मंद पड़ गई है। एल. एस .डी. तुम्हारे चारों ओर रंगीन जगत नहीं निर्मित करता हैजगत पहले से ही रंगीन हैउसमें कोई भूल नहीं है। यह रंगों के इंद्रधनुष जैसा हैरंगों के रहस्यमय लोक जैसा हैपारदर्शी प्रकाश जैसा है। लेकिन तुम्हारी आंखें धुंध से भरी हैंइसीलिए तुम्हें कभी नहीं प्रतीत होता है कि जगत इतना रंग— भरा है। एल एस डी. सिर्फ तुम्हारी आंखों से धुंध को हटा देता हैवह जगत को रंगीन नहीं बनाता। एल. एस. डी रासायनिक ढंग से तुम्हारी आंखों को उनके अंधेपन से मुक्त कर देता हैऔर तब अचानक सारा जगत तुम्हारे सामने अपने सच्चे रूप में उदघाटित हो जाता हैप्रकट हो जाता है।
एक बिलकुल नया जगत तुम्हारे सामने होता है। एक मामूली कुर्सी भी चमत्कार बन जाती हैफर्श पर पड़ा जूता नए रंगों सेनई आभा से भर जाता हैसज —जाता हैतब यातायात का मामूली शोरगुल भी संगीतपूर्ण हो उठता है। जिन वृक्षों को तुमने बहुत बार देखा होगा और फिर भी नहीं देखा होगावे मानो नया जन्म ग्रहण कर लेते हैंयद्यपि तुम बहुत बार उनके पास से गुजरे हो और तुम्हें खयाल है कि तुमने उन्हें देखा है। वृक्ष का पत्ता—पत्ता एक चमत्कार बन जाता है।
और यथार्थ ऐसा ही हैएल. एस .डी. इस यथार्थ का निर्माण नहीं करता। एल. एस. डी. तुम्हारी जड़ता कोतुम्हारी संवेदनहीनता को मिटा देता हैऔर तब तुम जगत को ऐसे देखते हो जैसे तुम्हें सच में उसे देखना चाहिए।
लेकिन एल. एस. डी तुम्हें सिर्फ एक झलक दे सकता है। और अगर तुम एल. एस. डी. पर निर्भर रहने लगेतो देर—अबेर वह भी तुम्हारी आंखों से धुंध को हटाने में असमर्थ हो जाएगा। फिर तुम्हें उसकी अधिक मात्रा की जरूरत पड़ेगीऔर यह मात्रा बढ़ती जाएगी और उसका असर कम होता जाएगा। और फिर यदि तुम एल .एस. डी. या उस तरह की चीजें लेना छोड़ दोगेतो जगत तुम्हारे लिए पहले से भी ज्यादा उदास और फीका मालूम पड़ेगातब तुम और भी संवेदनहीन हो जाओगे।
अभी कुछ दिन पहले एक लड़की मुझसे मिलने आई। उसने कहा कि मुझे संभोग में आर्गाज्य का कोई अनुभव नहीं होता है। उसने अनेक पुरुषों के साथ प्रयोग कियालेकिन आर्गाज्य का कभी अनुभव नहीं हुआ। वह शिखर कभी आता नहींऔर वह लड़की बहुत हताश हो गई है।
तो मैंने उस लड़की से कहा कि मुझे अपने प्रेम और काम जीवन के संबंध में विस्तार से बताओपूरी कहानी कहो। और तब मुझे पता चला कि वह संभोग के लिए बिजली के एक यंत्र काइलेक्ट्रानिक वाइब्रेटर का उपयोग कर रही थी। आजकल पश्चिम में इसका बहुत उपयोग हो रहा है। लेकिन तुम अगर एक बार पुरुष जननेंद्रिय के लिए इलेक्ट्रानिक वाइब्रेटर का उपयोग कर लोगेतो कोई भी पुरुष तुम्हें तृप्त नहीं कर पाएगाक्योंकि इलेक्ट्रानिक वाइब्रेटर आखिर इलेक्ट्रानिक वाइब्रेटर ही है। तुम्हारीजननेंद्रिया जड़ हो जाएंगीमुर्दा हो जाएंगी। उस हालत में आर्गाज्यकाम का शिखर अनुभव असंभव हो जाएगा। तुम्हें काम—संभोग का शिखर कभी प्राप्त न हो सकेगा। और तब तुम्हें पहले से ज्यादा शक्तिशाली इलेक्ट्रानिक वाइब्रेटर की जरूरत पड़ेगी। और यह प्रक्रिया उस अति तक जा सकती है कि तुम्हारा पूरा काम—यंत्र पत्थर जैसा हो जाए।
और यही दुर्घटना हमारी प्रत्येक इंद्रिय के साथ घट रही है। अगर तुम कोई बाहरी उपायकृत्रिम उपाय काम में लाओगे,तो तुम जड़ हो जाओगे। एल .एस .डी. तुम्हें अंततः जड़ बना देगाक्योंकि उससे तुम्हारा विकास नहीं होता हैतुम ज्यादा संवेदनशील नहीं होते हो। अगर तुम विकसित होते हो तो वह बिलकुल ही भिन्न प्रक्रिया है। तब तुम ज्यादा संवेदनशील होंगे। और जैसे—जैसे तुम ज्यादा संवेदनशील होते होवैसे—वैसे जगत दूसरा होता जाता है। अब तुम्हारी इंद्रियां ऐसी अनेक चीजें अनुभव कर सकती हैं जिन्हें उन्होंने अतीत में कभी नहीं अनुभव किया थाक्योंकि तुम उनके प्रति खुले नहीं थेसंवेदनशील नहीं थे।
यह विधि आंतरिक संवेदनशीलता पर आधारित है। पहले संवेदनशीलता को बढ़ाओ। अपने द्वार—दरवाजे बंद कर लोकमरे में अंधेरा कर लोऔर फिर एक छोटी मोमबत्ती जलाओ। और उस मोमबत्ती के पास प्रेमपूर्ण मुद्रा मेंबल्कि प्रार्थनापूर्ण भावदशामें बैठो। और ज्योति से प्रार्थना करो : 'अपने रहस्य को मुझ पर प्रकट करो।’ स्नान कर लोअपनी आंखों पर ठंडा पानी छिड़कलो और फिर ज्योति के सामने अत्यंत प्रार्थनापूर्ण भावदशा में होकर बैठो। ज्योति को देखो और शेष सब चीजें भूल जाओ। सिर्फ ज्योति को देखो। ज्योति को देखते रहो।
पांच मिनट बाद तुम्हें अनुभव होगा कि ज्योति में बहुत चीजें बदल रही हैं। लेकिन स्मरण रहेयह बदलाहट ज्योति में नहीं हो रही हैदरअसल तुम्हारी दृष्टि बदल रही है।
प्रेमपूर्ण भावदशा मेंसारे जगत को भूलकरसमग्र एकाग्रता के साथभावपूर्ण हृदय के साथ ज्योति को देखते रहो। तुम्हें ज्योति के चारों ओर नए रंगनई छटाएं दिखाई देंगीजो पहले कभी नहीं दिखाई दी थीं। वे रंगवे छटाएं सब वहां मौजूद हैं;पूरा इंद्रधनुष वहां उपस्थित है। जहां—जहां भी प्रकाश हैवहा—वहां इंद्रधनुष हैक्योंकि प्रकाश बहुरंगी हैउसमें सब रंग हैं। लेकिन उन्हें देखने के लिए सूक्ष्म संवेदना की जरूरत है। उसे अनुभव करो और
देखते रहो। यदि आंसू भी बहने लगेंतो भी देखते रहो। वे आंसू तुम्हारी आंखों को निखार देंगेज्यादा ताजा बना जाएंगे।
कभी—कभी तुम्हें प्रतीत होगा कि मोमबत्ती या ज्योति बहुत रहस्यपूर्ण हो गई है। तुम्हें लगेगा कि यह वही साधारण मोमबत्ती नहीं है जो मैं अपने साथ लाया थाउसने एक नई आभाएक सूक्ष्म दिव्यताएक भगवत्ता प्राप्त कर ली है। इस प्रयोग को जारी रखो। कई अन्य चीजों के साथ भी तुम इसे कर सकते हो।
मेरे एक मित्र मुझे कह रहे थे कि वे पांच—छह मित्र पत्थरों के साथ एक प्रयोग कर रहे थे। मैंने उन्हें कहा था कि कैसे प्रयोग करनाऔर वे लौटकर मुझे पूरी बात कह रहे थे। वे एकांत में एक नदी के किनारे पत्थरों के साथ प्रयोग कर रहे थे। वे उन्हें फील करने की कोशिश कर रहे थे—हाथों से छूकरचेहरे से लगाकरजीभ से चखकरनाक से सूंघकर—वे उन पत्थरों को हर तरह से फील करने की कोशिश कर रहे थे। साधारण से पत्थरजो उन्हें नदी किनारे मिल गए थे।
उन्होंने एक घंटे तक यह प्रयोग किया—हर व्यक्ति ने एक पत्थर के साथ। और मेरे मित्र मुझे कह रहे थे कि एक बहुत अदभुत घटना घटी। हर किसी ने कहा 'क्या मैं यह पत्थर अपने पास रख सकता हूंमैं इसके साथ प्रेम में पड़ गया हूं!'
एक साधारण सा पत्थर! अगर तुम सहानुभूतिपूर्ण ढंग से उससे संबंध बनाते हो तो तुम प्रेम में पड जाओगे। और अगर तुम्हारे पास इतनी संवेदनशीलता नहीं है तो सुंदर से सुंदर व्यक्ति के पास होकर भी तुम पत्थर के पास ही होतुम प्रेम में नहीं पड़ सकते।
तो संवेदनशीलता को बढ़ाना है। तुम्हारी प्रत्येक इंद्रिय को ज्यादा जीवंत होना है। तो ही तुम इस विधि का प्रयोग कर सकते हो।
'भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है।
सर्वत्र प्रकाश हैअनेक—अनेक रूपों और रंगों में प्रकाश सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखो। सर्वत्र प्रकाश हैक्योंकि सारी सृष्टि प्रकाश की आधारशिला पर खड़ी है। एक पत्ते को देखोएक फूल को देखो या एक पत्थर को देखोऔर देर— अबेर तुम्हें अनुभव होगा कि उससे प्रकाश की किरणें निकल रही हैं। बसधैर्य से प्रतीक्षा करो। जल्दबाजी मत करोक्योंकि जल्दबाजी में कुछ भी प्रकट नहीं होता है। तुम जब जल्दी में होते हो तो तुम जड़ हो जाते हो। किसी भी चीज के साथ धीरज से प्रतीक्षा करोऔर तुम्हें एक अदभुत तथ्य से साक्षात्कार होगा जो सदा से मौजूद थालेकिन जिसके प्रति तुम सजग नहीं थेसावचेत नहीं थे।
'भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है।
और जैसे ही तुम्हें इस शाश्वत अस्तित्व की उपस्थिति अनुभव होगी वैसे ही तुम्हारा चित्त बिलकुल मौन और शात हो जाएगा। तुम तब उसके एक अंश भर होगेकिसी अदभुत संगीत में एक स्वर भर! फिर कोई चिंता नहीं हैफिर कोई तनाव नहीं है। बूंद समुद्र में गिर गईखो गई।
लेकिन आरंभ में एक बड़ी कल्पना की जरूरत होगी। और अगर तुम संवेदनशीलता बढ़ाने के अन्य प्रयोग भी करते होतो वह सहयोगी होगा। तुम कई तरह के प्रयोग कर सकते
हो। किसी का हाथ अपने हाथ में ले लोआंखें बंद कर लो और दूसरे के भीतर के जीवन को महसूस करोउसे महसूस करो और उसे अपनी ओर बहने दोगति करने दो। फिर अपने जीवन को महसूस करोऔर उसे दूसरे की ओर प्रवाहित होने दो। किसी वृक्ष के निकट बैठ जाओ और उसकी छाल को छुओस्पर्श करो। अपनी आंखें बंद कर लो और वृक्ष में उठते जीवन—तत्व को अनुभव करो। और तुम्हें तुरंत बदलाहट अनुभव होगी।
मैंने एक प्रयोग के बारे में सुना है। एक डाक्टर कुछ लोगों पर प्रयोग कर रहा था कि क्या भावदशा से शरीर में रासायनिक परिवर्तन होते हैं। अब उसने निष्कर्ष निकाला है कि भावदशा से शरीर में तत्काल रासायनिक परिवर्तन होते हैं।
उसने बारह लोगों के एक समूह पर 'प्रयोग किया। उसने प्रयोग के आरंभ में उन सबकी पेशाब की जांच कीऔर सबकी पेशाब साधारणसामान्य पाई गई। फिर हर व्यक्ति को एक विशेष भावदशा के प्रभाव में रखा गया। एक को क्रोधहिंसाहत्या,मार—पीट से भरी फिल्म दिखाई गई। तीस मिनट तक उसे भयावह फिल्म दिखाई गई। यह मात्र फिल्म ही थीलेकिन वह व्यक्ति उस भावदशा में रहा। दूसरे को एक हंसी—खुशी कीप्रसन्नता की फिल्म दिखाई गई। वह आनंदित रहा। और इसी तरह बारह लोगों पर प्रयोग किया गया।
फिर प्रयोग के बाद उनकी पेशाब की जांच की गईऔर अब सबकी पेशाब अलग थी। शरीर में रासायनिक परिवर्तन हुए थे। जो हिंसा और भय की भावदशा में रहा वह अब बुझा—बुझाबीमार थाऔर जो हंसी—खुशीप्रसन्नता की भावदशा में रहा वह अब स्वस्थप्रफुल्ल था। उसकी पेशाब अलग थीउसके शरीर की रासायनिक व्यवस्था अलग थी।
तुम्हें बोध नहीं है कि तुम अपने साथ क्या कर रहे हो। जब तुम कोई खून—खराबे की फिल्म देखने जाते होतो तुम नहीं जानते हो कि तुम क्या कर रहे होतुम अपने शरीर की रासायनिक व्यवस्था बदल रहे हो। जब तुम कोई जासूसी उपन्यास पढ़ते होतो तुम नहीं जानते हो कि तुम क्या कर रहे होतुम अपनी हत्या कर रहे हो। तुम उत्तेजित हो जाओगेतुम भयभीत हो जाओगेतुम तनाव से भर जाओगे। जासूसी उपन्यास का यही तो मजा है। तुम जितने उत्तेजित होते होतुम उसका उतना ही सुख लेते हो। आगे क्या घटित होने वाला हैइस बात को लेकर जितना सस्पेंस होगातुम उतने ही ज्यादा उत्तेजित होगे। और इस भांति तुम्हारे शरीर का रसायन बदल रहा है।
ये सारी विधियां भी तुम्हारे शरीर के रसायन को बदलती हैं। अगर तुम सारे जगत को जीवन और प्रकाश से भरा अनुभव करते होतो तुम्हारे शरीर का रसायन बदलता है। और यह एक चेन रिएक्शन हैइस बदलाहट की एक श्रृंखला बन जाती है। जब तुम्हारे शरीर का रसायन बदलता है और तुम जगत को देखते होतो वही जगत ज्यादा जीवंत दिखाई पड़ता है। और जब वह ज्यादा जीवंत दिखाई पड़ता हैतो तुम्हारे शरीर की रासायनिक व्यवस्था और भी बदलती है। ऐसे एक श्रृंखला निर्मित हो जाती है।
यदि यह विधि तीन महीने तक प्रयोग की जाएतो तुम भिन्न ही जगत में रहने लगोगेक्योंकि अब तुम ही भिन्न व्यक्ति हो जाओगे।

 आज इतना ही।
Kalpant Healing Center
Dr J.P Verma (Swami Jagteswer Anand Ji)
(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki, Spiritual & Cosmic Healing, (Treatment & Training Center)
C53,  Sector 15 Vasundra, Avash Vikash Markit, Near Pani Ki Tanki,  Ghaziabad
Mob-: 9958502499

No comments:

Post a Comment